जैन सेंटर
और, एक अमरीकी कन्या के साथ हम :)
गत सप्ताह , जैन सेंटर जाने का मौका मिला - ऐसे ,अकसर , ये मकान बंद रहता है , किसी की सगाई हो , विवाह का भोज या मृत्यु के बाद आयोजित सभा ही क्यों ना हो, जैन देरासर के साथ बना होल , खोल दिया जाता है। हमारे शहर के जैन समाज ने मिलजुल कर इस की स्थापना की और अब सारी धार्मिक व सामाजिक गतिविधियों का ये जैन सेंटर , अब , केन्द्र बन गया है। जहाँ कहीं भी भारतीय बस गए हैं, नए सिरे से , भारतीय मूल्यों की स्थापना करने के प्रयत्न किए गए हैं जिनसे समाज एक साथ मिल कर
और, एक अमरीकी कन्या के साथ हम :)
गत सप्ताह , जैन सेंटर जाने का मौका मिला - ऐसे ,अकसर , ये मकान बंद रहता है , किसी की सगाई हो , विवाह का भोज या मृत्यु के बाद आयोजित सभा ही क्यों ना हो, जैन देरासर के साथ बना होल , खोल दिया जाता है। हमारे शहर के जैन समाज ने मिलजुल कर इस की स्थापना की और अब सारी धार्मिक व सामाजिक गतिविधियों का ये जैन सेंटर , अब , केन्द्र बन गया है। जहाँ कहीं भी भारतीय बस गए हैं, नए सिरे से , भारतीय मूल्यों की स्थापना करने के प्रयत्न किए गए हैं जिनसे समाज एक साथ मिल कर
अपनी परम्पराओं का निर्वाह करता रहे।
ये नहीं जानती परम्परा से संलग्न रहना ग़लत है या सही है -
ये हरेक का अपना निर्णय है , जिंदगी जीने का , हर पल , किस तरह बीते इस का भी --
यहीं मेरी मुलाक़ात इस सुंदर कन्या से हुई । साडी पहने बहुत सुंदर लग रही थी वो और ऐसे घूम रही थी मानो रोज ही साडी पहनती हो !
- सहजता से पहन रखी थी उसने साडी को और अपना लिया था भारतीय स्त्री का ये पहनावा !
- और एक और आश्चर्य की बात ये थी के उसकी माता जी ने भी साडी पहनी थी और पिता ने भी भारतीय पहनावा ! जबकि कई भारतीय पुरुषों ने अमरीकी पोशाक पहन रखीं थीं :)
इन लोगों ने भारतीय उत्सव को अपनी तरफ़ से , भारतीय पोशाक पहनकर एक तरह का सम्मान दिया था
मुझे हंसी भी आ रही थी ये सोचकर के सचमुच दुनिया गोल है !!
हमारी ये दुनिया , सिकुड़ती जा रही है । विचारों का आदान प्रदान , दूरसंचार की पहुँच आज विश्वव्यापी बनी है जिसने , परदेश में देस और देसी को परदेसी के समीप ला कर , एक समान और समतल भूमि प्रदान कर दी है - हम किसी को अपने से अलग माने, या अपने को ऊंचा या ज्यादा संभ्रांत या अलग मान कर चलें , ये अपने अपने नजरिये और सोच की बात है।
दुनिया तेजी से बदल रही है , हम कहाँ खड़े होकर इस की दौड़ में शामिल हों या ना हों ये हम पर ही , पूर्णतः निर्भर करेगा ।
आगे बात शुरू हुई दूसरी भारतीय अतिथि महिलाओं से और ये भी पता चला के ये अमरीकी कन्या , जैनों के पर्यूषण के दिन , उपवास भी कर चुकी है ! मेरे पति दीपक , जैन परिवार से हैं - हमारी शादी के बाद, मेरी सास जी ने मुझसे कहा ,
" क्या तुम , हमारे नवकार मंत्र को सुनोगी ? मैंने कहा,
" अवश्य ! और उन्हें सीखना भी चाहूंगी -- "
और तब सबसे पहली बार मैंने,
पवित्र मंगलकारी नवकार मंत्र सुने थे --
समन्वय , अन्य धर्मं को सीखने में बुराई नहीं है ,हाँ, उनमें से , किस तथ्य को और क्या अपनाया जाए और कितना नहीं ये भी हर व्यक्ति की सोच पे निर्भर करेगा -
आप भी शायद जानते होंगें " नवकार मंत्र " के बारे में ,
ये जैन धर्म का पवित्र मंत्र है।
आप भी सुनिए ....आवाज़ है श्री लता जी की ...
ये एक अन्य की प्रस्तुति है - और जैन धर्म के लिए देखिये ये लिंक --
15 comments:
पढ़ कर अच्छा लगा। कुछ तो है जो अपने जैसा अहसास करा जाता है।
सुदूर देश में बचपन से सुनते आरहे मंत्रों का पुनरुच्चार कितना
कितना मधुर लगता होगा, यही कल्पना कर रहा हूँ !
बहुत ही बढ़िया...
यह जान कर तो बहुत ही सुखद लगा। जैन मूल्यों की बहुत जरूरत है उस देश को।
बहुत अच्छा लगा यह जान कर कि वहां यह सब है ..जो अपने होने का एहसास दिलाता है
यह जान कर बहुत ही अच्छा लगा।
आपकी इस पवित्र सोच को मेरा सलाम।
आहा अमेरिकी सुन्दरी साड़ी में बहुत सुंदर लग रही है ....भारतीय दर्शन लोगो को खींच लाता है.
नवकार महामंत्र तो
सर्व मंगल का सोपान है
और प्रतिमान भी.
इस पोस्ट के लिए
मेरी मंगल कामनाएँ
और आभार स्वीकार कीजिए.
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चन्द्रकुमार
आभार चित्रों और जानकारी के लिए.
''समन्वय , अन्य धर्मं को सीखने में बुराई नहीं है ,हाँ, उनमें से , किस तथ्य को और क्या अपनाया जाए और कितना नहीं ये भी हर व्यक्ति की सोच पे निर्भर करेगा।''
सही बात है। हर धर्म में ऐसा कुछ न कुछ है, जिसे अपनाया जाना चाहिये।
अभी कल ही मैने ग्रेटा के बारे में बात की जो हिन्दी फिल्मों की प्रशंसिका है और आज आपने इन महिला का जिक्र किया। वाकई ये महिला बिल्कुल नहीं लगती कि ये भारतीय नहीं है।
नवकार मंत्र !
आहा मेरी हर सुबह इसके जाप से ही शुरु होती है। और हाँ पर्यूषण के दिन उपवास तो बरसों से मैं भी करता हूँ। चातुर्मास में लहसुन, आलू प्याज भी बिल्कुल बंद।
और हाँ एक बात तो कहनी रह गई, जैन धर्म एक ऐसा धर्म है जिसे अपनाने के लिये जन्म से जैन परिवार में जन्म लेना अनिवार्य नहीं। ना ही यह किसी की बपौती है, जिसने इस धर्म को अपनाया वह जैन स्वत: ही हो गया।
आप सभी का बहुत आभार - टिप्पणीयाँ पढकर हौसला बढता है अपनी बातोँ को साझा करने के प्रति उत्साह भी रहता है
सागर नाहर भाईस्सा आये हैँ तो अच्छा लगा
आते रहीयेगा -
ग्रेटा के ब्लोग पर टीप्पणी की है -
ऐसे और पोस्ट लिखिए मन प्रसन्न हो जाता है !
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