मन से मनको लिख रही हूँ,
पाती एक अजानी प्रियतम !
पाती मेँ प्रेम - कहानी !
तुम भी हामी भरते जाना, सुनते सुनते बानी ॥
फिर कह रही कहानी !
कहुँ, सुनाऊँ, तुमको प्रियतम,
था राजा या रानी ? सुनोगे क्या ये कहानी ?
सुनो, एक थी रानी बडी निर्मम !
पर थी वह बडी ही सुँदर !
ज्यूँ बन उपवन की तितली !
गर्वीली, मदमाती, बडी हठीली !
एक था राजा, बडा भोला नादानरखता सब जीवोँ पर प्रेम समान !
बडा बलशाली, चतुर, सुजान !
सुन रहे हो तो हामी भरना अब आगे सुनो कहानी !
भोर भए , उगता जब रवि था,
राजा निकल पडता था सुबही को,
साथ घोडी लिये वह "मस्तानी"
सुनो, सुनो, ये कहानी !
छोड गाँव की सीमा को वह,
जँगल पार घनेरे कर के,आया, जहाँ रहती थी रानी !
अब आगे सुनो, कहानी !
रानी रोज किया करती थीगौरी - व्रत की पूजा,
नियम न था कोई दूजा ~
छिप मँदीर की दीवारोँ से,देखी राजा ने रानी -
मन करने लगा मनमानी !
किसी तरह पाऊँ मैँ इसको,हठ राजा ने ये ठानी !
वह भी तो था अभिमानी !
पलक झपकते रानी लौटी,
लौट चले सखीयोँ के दल
मची राजा के दिल मेँ हलचल !
पाणि - ग्रहण प्रस्ताव भेज कर ,
राजाने देखा मीठा सपना दूर नहीँ होँगेँ दिन ऐसे,
हम जब होँगेँ साजन - सजनी !
रानी ने पर अपमानित करके,
ठुकराया उसका प्रस्ताव !
क्या हो, था ही हठी स्वभाव !
आव न देखा, ताव न देखा,
राजा ने फिर धावा बोला-
अब तो रानी का आसन डोला !
बँदी बन रानी, तब आईँ राजा के सम्मुख गई लाई
कारा गृह मेँ भेज दीया कह, "नहीँ चाहीये, मुझे गुमानी !
ना होगी मेरी ये, रानी ! "
एक वर्ष था बीत चला अब
आया श्री पुरी मेँ अब उत्सव !
श्री जग्गनाथ का उत्सव !
रीत यही थी, एक दिवस को,
राजा , झाडू देते थे ....मँदिर के सेवक होते थे !
बुढा मँत्री, चतुर सयाना ,
लाया खीँच रानी का बाना कहा,
" महाराज, ये भी हैँ प्रभु की दासी,- पर मेरी हैँ महारानी ! "
कहो कैसी लगी कहानी ?
सेवक राजा की ,सेविका से,
हुई धूमधाम से शादी--
फिर छमछम बरसा पानी !
मीत हृदय के मिले सुखारे
बैठे, सिँहासन, राजा ~ रानी !
हा! कैसी अजब कहानी !
जो प्रभु के मँदिर जन आयेँ,
पायेँ नैनन की ज्योति,
प्रवाल - माणिक मुक्ता मोती !
यहाँ न हार किसी की होती !
अब कह दो मेरे प्रियतम प्यारे,
कर याद मुझे कभी क्या,
वहाँ, हैँ आँख तुम्हारीँ रोतीँ?
काश! कि, मैँ वहाँ होती !
12 comments:
अब कह दो मेरे प्रियतम प्यारे,
कर याद मुझे कभी क्या,
वहाँ, हैँ आँख तुम्हारीँ रोतीँ?
काश! कि, मैँ वहाँ होती !
सुंदर कहानी की तरह लगी यह भावपूर्ण रचना आपकी लावण्या जी
बातों बातों में जाने कहाँ कहाँ घुमा दिया आपने....सुनी कहानी बड़ी सुहानी...:)
जो प्रभु के मँदिर जन आयेँ,
पायेँ नैनन की ज्योति,
प्रवाल - माणिक मुक्ता मोती !
यहाँ न हार किसी की होती !
bahut sahi baat kahi aapne
magar sabse jo pasand aayi wo aakhariwali lines,vaha hai ankh tumhari roti,kaash main waha hoti,bhavpurn,dil ko chu gayi kavita,badhai
पूज्य पिताजी के एक गीत का मुखड़ा याद आ गया:
प्रिय तुम मुझसे अनजान
मुझे तुम चिर जानी पहचानी सी.
कथोपकथन जैसा है आपका काव्य-शिल्प.
आहा सुंदर से कई शिल्प लिए हुए एक पाती ......
वाह जी, घमण्ड जब मरता है, तब प्रेम उमड़ता/प्रकट होता है!
bhut khub. likhati rhe.
भावपूर्ण काव्य रचना,कहानी बड़ी सुहानी है.
बहुत सुंदर लगी कविता में किस्सागोई।
सच्ची बात, भला ईश्वर के दरबार में किसी की हार हो सकती है। लोग रोते-रोते वहां जाते हैं, और हंसते-हंसते आते हैं।
अब कह दो मेरे प्रियतम प्यारे,
कर याद मुझे कभी क्या,
वहाँ, हैँ आँख तुम्हारीँ रोतीँ?
काश! कि, मैँ वहाँ होती !
अद्भुत रचना-आनन्द आ गया.
मेरे प्रयास को सराहने के लिये आप सभी का स स्नेह धन्यवाद कहती हूँ -
आते रहियेगा ,
-लावण्या
अद्भुत... सुंदर कहानी सा धारा प्रवाह लिए हुए !
Post a Comment