Friday, June 6, 2008

श्री हरिवंश राय "बच्चन " जी के बड़े सुपुत्र , बंबई शहर में आए ...

जया बंगाल से हैं ..दीदी की माँ माई मंगेशकर जी गुजराती महिला थीं उनका नाम शुध्ध्मती था , और अम्मा भी गुजराती थीं ....

"दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए "...

ज़ंजीर (१९७५ ) : लता जी , रफी सा'की आवाजें , कल्याणजी आनंदजी का संगीत , लिखा था : प्रकाश मेहरा जी ने : १९७५ इसी साल , ये गीत भी सुना...." बनाके क्यूं बिगाडा रे " उसी फ़िल्म से ..........लता दी ने आवाज़ दी थी , लिखा था गुलशन बावरा ने ...

इसी फ़िल्म से देहली के निवासी , कलकत्ता में थोड़े समय चाय कम्पनी के लिए काम करने के बाद , अच्छी खासी नौकरी को किनारे करके , अरब समुद्र के किनारे बसी मुम्बई नगरी में , हिन्दी सिने कलाकार बनने की इच्छा मन में संजोये , हिन्दी भाषा के सर्वाधिक चहेते कवि श्री हरिवंश राय "बच्चन " जी के बड़े सुपुत्र , बंबई शहर में आए थे।

जैसा सर्वविदित है, " सात हिन्दुस्तानी " में अब्बास साहब ने सबसे पहले अमिताभ जी को काम दिया था। उनका काम सराहा गया परंतु सफलता का सेहरा बंधने में अभी देर थी। बच्चन जी चाचाजी, उस वक्त हमारे घर अकसर आया , जाया करते थे ........मैं उस वक्त मीठीबाई कोलिज जो मुम्बई के उपनगर , जुहू पे है वहां ,( स्टार कोलोनी के नाम से विख्यात,) -- जूहू स्कीम में, कालिज के दूसरे वर्ष में पढ़ा करती थी।

हम सहेलियों का विशाल ग्रुप था। टीना मुनीम का नाम है निवृति ..उससे बड़ी बहन थी भावना जो " क्लोज़ अप स्माईल टूथ पेस्ट " की मोडल थी और बहुत नाज़ुक, तराशे नैन नक्श वाली सुंदर कन्या थी ! उनसे बड़ी थी मेरी सहेली, क्षमा -- मुनीम बहनें ७ थीं सभी सुंदर और एक से बढ़ कर एक ! .

.....एक दूसरी सहेली थी , थी रुपा सोनेजी जिस को 'सोना - रुपा " कहकर सब पुकारते थे और वह बहुत ही पोप्युलर थी। फ़िर थी मेरी पक्की सहेली नीली पटेल .......जिसके साथ मैं , मुम्बई निगम परिवहन की , दोमंजिला लाल , बस से, खार के हमारे घर से, जुहू तक, आया जाया करती थी। फ़िर एक और सहेली थी..... " सुधा ", जो आज भी वहीं जुहू पे रहती है ..अपने भैया और भाभी के साथ ! शादी नही की मेरी , सुधाने !! ...... और आज भी हमारी दोस्ती वैसी की वैसी , पक्की है !

फ़िर एक और सहेली थी " भारती " जिस ने , दूसरे साल ही इंटर में, सुधा के भाई साहब " गौतम " से शादी रचा ली थी :)

......भारती के घर पे १ सुफेद - सी , बड़ी प्यारी गैया भी थी !! जी हां, सान्ता क्रूज जैसे, भीड़ भाड़ वाले , इलाके में , उनका घर बहुत बड़ा था ......जहां परिवार की ये गैया बगिया में बंधी रहती थी और उसके दूध में इलायची डाली जाती और केसर , जिसका आइस क्रीम हाथ से चलाये संचेवाले मशीन में बनता था -- हम सारी सहेलियां, मिलजुल के, कालिज के बाद , उनके झूले पे, झूलते हुए ऐसे , लाजवाब आइस क्रीम को , कई बार खाया करते थे। ये मधुर यादें हैं उस समय के बंबई शहर की ...जो आज बदल गया है।

अरे हां , मैं, बात कर रही थी अमित भैया की ...इंटर पास किया उस रात भी बच्चन जी चाचाजी के संग वे = (" अमित भैया " ) घर पर भोजन के लिए आए थे और बांये हाथ से" शेक हैण्ड " करते हुए मुझे बधाई भी दी थी -- ये बातें , शायद वे भूल गए होंगें पर मुझे याद है ..जैसे बहुत सी अन्य बातें भी याद करके सहेजी जाती हैं -- सुनिए ...यादें ....

जंजीर : निर्माता निर्देशक प्रकाश मेहरा की सफल फ़िल्म थी। इसमें, जया भादुडीअमिताभ ने काम किया था। जया उस वक्त तक सफलता हासिल कर चुकीं थीं जब् के अमिताभ की कोशिश जारी थीं। उस समय तक, उनकी शादी के बारे में कोई बात नहीं थी ना ही चर्चा में नाही किसी फिल्मी पत्रिका में !

जंजीर की सफलता ने , लोगों का ध्यान, अमिताभ की तरफ़ आकृष्ट किया। फ़िल्म गैंग वोर , मार धाड़ वाले फोर्मुला के साथ , नायक को काफी अभिनय करने का मौका देकर सफल हुई थी। मुझे अमिताभ के सपने में , उड़ता घोडा जो श्वेत है , बार बार , दीखालाया जाना उस समय काफी पसंद आया था।

बच्चन जी चाचाजी और तेजी आंटी अपने लाडले पुत्र की सफलता की कामना करते , इंतज़ार करते थे। ये भी कहा था उन्होंने , " अगर ये फ़िल्म में सफलता ना मिली , शायद , फ़िर देहली चले जायेंगें ..." खुदा की मरजी कुछ और थी अमित भैया की किस्मत का सितारा चमकने लगा था अब.......... और वे लोग बम्बईवासी हो गए ॥

नमक हलाल काफी देरी के बाद आयी जिसमें स्वर्गीय स्मिता पाटील ने नायिका के रूप में अमिताभ के साथ काम किया था इसे भी प्रकाश मेहरा ने ही बनाया था

उस वक्त तक, अमिताभ बच्चन अपनी पहचान बना चुके थे । अभिषेक का जन्म भी हो गया था , श्वेताम्बरा बड़ी बहन भी आ ही गयीं थीं!

नमक हलाल -- "पग घुंघरू बाँध मीरा नाची पर हम नाचे बिन घुंघरू के " : ~~~ http://www.raaga.com/channels/hindi/movie/H000146.html :

गायक किशोर कुमार की मस्ती भरी चुहलबाजी पे अमित खूब थिरके ..मुझे याद है, १० टिकेट, हमारे परिवार के लिए , आयीं थीं , " फ़िल्म देख कर बतलाईयेगा कि कैसी लगी " ...ख़ास तौर से पापाजी देखें यही इशारा था !

पापा जी ने अम्मा से कहा , " आज कुछ थक गया हूँ ...इसलिए , आज ज़ंजीर देखने .नही जा पाऊँगा !। तुम लोग चले जाओ सुशीला " बांद्रा उपनगर के गेलेक्सी थियेटर में हम २, ३ सहेलियों के संग तथा परिवार के सभी सदस्य फ़िल्म देखने चले गए।

हम लोग बड़े आराम से फ़िल्म देख रहे थे कि इंटरवल हुआ तब, हमारी आरक्षित टिकटों से २ सीट पीछे वाली पे हमने देखा आदरणीय ताऊजी डाक्टर हरिवंश राय बच्चन जी तथा माता जी तेजी आंटी भी हाजिर थे वहाँ ! बच्चन चाचाजी ने निराशाभरे स्वर में , उलाहना देते हुए कहा,

" तो हमारे परम मित्र, बन्धु नरेन जी नहीं आए ! " --

अम्मा को कहना पडा कि " वे अस्वस्थ हैं, सो नहीं आ पाये हैं " --

पापा जी तो ऐसे ही थे ! उन्हें सज धज कर कहीं जाने का शौक ही नहीं था। दूरदर्शन जाना होता, या श्रीमान राज कपूर साहब के घर या स्टूडियो में, या IIT पवई में लेक्चर देने जा रहे होते तब भी वे कुर्ता धोती पहने, ऊपर से कभी कभार जाकीट पहन लेते और चल देते !

दूरदर्शन से सीधा प्रसारण पूरे भारत भर में होता उसका कोई ख़ास इन्तजाम वे नहीं करते ...उनकी बुध्धि, परिपक्व सोच और वे जो भी बोलते थे, उसे सुनते हुए, बाहरी पहनावा या कपडे जैसी बातें गौण हो जाया करतीं थीं ॥

क्यूंकि पापा जी जब भी बोलते थे हरेक सुननेवाले को पक्का विश्वास हो जाता था कि, वे " माँ सरस्वती के वरद पुत्र की वाणी सुन रहे हैं ! "

पापाजी अक्सर खादी का सुफेद कुर्ता गर्मियों के मौसम में और सर्दियों में सिल्क का क्रीम कुर्ता पहनते थे - धोती सुफेद, करीने से पहनी हुई कई बार बारीक ज़री की किनार वाली ( जिसे लता दीदी बड़े प्रेम से, अपने पापा के लिए, कलकत्ता से खरीद कर लातीं थीं और बहुत मनुहार व आग्रह करके पापा जी को दे जातीं थीं )

तो कभी नीली या मरून रंग की किनार वाली ..........जिसे पापा जी ओपेरा हाऊस गीता प्रेस गोरखपुर की बड़ी पुरानी दूकान से खरीद कर लाते थे ढेरों किताबों और प्राचीन ग्रंथों के साथ यू पी। की चीजें वहां पर बढिया मिलतीं हैं । कुर्ता घोती पर क्रीम सिल्क का जाकीट पहनते ...और कुरते में सोने के मूंगे जड़े बटन पहनते थे और वैसा ही गहरा केसरी लाल रंग का गोलाकार मूंगा, अंगूठी में जड़ा हुआ दमकता था मुख पे पान की लाली से भरे मंद स्मित से होड़ लेता हुआ :)

उनके पास एक बड़ी पुरानी antique घड़ी थी जिसका dial, बादामी रंग का था --
( I forget the Make now ) ---

पापा, दीदी और अमित भैया की ऐसी यादें हैं जो आज भी भूलाये नहीं भूलतीं ...

aaah ............Memories ..........

-- लावण्या




20 comments:

Udan Tashtari said...

आपको यादों के सागर में गोता लगाते, सुनहरी सुनहरी यादों को संजोते देखना बहुत ही सुखकर लगा. आभार अपनी यादों को हमारे साथ बांटने के लिए.

sanjay patel said...

लावण्या बेन;
आप जब भी पुराने दौर का ज़िक्र करतीं हैं(ख़ासकर पापाजी का कालखण्ड )तो ऐसा लगता है जैसे भारत का सांस्कृतिक संकुल हमसे बतिया रहा है.कैसी अदभुत सात्विकता से भरे लोग थे वे.इसी वजह से ग्लैमर की दुनिया में भी सादगी के कलेवर सहज ही नज़र आ जाते है. आज का वैभव ओढ़ा हुआ लगता है ; पूरा बनावटी सा.बच्चन,पं.नरेन्द्र शर्मा,भगवती बाबू,धर्मवीर भारती,कवि प्रदीप,शैलेन्द्र जैसे लोगों ने मायानगरी मुंबई को सांस्कृतिक संस्कार दिया. अमिताभ बच्चन में महानायक होने के बावजूद जो भद्रता दिखती है वह उन्हें उसी विरासत से मिली जो ऊपर उल्लेखित नामों ने रोपी थी.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

संजय भाई ..
प्रोत्साहन के लिए,
सच्चे मन से शुक्रिया -
पापाजी की यादें मेरे ह्रदय से निकल कर आंसुओं के गंगाजल से पवित्र
होकर बह्तीं हैं तब हर याद एक प्रकाश के प्रीज़म से गुजरती है.
आप सच कह रहे हैं!
" अदभुत सात्विकता से
भरे लोग थे वे"
ये सारे महापुरुष हैं !
काल पुरूष / ईश्वर के ,
चुने हुए पुत्र व पुत्रियाँ
जैसे महादेवी जी थीं ...
आँख मींचते ही
सब ---------
साकार हो जाता है ...
-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई ,
सुखद लगता है,
अपनों से ,
मन की
बातें करना :)
-- लावण्या

दिनेशराय द्विवेदी said...

बच्चन जी के इन बड़े सुपुत्र के अभिनय के बारे में हमें भी बहुत कौतुहल रहता था। तब तक बच्चन जी की बहुत किताबें पढ़ चुके थे। हमारे यहाँ फिल्में साल साल भर देरी से आया करती थीं। तो सात हिन्दुस्तानी की स्क्रिप्ट जो पॉकेट बुक में प्रकाशित हुई थी, खरीद कर पढ़ी थी। बाद में फिल्म रिलीज हुई और आज तक नहीं देख पाए। कभी बेटी सीडी लाए तो देख पाएँगे।

Gyan Dutt Pandey said...

आपने यादों के सागर में गोते लगाये और सुन्दर मोती हमें निकाल कर दिये। धन्यवाद। पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी के विषय में जानकारी के लिये आभार।

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर! यादगार पोस्ट!

Ghost Buster said...

उस दौर के बारे में जानना बहुत रोचक लगता है और मन को भाता है. बहुत मिठास है आपकी लेखनी में.

कुश said...

बहुत सुंदर यादे पिरोइ है आपने इस पोस्ट में.. और भाषा इतनी स्पष्ट की एक एक शब्द को चित्र के रूप में देखा हमने.. बधाई स्वीकार करे

सतीश पंचम said...

रोचक है ... जारी रखें।

पंकज सुबीर said...

आपकी पोस्‍ट पढकर एक ही गीत याद आता है जाने कहां गए वो दिन । सचमुच समृतियों के गलियारे में विचरण करना कितना सुखद होता है मेरी एक कहानी है सुधियों का शहर जो कि नई दुनिया इंदौर में कुछ साल पहले प्रकाशित हुई थी वो कभी आपको भेजूंगा समय निकाल के पढि़येगा आप को अच्‍छी लगेगी । आज की पोस्‍ट में आपने जो सुधियों के कोहरे में गीत गाते हुए भ्रमण किया है वो अद्भुत है ।

mamta said...

आपके साथ यादों के समुन्दर मे तैरना अच्छा लगा।
शुक्रिया।

mast maula said...

yadden.. sirf do akshar lekin kitna lamba safar karayengi kuch kah nahi sakte.phir yadden sukhad ho to kahna hi kya.lavanya tumari yaddon ko padte-2 main to khud yaddon me doob gaya.
App bhagyashali hain jo aapne mahan logo ka saath paya hai.

bahut accha laga dhanyabad ek Mahanayak ke bare me aapni yadden baatne ke liye.

बालकिशन said...

यादों के झरोखे ऐसे ही होते हैं.
बहुत सुंदर तरीके से पिरोया आपने इन लड़ियों को पढ़कर अच्छा लगा.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बीते वक्त को ऐसे मशहूर किरदारों के साथ
अंतरंगता से जीना बहुत सुखद है.
खास कर तब, जब कोई आपकी तरह
सहज,सीधी और सुलझी हुई
अनुभूति बाँटने की पहल करे....
और तब भी जब यादों का ये सफ़र
देखी हुई आँखों से अतीत को
देखने का मौका मुहैया कराये !
========================
शुक्रिया
डा.चंद्रकुमार जैन

डॉ .अनुराग said...

आप की यादे भी खूबसूरत है....इन्हे ओर बांटिये .....पढ़कर आनंद मिला.....

Abhishek Ojha said...

खूबसूरत यादें ... और ले आइये.

Harshad Jangla said...

Lavanyaji

Koi Lauta De Mere Bite Hue Din....

Ek Tha Bachpan ,Chota sa Nanha sa Bachpan, Bachpan ke woh Babuji the, achche sachche babuji the....
Kalay Tasmai Namah.
Tehina Divasa Gata.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अनूप भाई,
घोस्ट बस्टरजी:),
कुश जी,
सतीश जी,
ममता जी,
मस्त मौला जी,
बाल कीशन जी,
डा. चँद्र कुमार जैन जी,
अनुराग भाई,
अभिषेक जी,
हर्षद भाई
और पँकज सुबीर जी,
अवस्य आपका आलेख भेजियेगा --
आपकी टिप्पणीयोँ के लिये आभार
- लावण्या

Anonymous said...

Lavanya ji, Namaskaar,

Humne school mein jab Harivansh rai Bacchan ji ka kavi parichay padha, to sabhi friends ne baat ki yeh amitabh ji ke pitaji hain. Aur yeh jaan kar hume parichay padhne mein adhik interest aaya... aur us mahan hasti ko samjha... Usi tasveer ko dusre rukh se dekha ki Kavi bachan ji ke suputr Mumbai aaye... Ye alag angle tha... Bahut maza aya. A