वहीं पे ये कांस्य का शिल्प बना हुआ है, ये अश्व ! फूलों के बीच खडा है , आने जाने वालों के लिए कौतूहल का केन्द्र !
आज इतना ही ..........आगे और बातें करतें रहेंगें ......
मेरी, आपकी, अन्य की बात
लावण्यम----अंतर्मनशीर्षक में विषय-वस्तु के बीज समाहित होते हैं.लावण्यम----अंतर्मन इसी बीज का पल्ल्वीकरण है.हृदयेन सत्यम (यजुर्वेद १८-८५) परमात्मा ने ह्रदय से सत्य को जन्म दिया है. यह वही अंतर्मन और वही हृदय हैजो सतहों को पलटता हुआ सत्य की तह तक ले जाता है.लावण्य मयी शैली में विषय-वस्तु का दर्पण
बन जाना और तथ्य को पाठक की हथेली पर देना, यह उनकी लेखन प्रवणता है. सामाजिक, भौगोलिक, सामयिक समस्याओं
के प्रति संवेदन शीलता और समीकरण के प्रति सजग और चिंतित भी है. हर विषय पर गहरी पकड़ है. सचित्र तथ्यों को प्रमाणित करना उनकी शोध वृति का परिचायक है. यात्रा वृतांत तो ऐसे सजीव लिखे है कि हम वहीं की सैर करने लगते हैं.आध्यात्मिक पक्ष, संवेदनात्मक पक्ष के सामायिक समीकरण के समय अंतर्मन से इनके वैचारिक परमाणु अपने पिता पंडित नरेन्द्र शर्मा से जा मिलते हैं,
जो स्वयं काव्य जगत के हस्ताक्षर है.पत्थर के कोहिनूर ने केवल अहंता, द्वेष और विकार दिए हैं, लावण्या के अंतर्मन ने हमें सत्विचारों का नूर दिया है.पारसमणि के आगे कोहिनूर क्या करेगा?- डा. मृदुल कीर्तिAll sublime Art is tinged with unspeakable grief.
All Grief is a reflection of a soul in the mirror of life'SONGS are those ANGEL's sound that Unite US with the Divine.'
About me:
Music and Arts have a tremendous pull for the soul and expressions in poetry and prose reflects from what i percieve around me through them.
13 comments:
wah, chitron ke saath itna sunder chitran, sachmuch hi kabiletaarif hai.
चलिये आपके साथ साथ फोटो में हम भी घूम लिए. बहुत बढ़िया फोटो आई हैं.
खूब ललचाया आपने चित्रों से।
वाकई ललचाने वाली पोस्ट है।
सैर करके मज़ा तो जरुर आया जी.
आगे कब ले चलेंगी.
वाह मज़ा आ गया.. और लालच भी
जितनी सुंदर फोटो उतना ही सुंदर विवरण ।
आपके साथ हम भी घूम लिए और खूब मजा भी आया।
आपके शीर्षक से मुझे एक अंग्रेजी सिनेमा कि याद आ गई.. "रोड ट्रिप"..
वैसे बेकार और फूहड़ कॉमेडी है इसमें, मगर फिर भी अगर आप नहीं देखी हैं तो देख सकती हैं.. :)
वैसे रोड ट्रिप और वो भी बाईक से.. बस मुझे और कुछ नहीं चाहिये.. 100-150 किलोमीटर चलाने के बाद तबियत खुश हो जाती है.. :)
kitney sundar chitr hain....didi,batayiye to kaun si TRIP thii? :))
chalte rahe....
बहुत खूब... खुले मौसम में ऐसे ट्रिप का माजा... वाह !
सँतराम जी धन्यवाद -
समीर भाई आपको पसँद आया, खुशी है इस की :)
ज्ञान भाई साहब्,
दिनेश भाई जी,
अरे ललचाने की क्या बात है ?:)
अमरीका घूमने का मन बना लीजिये, और सफर शुरु ..
बाल कीशन जी, जल्दी ही और भी यात्राओँ का विवरण पेश करुँगी...
कुश जी, ममता जी,प्रशाँत जी, अभिषेक भाई, अनुराग भाई,
शुक्रिया ~~~
दोस्तोँ के साथ घूमना हो उससे अच्छा और क्या होगा है ना ?
पारुल, उनके काम के सिलसिले मेँ, अक्सर दीपक जी के सँग,मैँ भी चली जाती हूँ
हफ्ते मेँ ३०० मील से ज्यादा प्रवास हो जाता है , अब तो कम हुआ है पहले तो खूब्
लम्बी यात्राएँ कीँ हैँ ..
सभी का आभार व स्नेह
-लावण्या
PD,
i've seen that film ~
thank you for reminding the title with the same name !
Rgds,
L
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