Sunday, June 29, 2008

भीगी भीगी रुत में ,



भीगी भीगी रुत में ,

भीगे भीगे से ये अहसास

भीगी भीगे मौसम में ,

भीगे लम्हों की ये प्यास !

जादू सा छाया है हरसू ,

कोहरे की चादर फ़ैली है ,

धुन्धलाये से नज़ारे ,

गम सुम चाँद तारे हैं !

ऐसे में कैसी ये आहट,

झांझरी रुन झुन करती ,

फिजाओं में तैर जाए

ये किसकी है आहट,?

तुम चलो चल पड़े जहाँ

तुम रुको , थम जाए समा

दिल का धड़कना फ़िर बेवजह ,

आप आए सनम जो अब यहाँ !

मानसून विंड्स

मलयानिल सुगंध आई आली , फ़िर भर आए बदरा काले ~

दक्षिण दिशा से उठते झुक झुक कर कुछ रूकते , महासागर का जल पीते !

लंका - द्वीप निहारे , नारकेलि के वृक्ष पुकारे, पत्तों के मुकुट हिल कर कहते ,

तुम , रूक जाओ बदरा काले ! घन बरसो मुसलाधार !

मंथर गति से आगे बढ़ते , आन्ध्र , कर्णाटक से मुड़ते ,

गोआ से फ़िर ले जीवन संगीत , दक्षिण पठार पर बरसते !

फिर , भर आए बदरा काले !

चल गज्गामिनियों सी चाल , उठाए रोम रोम में ज्वाल

सन - सनसनन सन , सुनवाते , फ़िर महाराष्ट्र पर छाते !

लो , फिर , भर आए बदरा काले !

तृप्त हो आहला रस सब गाते , मयूर भी देखो नृत्य दिखाते ।

गाँव शहर , जन जीवन पर, उमड़ घुमड़ छा जाते ,

सम दर्शी अमृत वर्षा बरसाते !

आली , यूँ काले बदरा घिर आते !
- लावण्या

Saturday, June 28, 2008

पाती एक अजानी


मन से मनको लिख रही हूँ,

पाती एक अजानी प्रियतम !

पाती मेँ प्रेम - कहानी !

तुम भी हामी भरते जाना, सुनते सुनते बानी ॥

फिर कह रही कहानी !

कहुँ, सुनाऊँ, तुमको प्रियतम,

था राजा या रानी ? सुनोगे क्या ये कहानी ?

सुनो, एक थी रानी बडी निर्मम !

पर थी वह बडी ही सुँदर !

ज्यूँ बन उपवन की तितली !

गर्वीली, मदमाती, बडी हठीली !

एक था राजा, बडा भोला नादानरखता सब जीवोँ पर प्रेम समान !

बडा बलशाली, चतुर, सुजान !

सुन रहे हो तो हामी भरना अब आगे सुनो कहानी !

भोर भए , उगता जब रवि था,

राजा निकल पडता था सुबही को,

साथ घोडी लिये वह "मस्तानी"

सुनो, सुनो, ये कहानी !

छोड गाँव की सीमा को वह,

जँगल पार घनेरे कर के,आया, जहाँ रहती थी रानी !

अब आगे सुनो, कहानी !

रानी रोज किया करती थीगौरी - व्रत की पूजा,

नियम न था कोई दूजा ~

छिप मँदीर की दीवारोँ से,देखी राजा ने रानी -

मन करने लगा मनमानी !

किसी तरह पाऊँ मैँ इसको,हठ राजा ने ये ठानी !

वह भी तो था अभिमानी !

पलक झपकते रानी लौटी,

लौट चले सखीयोँ के दल

मची राजा के दिल मेँ हलचल !

पाणि - ग्रहण प्रस्ताव भेज कर ,

राजाने देखा मीठा सपना दूर नहीँ होँगेँ दिन ऐसे,

हम जब होँगेँ साजन - सजनी !

रानी ने पर अपमानित करके,

ठुकराया उसका प्रस्ताव !

क्या हो, था ही हठी स्वभाव !

आव न देखा, ताव न देखा,

राजा ने फिर धावा बोला-

अब तो रानी का आसन डोला !

बँदी बन रानी, तब आईँ राजा के सम्मुख गई लाई

कारा गृह मेँ भेज दीया कह, "नहीँ चाहीये, मुझे गुमानी !

ना होगी मेरी ये, रानी ! "

एक वर्ष था बीत चला अब

आया श्री पुरी मेँ अब उत्सव !

श्री जग्गनाथ का उत्सव !

रीत यही थी, एक दिवस को,

राजा , झाडू देते थे ....मँदिर के सेवक होते थे !

बुढा मँत्री, चतुर सयाना ,

लाया खीँच रानी का बाना कहा,

" महाराज, ये भी हैँ प्रभु की दासी,- पर मेरी हैँ महारानी ! "

कहो कैसी लगी कहानी ?

सेवक राजा की ,सेविका से,

हुई धूमधाम से शादी--

फिर छमछम बरसा पानी !

मीत हृदय के मिले सुखारे

बैठे, सिँहासन, राजा ~ रानी !

हा! कैसी अजब कहानी !

जो प्रभु के मँदिर जन आयेँ,

पायेँ नैनन की ज्योति,

प्रवाल - माणिक मुक्ता मोती !

यहाँ न हार किसी की होती !

अब कह दो मेरे प्रियतम प्यारे,

कर याद मुझे कभी क्या,

वहाँ, हैँ आँख तुम्हारीँ रोतीँ?

काश! कि, मैँ वहाँ होती !


Friday, June 27, 2008

जैन सेंटर और पवित्र मंगलकारी नवकार मंत्र

जैन सेंटर
और, एक अमरीकी कन्या के साथ हम :)
गत सप्ताह , जैन सेंटर जाने का मौका मिला - ऐसे ,अकसर , ये मकान बंद रहता है , किसी की सगाई हो , विवाह का भोज या मृत्यु के बाद आयोजित सभा ही क्यों ना हो, जैन देरासर के साथ बना होल , खोल दिया जाता है। हमारे शहर के जैन समाज ने मिलजुल कर इस की स्थापना की और अब सारी धार्मिक व सामाजिक गतिविधियों का ये जैन सेंटर , अब , केन्द्र बन गया है। जहाँ कहीं भी भारतीय बस गए हैं, नए सिरे से , भारतीय मूल्यों की स्थापना करने के प्रयत्न किए गए हैं जिनसे समाज एक साथ मिल कर
अपनी परम्पराओं का निर्वाह करता रहे।
ये नहीं जानती परम्परा से संलग्न रहना ग़लत है या सही है -
ये हरेक का अपना निर्णय है , जिंदगी जीने का , हर पल , किस तरह बीते इस का भी --
यहीं मेरी मुलाक़ात इस सुंदर कन्या से हुई । साडी पहने बहुत सुंदर लग रही थी वो और ऐसे घूम रही थी मानो रोज ही साडी पहनती हो !
- सहजता से पहन रखी थी उसने साडी को और अपना लिया था भारतीय स्त्री का ये पहनावा !
- और एक और आश्चर्य की बात ये थी के उसकी माता जी ने भी साडी पहनी थी और पिता ने भी भारतीय पहनावा ! जबकि कई भारतीय पुरुषों ने अमरीकी पोशाक पहन रखीं थीं :)
इन लोगों ने भारतीय उत्सव को अपनी तरफ़ से , भारतीय पोशाक पहनकर एक तरह का सम्मान दिया था
मुझे हंसी भी आ रही थी ये सोचकर के सचमुच दुनिया गोल है !!
हमारी ये दुनिया , सिकुड़ती जा रही है । विचारों का आदान प्रदान , दूरसंचार की पहुँच आज विश्वव्यापी बनी है जिसने , परदेश में देस और देसी को परदेसी के समीप ला कर , एक समान और समतल भूमि प्रदान कर दी है - हम किसी को अपने से अलग माने, या अपने को ऊंचा या ज्यादा संभ्रांत या अलग मान कर चलें , ये अपने अपने नजरिये और सोच की बात है।
दुनिया तेजी से बदल रही है , हम कहाँ खड़े होकर इस की दौड़ में शामिल हों या ना हों ये हम पर ही , पूर्णतः निर्भर करेगा ।
आगे बात शुरू हुई दूसरी भारतीय अतिथि महिलाओं से और ये भी पता चला के ये अमरीकी कन्या , जैनों के पर्यूषण के दिन , उपवास भी कर चुकी है ! मेरे पति दीपक , जैन परिवार से हैं - हमारी शादी के बाद, मेरी सास जी ने मुझसे कहा ,
" क्या तुम , हमारे नवकार मंत्र को सुनोगी ? मैंने कहा,
" अवश्य ! और उन्हें सीखना भी चाहूंगी -- "
और तब सबसे पहली बार मैंने,
पवित्र मंगलकारी नवकार मंत्र सुने थे --
समन्वय , अन्य धर्मं को सीखने में बुराई नहीं है ,हाँ, उनमें से , किस तथ्य को और क्या अपनाया जाए और कितना नहीं ये भी हर व्यक्ति की सोच पे निर्भर करेगा -
आप भी शायद जानते होंगें " नवकार मंत्र " के बारे में ,
ये जैन धर्म का पवित्र मंत्र है।
आप भी सुनिए ....आवाज़ है श्री लता जी की ...
ये एक अन्य की प्रस्तुति है - और जैन धर्म के लिए देखिये ये लिंक --

Wednesday, June 25, 2008

ऐ ख्वाब .........तुम चले जाओ !


सपने वे नहीं होते जो हम सोते समय देखते हैं,

सपने वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते।”-

- सृजनशिल्पी के ब्लॉग पर एक सूक्ति।

http://srijanshilpi.com/?p=161

[ १ ]

ख्वाब .........तुम चले जाओ !

यूँही आ आ कर फ़िर , दबे पाँव ........लौट जाओ !

जब तुम आ कर चले जाते हो , क्यों अपनी निशानी छोड जाते हो ?

तुम आए तो थे , येही बस है , वही सुनहरी झलक दिखलाओ ,

जो बिखरी रहती है चेहरे पे ! हर चेहरे पर , तुम्हारे जाने के बाद

[ २ ]

ख्वाबों से धुआं उठ कर , कहता है किनारों को ,

हम लौट के आयेंगे फ़िर इन्ही मकामों को -

तेरी आंखों के उजालों में , हम , डूबते जायेंगें ,

पतवार मुहोब्बत की ले , साहिल तक आयेंगें !

कैसा है जुनून - ए - दिल , हर हाल पे बाबस्ताँ,

एक तू है निगाहों में , जले, शमा ज्यूँ आहिस्ता

क्यों प्यासे हैं लब मेरे , क्यों छाई उदासी है ?

क्यों चुप हैं दीवारें ? गमख्वार है क्यों जीना?

[ ३ ]

रहने भी दो ये वाहवाही , हैं ये टूटने के मंजर ,

गुमशुदा की हैं तलाशें , डूबते दिल की है आवाज़ !

ना साथ चाहिए , ना , मंजिल का हौसला ,

ना मांझियों के साहिल , ना , खोने का गिला !

दफना के आए हैं हम , हर रिश्तों को तमाम ,

भूले से आ न जाए , होठों पे तेरा नाम !

हैं याद के समंदर , ठहरी हुई है शाम ,

सब कुछ उदास - सा है , तेरी आरजू के नाम !

कैसे लिखूं मैं नाम तेरा , स्याही से आजकल ?

हो दिल में तुम समाये , मेहमान से बन कर !

चुप रहना ही बेहतर है , करना बर्फ पानी को ,

कहीं आग ना लगा दे , मेरे खौलते ख्याल !

तेरे रास्तों पे आख़िर , ना आए उम्र भर -

लब सी लिए हैं यारां , करते हुए सफर !

पर याद है की बरबस , आती है झूमके

बाँहें गले में डालने , हैं ये इल्तजा के काम !

हैं धड़कने अभी भी , रूह में वही आगाज़ ,

है आज भी लबों पे, हल्का सा तेरा नाम !

है सुकून मुझको यारब - दिल में तडप भी है ,

नही है तो एक तू ही , आंखों में जैसे ख्वाब !

तू ने मुश्किलें छुडाकर दी थी हमे पनाह ,

है आज भी जहन में, ठिठकी हुई सी आह !

कुछ देर को तो तनहा रहने दो जी हमे ,

यादों के झुरमुटों में , ठहरी हुई है शाम !

लंबे उदास साए , लहराते झील पर ,

तकता है मुहँ बांये, आसमान को ज्यों चिनार !

- लावण्या

Tuesday, June 24, 2008

सत रंग चुनर नव रंग पाग ! माया ~~

वर्षा मँगल
सत रंग चुनर नव रंग राग
मधुर मिलन त्यौहार गगन में ,
मेघ सजल , बिजली में आग .............
सत रंग चुनर , नव रंग पाग !
पावस ऋतू नारी , नर सावन ,
रस रिम झिम , संगीत सुहावन ,

सारस के जोड़े , सरवर में , सुनते रहते , बादल राग !
सत रंग चुनर , नव रंग राग !

उपवन उपवन , कान्त - कामिनी , गगन गुंजाये , मेघ दामिनी ,
पत्ती पत्ती पर हरियाली , फूल फूल पर , प्रेम - पराग !

सत रंग चुनर , नव रंग राग .....
पवन चलाये , बाण , बूँद के , सहती धरती , आँख मूँद के -
बेलों से अठखेली करते , मोर ~ मुकुट , पहने , बन ~ बाग़ !
सत रंग चुनर नव रंग पाग !

माया
माया दिखाती पहले धूप रूप की , दिखाती फ़िर मट मैली काया !
दुहरी झलक दिखा कर अपनी मोह - मुक्त कर देती माया !

असम्भाव्य भावी की आशा , पूर्ति चरम शास्वत आपूर्ति की ,
ललक कलक में झलक दिखाती अनासक्त आसक्तिमुर्ति की !

अंत सत्य को सुगम बनातू हरी की अगम अछूती छाया !

मन में हरी , रसना पर षड- रस , अधर धरे मुस्कान सुहानी !

हरी तक उसे नचाती लाती, हरी की जिसने बात न मानी !

शकुन दिखा कर अँध तनय को , हरी - माया ने खेल दिखाया !

संग्न्याहत हो या अनात्मारत आत्म मुग्ध या आत्म प्रपंचक ,

पहुँचाया है हर झूठे को , माया ने झूठे के घर तक !

लगन लगा कर , मोह मगन को , मृग लाल , जल निधि पार कराया !

अंहकार को निराधार कर , निरंकार के सम्मुख लाती !

गिरिजापति का मान बढ़ाने रति के पति को भस्म कराती !

नेह लगाया यदि माया से , निज को खो , हरी - हर को पाया !

अपनी समझ लिए हर कोई , करता रहता तेरी - मेरी !

वोह अनेक जन मन विलासिनी एक मात्र श्री हरी की चेरी !

मैंने इस सहस्ररूपा को , राममयी कह शीश झुकाया !

( रचियता : स्व पंडित नरेन्द्र शर्मा )

Monday, June 23, 2008

इतिहास का एक पन्ना

इतिहास का एक पन्ना :
भारत का इतिहास सीखाया था कई सारे शिक्षकों ने ..जो आज भी भूलाये नहीं भूलते ..एक थे पुरोहित सर, दुबले पतले, सुफेद हो रहे , कम हो गए केश , आर्मी कट से कटे हुए, खादी का बुश्कोट पहने , ब्लैक बोर्ड की तरफ़ मुंह किए , भारत के नक्शे पर बनाते , बिगाड़ते , सल्तनतों को , गद्दी पे बिठाते और कहीं जंग हो जाती , कोई राजा या नवाब मारा जाता , कई सत्ता अस्तित्व में आतीं और पुरोहित सर के इशारों पे , डस्टर से साफ़ हो जातीं !!
...ये पाठ ऐसे दीमाग में , भीतर तक पैठ जाते जिन्हें आजतक भूले नहीं॥
हर स्कूल में ऐसे ही समर्पित अध्यापक होंगें !
जैसे हमारे हुआ करते थे !
इतिहास और भूगोल , मेरे प्रिय , विषय रहे हैं।
समय एक इतनी लम्बी सीमा से परे की , काल रेखा है , जिसका , आधार , ऐसे ही ऐतिहासिक पात्र , हमें , सामने आकर और हमसे विदा लेकर, दीखला जाते हैं और ये सीख दे जाते हैं के हमारा समय कितना कम है यहाँ ...
ना कोई रहा है ना कोई रहेगा ,
ये दुनिया है फानी सो फानी रहेगी
ये माट्टी सभी की कहानी कहेगी ...
झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की वीरा गाथा के साथ ,
एक और कथा भी सूनी थी जिसे आज याद कर रही हूँ ...सुनिए ,
" शूर वीरता लिए लिए,गौरवान्वित किए किए ,

खूब लड़ी क्षत्राणी , दक्षीण को दी कुर्बानी

वोह चाँद बीबी - थी रानी !

अहमदनगर बचाया, अकबर बादशाह आया ,

चाँद बीबी ने धावा बोला, अकबर का दल तब डोला !

क्या , चाँद बीबी थी रानी !

बीजापुर और गोलकोंडा से मदद मांगी

इब्राहीम और कुतुब शाह दोनों से गोदावरी तल की ,

सुरक्षा , उसने मांगी

वोह चाँद बीबी थी रानी !

आगे भी अधूरी गाथा है , झुकता न वीर रानी का माथा है !

पर लहू लुहान , कट जाता है !

हामिद खान की दगा बाज़ी ने , रानी को मौत दिलाई थी !

ये थी चाँद बीबी की कहानी ~~

[ - लावण्या ]

Sunday, June 22, 2008

श्री सीता - स्तुति

श्री सीता - स्तुति :

सुमँगलीम कल्याणीम सर्वदा सुमधुर भाषिणीम

वर दायिनीम जगतारिणीम श्री रामपद अनुरागिणीम

वैदेही जनकतनयाम मृदुस्मिता उध्धारिणीम

चँद्र ज्योत्सनामयीँ, चँद्राणीम नयन द्वय, भव भय हारिणीम

कुँदेदुँ सहस्त्र फुल्लाँवारीणीम श्री राम वामाँगे सुशोभीनीम

सूर्यवँशम माँ गायत्रीम राघवेन्द्र धर्म सँस्थापीनीम

श्री सीता देवी नमोस्तुते ! श्री राम वल्लभाय नमोनम:

हे अवध राज्य ~ लक्ष्मी नमोनम:

हे सीता देवी त्वँ नमोनम: नमोनम: ii

[ सीता जी के वर्णन से सँबन्धित श्लोक ]

आज मेरी कविता आप के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ।

आशा है मेरी त्रुटियों को आप उदार ह्रदय से क्षमा कर देंगे -

रामायण से : सीताजी का विलाप : गीत है : सन सनन सनन जा जा रे ओ पवन

लता जी का गाया हुआ, राग है : चंद्रकौंस --

http://www.youtube.com/watch?v=UqHBfnNknfY

http://24.149.174.219/songs/film/hindi/biraajbahoo/suno_seetaa.mp3

This above link is of a A Rare Rafi Saab song Music :

Salil Chowdhry Film : Biraj Bahu

विनीत, -

- लावण्या


Saturday, June 21, 2008

गुलमोहर की छाँव मेँ !


वह बैठी रहती थी, हर साँझ,
तकती बाट प्रियतम की , चुपचाप
गुलमोहर की छाँव मेँ !
जेठ की तपती धूप सिमट जाती थी,
उसके मेँहदी वाले पैँरोँ पर
बिछुए के नीले नँग से, खेला करती थी
पल पल फिर, झिडक देती ...
झाँझर की जोडी को..
अपनी नर्म अँगुलीयोँ से.....
कुछ बरस पहले यही पेड हरा भरा था,
नया नया था !
ना जाने कौन कर गया
उस पर, इतनी चित्रकारी ?
कौन दे गया लाल रँग ?
खिल उठे हजारोँ गुलमोहर
पेड मुस्कुराने लगा
और एक गीत , गुनगुनाने लगा
नाच उठे मोरोँ के जोड
उठाये नीली ग्रीवा थिरक रहे माटी पर
शान पँखोँ पे फैलाये !
शहेरोँ की बस्ती मेँ "गुलमोहर एन्क्लेव " ..
पथ के दोनो ओर घने लदे हुए ,
कई सारे पेड -
नीली युनिफोर्म मेँ सजे, स्कूल बस के इँतजार मेँ
शिस्त बध्ध, बस्ता लादे,
मौन खडे........बालक !
..........सभ्य तो हैँ !!
पर, गुलमोहर के सौँदर्य से
अनभिज्ञ से हैँ ...!!
--लावण्या

Friday, June 20, 2008

इन्डीयाना याने ?

स्टेट पक्षी कार्डिनल - ऐसा ही पक्षी ,
अक्सर दाना खाने हमारे यहाँ पर भी आता है! :)
स्टेट ऑफ़ इन्डीयाना
गिरिजाघर - ऐसे कई , अमरीकी शहरों से गुजरते वक्त दीख जाते हैं - अब कहीं कहीं मन्दिर, मस्जिद या गुरूद्वारे या थाई या बौध्ध धर्म के पूजा स्थल भी दीख जाते हैं -
एक नदी इसे चीरती है सो इसका नाम ऐसा रखा गया है !
मरीडीयन लाइन जो समय का बँटवारा करती है वो भी वहीँ से गुजरती है -
आधा इन्डीयाना १ आगे / पीछे रहता है ! जैसे , इस वक्त --
Friday 6/20/2008 1:23 pm EDT
Most of Indianais in theEastern Time Zone
80 CountiesIncluding Cities:BloomingtonFort WayneIndianapolis, South Bend, Muncie
The Current Time in Western Portions of Indiana is:
Friday 6/20/2008 12:23 pm CDT
Western Indianais in theCentral Time zone --
ईस्टर्न ज़ोन, सेन्ट्रल ज़ोन,माउन्टन टाइम ज़ोन और पेसेफीक टाइम ज़ोन ये ४ मुख्य समय को और अमेरिका को बाँट्ते खँड हैँ - देखिये ,
और ये दूजा घर !
जी हां ।". क्या कहा ? इन्डीयाना याने ? " अकसर लोग दुबारा पूछते हैं, जब् भी मैं कहती हूँ कि, " हम इंडियाना जा रहे हैं ! " वे कहते हैं , "क्या ? आप इंडिया जा रहे हैं ? " मुझे फ़िर कहना पड़ता है , " नहीं ..नहीं ..हम लोग इन्डीयाना स्टेट जा रहे हैं !! " हमारे स्टेट ओहायो से उत्तर पश्चिम की दिशा में ये इन्डीयाना प्रांत आया है - इसकी राजधानी है, इन्डीयानापोलिस !! सन` १८१६ की ११ दीसंबर के रोज इसे प्रांत के स्वरूप में , अपनी पहचान हासिल हुई थी। इस का मुख्य पक्षी है कार्डिनल ! ये नुकीली चोंचवाला , लाल रंग का सुंदर पक्षी है।
यहाँ के मूल निवासी शौनी कौम के रेड इन्डीयन थे जिन का चीफ या सरदार टेकुमश बहादुरी के लिये विख्यात है।
मैँने इसके कई छोटे शहरोँ की यात्रा कयी बार की है जिनके नाम अजीब से लगेँगेँ आपको, जैसे कि, "गेरी इन्डीयाना " , वेलापरासीयो, गोशेन, फोर्ट वेयन नोबल्ज़्वील, कोकोमो, ऐन्डर्सन, टेर्रे होटे, मेरियन्, ब्लूमीँगटन, मेडीसन, न्यू एल्बेनी, एवान्ज़वील्, रीचमन्ड, लाफेयेट, हूज़ीयर हील्ज़ और मन्सी जो सबसे अधिक सँख्या मेँ अपराधीयोँ को फाँसी देने के लिये कुख्यात जिला है !! अक्सर जिस छोटे शहर के साथ "वील " लगा रहता है, वो मेरी समझ से,
वीलेज का ही रुप है !
Broad Ripple -
its a very scenic town a river runs through it & hence its Name :)
&
the Meridian Line goes through this Town too -- TIME LINE --
Beautiful Homes along the Bank -- God knows who all live there
यहाँ रेस कारोँ की स्पर्धा हर वर्ष होती है जो बहुत प्रसिध्ध है जिसे देखने दुनियाभर के शौकीन जमा होते हैं -- कॉल्ड इंडी ५०० !!
इस साल मोटर बाईक की दौड भी होनेवाली है जिसमेँ हिस्सा लेने "बाईकर कम्युनिटी " जो अपने आप मेँ एक अजीब, रोमाँचकारी वर्ग के बाईक के जाँबाजोँ और रसिकोँ की अलग सी दुनिया है उनके हजारोँ सवार अपनी अपनी लोहे की मोटर बाईक लेकर इन्डीयाना पहुँचेँगेँ ! वो समाँ भी देखने लायक होता है - शोर अलग से दील दहलाता है ! कई बाईकरज़ बडी ऊमर के भी होते हैँ इनमेँ वियतनाम के युध्ध से लौटे, कई सारे वोर वेट्रन्ज़ बहादुर भी शामिल होते हैँ जो अक्सर पूरे अमरीका मेँ बाईक पर बँजारोँ की तरह घूमते रहते हैँ और काले चमडे के तँग पेँट और काले जाकीटोँ मेँ लैस रहते हैँ और हार्ली डेवीडसन अमरीकी मोटर बाइकोँ मेँ सर्वाधिक प्रिय है -
इन्डीयाना के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखिये -- ये लिंक --
ये यहां के विख्यात रहवासी हैं - जिनमें से , जेम्स डीन जिसकी अल्पायु में मौत हो गयी थी वे बहुत प्रसिध्ध हैं उसी के जन्म स्थान वाले शहर से भी एक बार गुजरना हुआ था - लिस्ट लम्बी है -- देखियेगा
Famous Natives People listed are almost always native to the state। We do (on occasion) include those that have either lived within a state for most of their adult life, or have made a significant contribution to the state in their personal endeavors। George Ade columnist, playwright J। Ottis Adams artist William Afflis football player, wrestler Steve Alford basketball player, coach Joseph P. Allen astronaut Leon Ames actor Alison Bales basketball player Arija Bareikis actress Clint Barmes baseball player Julia Barr actress Birch Bayh II politician Evan Bayh politician Anne Baxter actress DaMarcus Beasley soccer player Joshua Bell violinist Steve Bellamy media entrepreneur Albert J. Beveridge historian, politician Larry Bird basketball player Blaine Bishop football player Bill Blass fashion designer Monte Blue actor Jeremy Boorda former chief naval operations Frank Borman II astronaut Otis R. Bowen politician Kenneth Bowersox astronaut Phil Bradley baseball player Donald Brashear hockey player Avery Brooks actor Mark N. Brown astronaut Donie Bush baseball player Dan Butler actor Earl Butz former u.s. secretary agriculture David Canary actor Maria Cantwell politician Max Carey baseball player Hoagy Carmichael composer Homer Capehart politician Jared Carter poet William Merritt Chase artist Calbert Cheaney basketball player Mark Clayton football player Rosevelt Colvin football player Lou Criger baseball player Mary Jane Croft actress Benjamin Sherman "Scatman" Crothers actor, singer George Crowe baseball player George Joseph "Nig" Cuppy baseball player William "Will" Cuppy humorist, literary critic Chad Curtis baseball player Jay Cutler football player Jim Davis cartoonist, creator garfield James Dean actor Eugene V. Debs labor union leader, politician Ken Dilger football player John Dillinger bank robber Terry Dischinger basketball player Major Dodge actor Katie Douglas basketball player Lloyd C. Douglas author Theodore Dreiser author Paul Dresser songwriter Kenneth "Babyface" Edmonds songwriter, musician Anthony "Tony" England astronaut William Hayden English politician Mike Epps actor, comedian Carl Erskine baseball player Trai Essex football player Chad Everett actor Jason Fabini football player Bianca Ferguson actress Jenna Fischer actress Carl G. Fisher founder indianapolis motor speedway John W. Foster journalist, diplomat Janie Fricke singer Bob Friend baseball player Vivica A. Fox actress Brendan Fraser actor William "Bill" Gaither singer, songwriter Bill Garrett basketball player Katie Gearlds basketball player Will Geer actor Jeff George football player Ron Glass actor Walter Gresham statesman, jurist Bob Griese football player Virgil "Gus" Grissom astronaut Rex Grossman football player Charles A. Halleck politician Clifford Hardin former u.s. secretary agriculture Krystal Harris singer, songwriter Phil Harris singer, songwriter John Milton Hay diplomat, statesman Will H. Hays former u.s. postmaster general Bobby Helms singer Florence Henderson actress Billy Herman baseball player Paul "Tony" Hinkle coach, inventor orange basketball Gil Hodges baseball player James Riddle "Jimmy" Hoffa labor leader, convict Drake Hogestyn actor Daniel Hollie wrestler Frank McKinney "Kin" Hubbard cartoonist, journalist Tony Hulman businessman, founder indy 500 Robert Indiana artist Kenny Irwin, Jr. auto racer Jackson Five quintet Janet Jackson singer Michael Jackson singer J. J. Johnson musician, composer James "Jim" Jones leader peoples temple Alex Karras football player Shawn Kemp basketball player Ken Kercheval actor Brook Kerr actress Greg Kinnear actor Mathias Kiwanuka football player Chuck Klein baseball player Don Larsen baseball player Don Lash long-distance runner Terry Lester actor David Letterman television show host Eli Lilly businessman, industrialist Elmo Lincoln actor Ross Lockridge, Jr. author Carole Lombard actress Shelley Long actress Richard "Dick" Lugar politician Peter Lupus actor Marjorie Main actress Mick Mars musician Thomas Marshall u.s. vice president Strother Martin actor Don Mattingly baseball player John T. McCutcheon cartoonist George McGinnis basketball player Jon McLaughlin singer, songwriter Steve McQueen actor Josh McRoberts basketball player John Mellencamp singer, songwriter Chief Matea potawatomi indians chief Michael Michele actress Brad Miller basketball player Sherman Minton jurist Mishikinakwa "Little Turtle" miami indians chief Wes Montgomery musician Jack Alvin "Alvy" Moore actor Oliver Hazark Perry Morton politician Bruce Nauman artist Harry Stewart New politician, journalist Ryan Newman auto racer Meredith Nicholson author Norman Norell fashion designer Elmer Oliphant football player Jane Pauley television journalist Bill Peet illustrator, story writer Mike Pence politician Amanda Perez singer Mike Phipps football player James Pierce actor Dan Plesac baseball player Sydney Pollack actor, film director, producer Cole Porter composer, lyricist Gene Stratton Porter author Edward Mills Purcell physicist, nobel laureate Ernest "Ernie" Pyle world war II journalist James Danforth "Dan" Quayle u.s. vice president Tony Raines auto racer Zach Randolph basketball player Orville Redenbacher founder orville redenbacher popcorn Edgar Charles "Sam" Rice baseball player James Whitcomb Riley poet Glenn "Big Dog" Robinson basketball player Scott Rolen baseball player Ned Rorem composer Axl Rose musician Jerry Ross astronaut David Lee Roth singer, songwriter Edd Roush baseball player Harland David "Colonel" Sanders founder kentucky fried chicken Everett Scott baseball player Zerna Sharp author, creator dick and jane readers Will Shortz crossword puzzle creator, editor Red Skelton comedian Connie Smith singer David Smith sculptor Walter Bedell Smith former cia director, ambassador T.C. Steele impressionist painter Ted Stevens politician Tony Stewart auto racer Izzy Stradlin musician David Stremme auto racer Dan Stryzinski football player Clement Studebaker auto, wagon maker (born in PA) Henry Lee Summer singer, musician Booth Tarkington author, pulitzer prize winner Marshall "Major" Taylor cyclist Max Terhune actor Twyla Tharp dancer, choreographer Sam Thompson baseball player Forrest Tucker actor Vincent Ventresca actor Kurt Vonnegut author Kristina Wagner actress Charles Walker astronaut Lewis "Lew" Wallace civil war union general, author, statesman Steve Wariner singer, songwriter Michael Warren actor Clifton Webb actor, dancer, singer Bonzi Wells basketball player Ryan White aids activist Claude Wickard former u.s. secretary agriculture Wendell Wilkie political leader Cy Williams baseball player Deniece Williams singer, songwriter Robert Wise film editor, producer, director Davis Wolf astronaut John Wooden basketball player, coach Rod Woodson football player Jo Anne Worley actress Wilbur Wright co-inventor of the airplane Richard "Dick" York actor Rollie Zeider baseball player Frank Urban "Fuzzy" Zoeller golfer

Thursday, June 19, 2008

जनम जनम के फेरे

जनम जनम के फेरे:

पेरिस ऐयर पोर्ट से जब तक हवाई जहाज ने उडान भरी, शोभना , अपना आँसुओँ से गीला चेहरा , अपनी सीट के साथ लगी खिडकी से सटाये, विवशता, क्षोभ और हताशा के भावोँ मेँ डूबती उतरती रही। फ़िर अपना छोटा सा मलमली रुमाल ,कोट की जेब से निकाल कर उसने लाल हो रही आँखोँ से लगाया। आँसू सोखे ही थे कि फिर कुछ बूँदेँ निकलकर बह चलीँ ! पेरिस हवाई अड्डे की रोशनियाँ विमान के टेक ओफ की तेज गति के साथ उडान भरते ही धुँधलाने लगीँ... उसने आस पास नज़रेँ घुमाईँ तो देखा कि कुछ यात्री अपनी सीटोँ के हत्थोँ को कस कर थामे हुए थे। कुछ लोगोँ ने आँखेँ भीँच लीँ थीँ । किसी के दाँत से ओठोँ को दबा रखा था .. तो कुछ लोग बुदबुदा रहे थे! शायद प्रार्थना कर रहे होँ ! हर मज़हब के देवता से दया की भीख माँग रहे थे ऐसे समय मेँ फँसे ये सारे इन्सान जो उसके सहयात्री थे.
शोभना ने मन ही मन कहा,

" ये पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बढती जा रही यान की दूरी का प्रभाव था जो ये हाल किये था तब एक माँ मैँ भी तो हूँ ! मुझसे अलग होते मेरे बच्चोँ को क्या मेरी कमी नही खलती ? "

शोभना पर विमान की उडान का कोई खास असर नही हुआ वह अपने आसपास की घटना से मानो बेखबर थी क्योँकि उसका मन तो अब भी भारत मेँ अपनी ससुराल के द्वार पर विवश होकर मानोँ वहीँ ठिठका हुआ, अब भी खडा था !

शोभना पूरे १० सालोँ के बाद ही भारत लौटी थी। भारत ! उसका प्रिय भारत मानोँ किसी दूसरे सौर मँडल का कोई ग्रह , या एक सितारा बन गया था , उसके लिये ! उस की पहुँच के बाहर ! अरे ! सितारे और सारे ग्रह , नक्षत्र तो वो देख भी लेती थी स्याह होते आकाश मेँ टिमटीमाते हुए. जब भी , देर से, सारा दिन काम करके थकी माँदी अपने वृध्ध माता , पिता के साथ जब वह कोन्डो ( Flat ) के लिये लौटती थी तब नज़रेँ आकाश की ओर उठ जातीँ और वो सोचती, बच्चे भारत मेँ शायद सूर्य को देख रहे होँगेँ अगर यहाँ रात घिर आयी है तो ! भारत तो बस अब उसके सपनोँ मेँ ही दीख जाता था और दीखाई देते थे उसके दो बेटे !
दीव्याँश और छोटा अँशुल !

कितने कितने जतन करके उन्हेँ बडा किया था शोभना ने ! हाँ सास जी मधुरा माहेश्वरी जी भी अपने दोनोँ पोतोँ पर जान छिडकतीँ थीँ । देवरजी सोहन भैया भी कितना प्यार करते थे दोनोँ बच्चोँ को !

" हमारे प्रिँस हैँ ये " हमेशा ऐसा ही कहा करते थे ! उस के साथ शोभना को ये भी याद आया कि फैले हुए भरे पूरे ससुराल के कुनबे के रीति रीवाज़ोँ , त्योहारोँ, साल गिरह के जश्न जैसे उत्सवोँ के साथ उसे २४ घँटोँ का दिन भी कम पड जाया करता था. २०, २५ लोगोँ का भोजन, चाय, नाश्ता तैयार करवाना, बडी बहू होने के नाते हर धार्मिक अनुष्ठान मेँ उसका मौजूद होना अनिवार्य था , साथ साथ बडोँ की आवभगत, मेहमानोँ के लिये सारी सुख सुविधा जुटाना ये सारे काम उसी के जिम्मे हुआ करते थे.
रात देरे से , चौका निपटाकर वह सोने जाती तब तक उसके पति धर्मेश, पीठे किये सो रहे होते - कई बार, खिन्न मन से चारपाई पर लेटते मन मेँ उभरे अवसाद को वह कहीँ गहरे गाड देती और ईश्वर को नमन कर के थक के चूर हुई शोभना को कब नीँद आ घेरती उसे पता भी नही चलता !

- कब दिन बीते, सालोँ साल गुजरे, उसे पता ही न चला ! पर, शोभना का वैवाहिक जीवन मँझधार मेँ डूबती उतरती नैया की मानिँद हिचकोले खा रहा था। इस बात से शोभना मुँह मोड न पाती थी।
धार्मिक उतसवोँ पर, परिवार के लिये सास ससुरजी पानी की तरह पैसा बहा देते और जब जब उसे बच्चोँ की स्कुल के लिये कीताब, या फीस देनी होती या डाक्टर परिमल सेठना के पास उन्हेँ ले जाना होता , या उसे खुद की जरुरतोँ के लिये केमिस्ट की दुकान जाना पडता और वह अपने पतिसे पैसोँ की माँग करती , धर्मेश दो टूक जवाब देते,

" मेरे पास कहाँ है पैसा ! सारा काम काज बाबुजी देखते हैँ उन्हीँ से जाकर माँग लो ! "

कई बार वह हार कर बाबुजी के पास जाती या मधुरा जी से कहती , तब भी , वे लोग किसी ना किसी काम के बहाने यहाँ वहाँ हो जाते. पैसा जब माँगने पर भी न मिलता तब शोभना की हताशा खीझ मेँ बदल जाती ! कई बार ऐसे बहाने भी बनाये जाते,

" कुछ दिनोँ बाद बील दे देँगेँ बहु, कुछ दिनोँ बाद ले जाना -- "

ऐसा बार बार होता तब उसे भी सँकोच होने लगा था. शोभना भीतर ही भीतर तिलमिलाने लगती,

" कोल्हू का बैल बनी बडी बहु की बस यही औकात है ! आखिर हर बार मिन्नतेँ करनी होँगीँ मुझे ? बच्चोँ से जब ये सभी प्यार करते हैँ तब उनकी देखभाल, शिक्षा की जिम्मेदारी भी क्या सँयुक्त परिवार का जिम्मा नही ? ये कहाँ का न्याय है ? नही नहीँ , ये सरासर अन्याय है ! कब तक इस तरह घुटती रहूँगी मैँ ? "

वो सोच सोच कर परेशान हो जाती ! सँयुक्त परिवारोँ मेँ ऐसे भी होता है, किसी का दम घुट जाता है तो कोई जिसके हाथ मेँ सत्ता की बागडोर है, पैसोँ का व्यवहार जो थामे हुए हो वे मौज करते हैँ मनमानी करते हैँ और शाँत घरोँ मेँ, सभ्य रीत से फैलता है - एकाकीपन !

ये विडम्बना ही तो है आधुनिक युग की ! कबीर जी ने सही कहा था, " दो पाटन के बीच मेँ बाकी बचा न कोई ! "

यहाँ कोई अदालत या कचहरी नहीँ जो न्याय, व्यवस्था देखे - एक दिन जब उसने अपनी माँ से दबी जबान मेँ कहा कि,

" माँ , मुझे रुपयोँ की जरुरत है "

तब रमा देवी भाँप गईँ कि, उनकी लाडली बिटिया दो कुलोँ की लाज बचाये, आज माँ से माँग रही है अपनी बिखरती गृहस्थी के बचाव के लिये सहारा और माँ ने फौरन कुछ रुपये अलमारी से निकाल कर उसके हाथोँ पे रखते हुए, शोभना की हथेली को उन पैसोँ पर अपने काम्पते हाथोँ से ठाँक दिया था , बेटी की इज्जत माँ ही तो ढँकती है आखिर!

माँ के कहने पर कुछ दिनोँ बाद उसके पिताजी एक दिन उससे मिलने आये थे उसकी ससुराल और आवभगत से निपटकर शोभना को अपने साथ एक स्थानीय बैँक मेँ ले जाकर उन्होँने पूरे ५०,००० हज़ार रुपये जमा करवाये और कहा था ,

" बेटा, जब भी जरुरत हो इसी खाते से ले लेना " - और प्यार से उसका माथा सहलाते हुए, " मेरी अच्छी बिटिया ?"

धीमे से कहकर बाबुजी लँबे लँबे डग भरते हुए,पीछे मुडकर देखे बिना, तेजी से शोभना को बैँक के बाहर अकेली खडा छोड कर चले गये थे !

उनकी सीधी पीठ को गली के पार ओझल होता देखती रही थी वह - और फिर लम्बी साँस लेकर घर लौट आयी थी वह ! हाँ घर वही ससुराल ही तो अब एक ब्याहता का घर होता है ! ऐसे उदार पिता श्री धनपतराय उसे मिले जो बिटिया का सँसार एक बारगी फिर सँवार कर चले गये थे। सज्जन मनुष्य ऐसे ही तो होते हैँ नेक चलन के भले इन्सान बाबा ने शादी के समय भी समधियोँ की खूब आवभगत की थी हर तरह से उन्हेँ सँतुष्ट करके ही बेटी को विदा किया था उन्होँने ! राजशाही ठाठ से सम्पन्न हुई शादी मेँ बेटी "पराया धन " होती है उसे कन्यादान देकर रमा देवी और धनपतराय जी ने अपना ये जन्म पुण्यशाली बानाने का गौरव अवश्य प्राप्त कर लिया था. अपने इस पराये धन को कुछ और धन से जोड कर, उन्होँने अपनी सुशील कन्या को ससुराल भेज कर , अपने मन को साँत्वना देते हुए कहा था,

" यही जगत की रीति है "

धर्मेश को बैँक के खाते के बारे मेँ कुछ दिनोँ बाद ही पता चला और कारण बहुत जल्दी उभर कर सामने आ गया जब शोभना ने, अपने खर्च के लिये और अपने दोनोँ बेटोँ के खर्च के लिये, ससुराल के किसी भी सद्स्य से पैसे माँगना जब बँद कर दिया तब अचानक धर्मेश को ये विचार आया कि मामला क्या है ? शोभना के मन मेँ कोई छल नहीँ था सो वह बैन्क की पासबुक अपनी साडीयोँ के साथ , सामने ही कबाट मेँ रखती जो धर्मेश ने देख ली थी और तब भी कुछ दिन वह अनजान बना रहा , सोचता रहा कि किस तरह , इस बैन्क खाते के बारे मेँ बात शुरु की जाये ! पर वह हिम्मत जुटा ही न पाया -

फिर कुछ महीने आराम से बीते. उपर से शाँत लग रहे वातावरण मेँ भी एक भीतर ही भीतर मानसिक सँताप की दहकती लकीर, कहीँ गहरे, फिर भी जल रही थी. उनके परिवार मेँ एक तरह की उद्विग्नता प्रवेश कर चुकी थी।

उसी बीच शोभना ने बी. एड. का डीप्लोमा हासिल करने का कोर्स भी शुरु कर दिया. बच्चे अब सारे दिन की स्कुल मेँ जाने लगे थे और ३.३० के बाद जब तक वे घर लौटते, शोभना भी भागती पडती अपना कोर्स निपटा कर उनका होम -वर्क लेने, अगले दिन का पाठ तैयार करने और उन्हेँ नाश्ता खिलाने घर पहुँच ही जाती. खूब मेहनत कर रही थी वह भी ! ससुराल के फैले भरे पूरे परिवार के पर्व, उत्सव, अतिथि सत्कार , पूर्ववत्` चलते रहे ।

कई बार, अतिथि समुदाय को नास्ता देकरशोभना अपने कमरे मेँ बेटोँ को बँद कर के पढाती... चूँकि बडी कक्षा की पढाई काफी कठिन हो चली थी वह कई बार सोचती ,

'टीचर का कोर्स उसे सही समय पर लाभ दे रहा था , सहायक सिध्ध हो रहा था जिस से वह अपने बच्चोँ को सही मार्गदर्शन दे पायी थी ! '

'अब दीव्याँश और अँशुल को लाभ हो रहा था और वे क्लास मेँ टोप करने लगे थे. इस बात का श्रेय भी बहु को न मिलता - परिवार यही कहता कि,

" ये तो हरेक माँ का फर्ज़ है ! "

शोभना चाह कर भी कभी ये न कह पाती कि धर्मेश निठ्ठलू है - काम करने से कतराते हैँ ! उनका परिवार भी कुछ नही कहता - काम पर जाते जाते दोपहर हो जाती , सुबह उठकर, स्नान के बाद पूरे चार घँटोँ तक धर्मेश पूजा पाठ करते मानोँ अपना नाम ही चरितार्थ करते ! शोभना को ये अजीब लगता पर वह खामोश ही रहती - उसी अर्से मेँ ससुर जी का ह्र्दय गति रुक जाने से अचानक देहाँत हो गया ! सारा परिवार शोक सँतप्त था कि देवरजी सोहन ने घर के व्यवसाय पर अपनी पकड मजबूत करते हुए सारा अपने कब्जे मेँ कर लिया तो दूसरी ओर धर्मेश सँसार मेँ रहते हुए भी मानोँ विरक्त, सँयासी से बन गये !

शोभना के साथ उसके सम्बँध सिर्फ पूजा की सामग्री ग्रहण करने मेँ या बारामदे मेँ पुरखोँ के समय के लगे बडे से काठ के झूले पे बैठे बैठे रात्रि के आगमन की प्रतीक्षा मेँ उमस भरे , बोझिल दिनोँ की पूर्णाहुति करते हुए, इतने सघन हो उठते कि शोभना को अपना जीवन, व्यर्थ लगने लगता - उसका जीवन मानोँ बियाबान रेगिस्तान मेँ तब्दील हो चुका था जिसके अँत का न ओर दीखता था न छोर !

जैसे तैसे २ वर्ष ऐसी ही मनस्थिति मेँ शोभना ने गुजार दीये. बच्चोँ को यँत्रवत पढाती , घर के कार्य को निपटाती , गृहस्थी का भार उठाती वह युवावस्था मेँ वृध्धा सा महसूस करने लगी थी. थकी थकी रहती ।

बाबा और माँ भी उसी अर्से मेँ भाइयोँ के पास अमरीका चले गये थे. तब तो वह और भी अकेली पड गयी थी. एक दिन धर्मेश ने ही सुझाव रखा, कि ,

" तुम्हारे बाबा जो पैसा जमा करवा गये हैँ उन्हीँसे कुछ बाँधणी साडीयाँ, राजस्थानी अलँकार वगैरह लेकर क्योँ न हम अमरीका जायेँ और वहाँ प्रदर्शनी करेँ , अवश्य मुनाफा होगा ! "

तब शोभना विस्मय से देखती ही रह गई पर आखिर मान गई क्योँकि पहली बार उसके पतिने कोई नया काम करने के प्रति उत्साह दीखलाया था और उसे सहमत होना सही लगा था।

खैर ! वे दोनोँ ने ठीक जैसा सोचा था उसी तरह किया -- बच्चोँ को सासजी के पास छोडकर वे अमरीका गये, माँ, बाबुजी और भाइयोँने स्वागत किया और सारा इँतजाम भी करवाया और सच मेँ मुनाफा भी हुआ !

प्रदर्शनी सफल रही और सारा साथ लाया हुआ सामान बीक गया था. रात देर से , भैया के घर के कमरे मेँ धर्मेश ने सारा पैसा गिनकर सहेजा और कहा,

" कल मैँ यहाँ बैन्क मेँ जाकर खाता खुलवा देता हूँ ! "

पता नहीँ क्या हुआ कि शोभना के धैर्य का बाँध जो वर्षोँ से उसने किसी तरह, सम्हालकर रखा था वह भावावेग की नदी सा बह निकल और सारी सीमाएँ तोडकर बह चला ! वह एकदम से बिफर पडी,

" ना ! ये मेरे बाबा का दिया पैसा था धर्मेश , उन्हेँ उनका पैसा लौटा दो और बाकी का मुनाफे का हिस्सा मुझे दो धर्मेश ! "

पहली बार, हक्क जताते हुए, कुछ ऊँची आवाज़ मेँ शोभना ने ये कहा तो धर्मेश भौँचक्का रह गया !

" क्या कहा तुमने ? "

इतना ही बोल पाया तो साहस बटोर क शोभना ने कहा,

" पैसाबबलू ( दीव्याँश ) और मुन्ना ( अँशुल ) पर ही तो आज तक मैँने खर्च किया है ! "

तब धर्मेश ने शोभना को उसी के भाई के घर मेँ बैठे बैठे खूब खरी खोटी सुनाई, खूब डाँटा ! शोभना उसके कापुरुष रुप को , उसके मुखौटे को उतरा हुआ , हताशा से भर कर, देखती रही ! यही था उनके आपसी पति पत्नी के रीश्ते का अँत ! वे खूब झगडे थे ...उस रात, सारे बँधन टूट गये थे और बात " डाइवोर्स " शब्द पर आ रुकी - " तलाक " शब्द धर्मेश ने ही पहले कहा और रोती हुई शोभना को , छोड कर , टेक्सी मँगवाकर, माँ बाबुजी या भाई साहब को मिले बगैर, रात के अँधेरे मेँ , Air - port के लिये धर्मेश निकल पडा तब शोभना को उस के भग्न ह्र्दय और टूटे रीश्ते का अह्सास हुआ - और एह्सास हुआ अपनी आँखोँ के तारे जैसे दोनोँ बेटोँ के भारत मेँ रह जाने का !

बाद मेँ धर्मेश के वहाँ पहुँचने के बाद तो सास जी और देवर जी ने बच्चोँ को बहकाया कि,

" तुम्हारी ममी को डालर पसँद हैँ - तुम नहीँ ! पर हमेँ तो तुम पसँद हो ! "

१० साल तक शोभना अपने पैरोँ पर खडा होने का सँघर्ष करती रही ! बच्चोँ से बात करने के लिये गिडगिडाती रही परँतु, सब व्यर्थ ! बैन्क मेँ नौकरी करती रही तब क्रीसमस के दिन जब सारा अमरीका छुट्टी मनाता है उस वक्त भी शोभना ओवर टाइम करती रही।

आखिर जब पैसे ज़ुडे तब भारत गयी - श्वसुर गृह के द्वार पर खडी शोभना को उसके ससुराल के किसी भी सद्स्य ने अब कुमार हो चुके , उसी के बेटोँ से मिलने नहीँ दिया !

- अब सोहन देवर की शादी हो चुक़ी थी देवरानी भी आ गयी थी और घर के रसोइये ने बतलाया कि,

" नई बहु जी बच्चोँ का बहुत खयाल रखतीँ हैँ "

हजार मिन्नतेँ कीँ शोभना ने पर किसी ने एक ना सुनी - तब हार कर वह अमरीका वापसी के लिये हारे मन से प्लेन मेँ आकर बैठ गयी !

-- भारत से प्लेन उडा तब तक वह सँज्ञाहीन हो गई थी परँतु री फ्यूलिँग के बाद पेरिस रुककर दोबारा जब प्लेन उडातो जो रुलाई शुरु हुई कि बस, रुकी ही नही।

हाँ , ऐसी यात्राएँ भी जीवन मेँ होतीँ हैँ !

आज का समय :

अब शोभना अपना खुद का सफल व्यवसाय चलाती है। ड्राय क्लीँनीँग का बीझनेस है उसका जो उसने बैन्क से लोन लेकर शुरु किया और काफी कर्जा वह चुका चुकी है, सम्पन्न हो गई है, अपने बाबुजी व माँ को एक नये , बडे घर मेँ अपने साथ रहने के लिये भाइयोँ से आग्रह कर के वह लिवा लायी है. मर्सीडीझ कार भी खरीद की है अब उसने. स्वाभिमान की , स्वतँत्र परँतु मेहनकश जीँदगी जी रही है। अकेलापन आज भी उसके साथ है क्यूँकि उसने किसी दूसर मर्द को अपने पास आने ही नही दिया कभी। काम ही उसके जीवन का पर्याय बन गया है . उसके ससुराल मेँ उसे " धोबन " कहकर सम्बोधित किया जाता है जब भी दीव्याँश और अँशुल की मम्मी जो अमरीका मेँ रहती है उसके बारे मेँ कोयी बात निकल आती है तब!

- दोनोँ बेटोँ की पढाई का कोलेज का खर्चा शोभना ने ही यहाँ से मनी ओर्डर ड्राफ्ट भेजकर दिया जिसे वहाँ किसी ने साइन करके ले लिया था - अब बच्चे उस के साथ कभी कभार बात करने लगे हैँ , शोभना नियमित हर २, ३ दिनोँ मेँ उन्हेँ फोन करती रहती है।

शोभना को द्रढ आशा है कि बेटोँ का भविष्य सँवारने मेँ एक दिन वह अवश्य मदद करने मेँ सफल होगी - जैसा आजतक उसने किया है धर्मेश आज भी नित ४, ५ घँटे पूजा पाठ मेँ गँवाते हैँ , उनके परिवार का काम , सोहन लाल देवर जी ही देखते हैँ सासजी अपनी दादी माँ की भूमिका ओढे दिन गुजारते, नई पीढी को कोसती रहतीँ हैँ , कि

" हमारे जमाने मेँ ऐसा तो न था ! "

और विश्व के सबसे समृद्धदेश अमरीका मेँ , मेहनत करती शोभना,

शादी - ब्याह को आज भी " जनम जनम के फेरे " मानती है !

( Sad to say but this happens to b a True Story :(


-- लावण्या


Wednesday, June 18, 2008

अमिताभ की पसंद - संसार की सबसे खूबसूरत, १० स्त्रियाँ


भारत के फ़िल्म जगत के महानायक से एक बार ये प्रश्न पूछा गया था की वे बत्तायें , किन १० स्त्रियों को वे सबसे ज्यादा खूबसूरत मानते हैं -
और उनके सेलेक्शन से बनी लिस्ट इस प्रकार है --
जिसमें कोई भी विदेशी महिला का उल्लेख नहीं किया गया :) ना ही उनकी पत्नी ...ये नवम्बर, १५ १९९९ , आउट लुक इंडिया में छापा गया था --
# १ -- महारानी गायत्री देवी : वे इस सदी की सबसे खूबसूरत स्त्री हैं ! उनकी सुन्दरता, उनकी शख्सियत , उनका उठना, बैठना, उनका अपने आप को हमेशा शालीन बनाए रखना , उनके कपडों की पसंद, जयपुर शहर के लिए जिस तरह अध्ययन और शिक्षा के क्षेत्रों में तथा स्त्रियोँ के उत्थान के लिए दिया गया , उनका योगदान, उन्हें एक ऊंचाई दिलाता है --

मैं, अकसर जयपुर जाता हूँ, एक बार, उनके निजी महल में भी रहा था जो अब, होटल में तब्दील हो गया है , वहाँ मैंने कूच बिहार की रानी साहिबा की तस्वीर, मुख्य कोरीडोर में रखी हुई देखी थी जो महारानी गायत्री देवी की मां हैं, अब ये पता नहीं की वह चित्र था या फोटोग्राफ , परन्तु वे गायत्री देवी से भी ज्यादह सुंदर थीं ! चित्र में वे एक कुर्सी पर बैठीं थीं फ़िर थी उनकी शालीनता , वैभव तथा रूतबा तब , भी जाहीर हो रहा था -

तीन मूर्ति भवन में, एक बार , बहुत पहले महारानी पटियाला को भी देखा था जब मैं बहुत छोटा था जब वे कक्ष में, दाखिल हुईं थीं , ऐसे लगा मानो पूरा कमरा जगमगाने लगा हो ! ये एक क्षणिक मुलाक़ात होते हुए भी, स्मृति पटल पर आज भी अंकित है !

# २ -- वहीदा रहमान : उनकी संदरता , अनगढ पर विशुध्ध भारतीयता लिए हुए है। मेरे ख़याल से उनका सौंदर्य बिलकुल सही है - जिसके साथ , उनकी कलात्मकता , चित्रपट के परदे पर उभरती उनकी छवि , कार्यक्षमता ही नहीं वरन , एक नयी प्रथा सिध्ध करने की पहल , सटीक और नर्म एहसास , जो उनके युग में , अन्य किसी में नहीं देखे गए या जिन्हें देखने की , उनसे पहले किसी को आदत ही नहीं थी --

# ३ - ऐश्वर्या राय : आज के समय में शायद उनका चेहरा बिल्कुल परफेक्ट है ! उनके चेहरे में और शरीर में , कोई दोष नज़र ही नहीं आता ! उन्होंने जितने भी खिताब जीते हैं, वास्तव में वे उन सभी की हक्कदार हैं और साथ साथ अब वे सिनेमा के परदे पर भी अपना कलाकार का रूप प्रतिष्ठित करने लगीं हैं -

# ४ - नसीम बानो : सायरा की मां ! वे सुन्दरीं थीं ! उनके बोलने का अंदाज़ , चलने फिरने का लिहाज, सभी में एक गज़ब की सौम्यता थी - बेहद आकर्षक व्यक्तित्त्व की मालिक थीं वे और उनकी जवानी में वे भारतीय चित्रपट संसार की सबसे हसीं तारिका भी थीं !

# ५ - सावित्री देवी : जेमिनी गणेशन की पत्नी थीं वे और उनकी सुन्दरता हिन्दी सिनेमा की हिरोइन मीना कुमारी या सुरैया की तरह थी। जिसके साथ उनमें एक तरुनी का ुलबुलापन भी था जो उन्हें एक खुलापन व ताजगी देता था वे एक ऐसी अदाकारा थीं जिनमें एक तरह की सही समय पर , हर एक्शन करने की काबिलियत थी , अगर गीता बाली जो ख़ुद बड़ी सुंदर थीं उनसे मेल खाती सावित्री देवी की छवि थी जो परदे पर , कमाल करती थी -

# ६ - सुचित्रा सेन : बंगाल का जादू ही थीं वे, चित्ताकर्षक और प्रभावशाली ! उनके आवाज़ की तरँगेँ , गूँजतीं रहतीं थीं और उनके आंखों से सब कुछ कह देने की क्षमता बेजोड़ थी !

# ७ - माधुरी दीक्षित -- उनकी मुस्कान शायद जितनी भी स्त्रियों की हम आगे चर्चा कर चुके हैं , उन सभी से ज्यादा असर करने वाली है - सिनेमा के परदे पर ऐसी मुस्कान आज तलक , किसी भी सिने तारिका में , न देखी गयी थी ! उनकी मुस्कान इतनी असरदार है के उसके बाद कुछ भी कहने को , बाकी ही नहीं बचता ! उनकी आँखें और मुस्कान वाकई जबरदस्त हैं !

# ८ - लीला नायडू : अंडाकार चेहरा इतना परफेक्ट और शाही अंदाज़ लिए सुन्दरता ! दुःख है इस बात का के वे बहुत कम फिल्मों में दीखलाई दीं ! उनमें एक नाजुक एहसास और कोमलता थी जो दीलचस्प थी -

# ९ - मीना कुमारी : बेहद संजीदा , सुन्दर अदाकारा जिसे भारत की भूमि ने पैदा किया और उनकी कला को परवान चढाया था कला जगत ने ..जिसमें उनकी आवाज़ , उनकी शारीरिक सज्जा के साथ होकर भी बहुत महत्तवपूर्ण हिस्सा थी उनकी शख्शियत की ! उनकी आवाज़ , दिलकश होते हुए भी मानो घायल आत्मा की पुकार थी, फ़िर भी तहजीब लिए हुए , संजीदा किस्म की ! ये सारे गुन एक ही आवाज़ में हों ये दुर्लभ बात हो जाती है - उनकी आँखें निहायत खूबसूरत थीं जिनसे अकसर वे बातें किया करतीं थीं, चुप होने पर भी वे बहुत कुछ कह जातीं थीं ! ऐसी मीना जी थीं !

# १० - नव्या नवेली : ये मेरी नाती हैं ! शायद मैं इसीलिये भावुक हूँ ! अभी वे बहुत नन्ही सी बच्ची हैं ! फ़िर भी उन जैसी काबिल, समजदार , अपने आस पास से वाकिफ नन्ही स्त्री आजतक मैंने नहीं देखी ! सोच और दीमाग अभी से बड़ा ही परिपक्व है इनका ! किसी भी सभा या प्रसंग में, उनकी हाजरी से हर तरफ़ प्यार बिखर जाता है - इनकी आँखें और होंठ , बहुत , स्वाभाविक हैं , मुखर हैं ! इस उम्र के दूसरे बच्चों में कम ही देखा है ऐसा ..और मेरी मां हैं तेजी बच्चन ..जो सिख परिवार से थीं , संभ्रांत व कुलीन परिव्वर में पली बड़ी हुईं थीं वे और मेरे पिताजी से ब्याह रचाया था जो स्वयं हिंदू मध्यवर्गीय परिवार से थे , समय था १९४२ ! वे मेरे पिताजी की प्रतिभा में अटूट श्रध्धा रखतीं थीं ! उनकी कला और कविता और साहित्य के प्रति वे समर्पित थीं और सहारा देतीं थीं वही कम अंशों में, मुझमें भी विकसित हुआ --

वे दृढ व संतुलित मस्तिष्क की मालिक थीं , साहसी , प्रफुल्लित और अदम्य उत्साह से भरपूर रहतीं थीं वे ! जैसी वे ३० बरस की उम्र में रहीं होंगीं वैसी ही उनके अन्तिम दिनों तलक वे रहीं थीं !

uhttp://www.outlookindia.com/

( Translated from English By : Lavanya )








Tuesday, June 17, 2008

श्री राज सिँह डुँगरपुर - dada

दादा = श्री राज सिँह डुँगरपुर जी, लावण्या, दीपक्, सिँदुर व ब्रायन सीनसीनाटी मेँ
मेरे दादा --
Full Story of Indian CricketDungarpur's oral history of Indian Cricket
As a young cricketer he played with legendary CK Naidu and watched him cracking sixes. He played with Vinoo Mankad and saw the great cricketer struggling in poverty. Himself a first class cricketer he later managed Indian sides and later as one of the country's most successful cricket administrators he was closely associated with the rise of Indian cricket. But one of his toughest assignments was to manage the rivalry between Kapil Dev and Gavaskar. Raj Singh Dundarpur tells the full story of Indian cricket.To listen Click here (English)
& Here इस अ rare interview
http://midday.chalomumbai.com/news/nation/2004/october/93811.htm I came across this article... Dungarpur remembers Lata of 1959In 1959, could be August, I came to Bombay to do law। I told Dilip Sardesai's first cousin, Sopan Sardesai, that I can't exist without playing cricket.He told me that the only place that you could get cricket was at a Walkeshwar house, where Lata Mangeshkar's brother and his friends played tennis ball cricket. I said, "I'm not bothered by who plays, but I have to be there." They used to stay in a two-bedroom flat in a building behind the Walkeshwar house. She was in those days, I suppose, recording all day; nor was I hung up on seeing her. I just played and went back to my sister's house in Nepean Sea Road. But her family must have discussed that I had come, so she said, "We must offer him a cup of tea." I was invited to come up — I can't remember if it was raining. She was utterly charming; she came to see me off and gave me her car. They were celebrating nariyal poornima shortly and she invited my brother and me for dinner. Everybody was quite crazy about cricket and I was just a Ranji Trophy player. Sopan Sardesai and the Mangeshkar family lived in Nana Chowk, in what would be perhaps little above a chawl. From there, she went to Walkeshwar and then to Peddar Road. That's how I started to know her. I went for a couple of her recordings, and so on.She was into cricket before me. She had watched the Australian services team in 1945 and remembers Keith Miller very distinctly — who is perhaps the handsomest cricketer the game has ever known. She also said that she saw Mushtaq Ali and Amarnath play. But she, of course, sat in the north stand. I think she couldn't afford any other ticket.What struck me was her utter simplicity. She was a legend in 1959 and when I went for her recording, I realised the ease with which she completed her recording assignment.I think the hallmark of any entertainer (is) he must be able to display his art as if it's very simple. When you see Sobers, Gavaskar, Tendulkar or Mankad, they made it look as if there's nothing to it. So did she. In few minutes, the recording was over. I remember that she gave a sovereign to Prem Dhawan who had composed the lyrics and it was at the Bombay Sound Recording studio in Dadar. I kept on regularly meeting her. She was very easily accessible, but at that time she was recording from 9 am-9 pm.I didn't listen to her music then a great deal. She may remember (those song recordings), but I don't. She has an elephantine memory — she can even tell you what dress she was wearing that day. I think she has a split personality. Rub her the wrong way and she just won't take it — she's like a tigress. Once, an Income Tax commissioner's daughter was getting married. He sent her an invitation and then took the audacity to call her up and tell her to sing a couple of songs at the reception.She said, "I will definitely sing, but before that I will have a word with Mrs Gandhi and tell her that this is how her officers are treating us. I must take her permission, she is the Prime Minister of India. I must say how well we are being treated." He came by the next flight and apologised to her. But she would have spoken to her — Mrs Gandhi knew her extremely well. On her 75th birthday, she told me that Vajpayeeji, Advaniji, Sharad Pawar spoke to her and so many other politicians. I think I've been out with her for about 15-20 concerts around the world. In the 1975 concert for the Nehru Memorial Centre in London, my brother-in-law Lalit Sen was the Parliamentary secretary to Pandit Nehru. He was very close to Krishna Menon and he said, "Lalit, you must get Lata Mangeshkar to sing so that we can get funds for the Centre." Lalit asked me to speak to her. She said, "For Pandit Jawaharlalji, I will give a concert and not charge one pound. But I will only sing at the Royal Albert Hall."I asked her why and she said, "I'm supposed to be a leading singer of India. It is a prestigious hall. I owe it to my people not to sing in a university hall." She was the singer who filled the Royal Albert Hall for three days. I remember that when I came along with Dilip Kumar, she asked us to check how the acoustics were. So Yusufbhai, as I call him, stood at one end and I stood in the other. I remember the recordist said, "How can this frail girl sing barefooted in March? She'll get pneumonia." She sings barefooted because I think it's sacred. She wears a navratan ring that belonged to the late K L Saigal whom she never met. But her brother was a jeweller and Saigal's family fell on hard days and she bought the ring. She still wears it at recordings and public performances. Lata Mangeshkar can be childlike. When she got the Bharat Ratna, we were in London. She opened the flat and it was 11:30 at night. The phone was ringing.She picked it up and said, "Wow!" I said, "Hell! What is wow left for Lata Mangeshkar?" She said, "Rachna (her favourite niece) is telling me that I've got the Bharat Ratna." The phones never stopped till late in the night. The next morning — in London, you have to make a cup of tea yourself — I made one for her.She had her two, three medicines and I asked her, "How does it feel to be a Bharat Ratna?" She said, "Now that you ask me…bahut achha lagta hai."After that great song Ae Mere Watan Ke Logon, Panditji invited her to have a cup of tea. Indira Gandhi, with her two young sons, was persuading her to sing.She said, "Dekhiye, main to kisi ghar mein gati nahin hoon (I don't sing in anybody's house)."Just then, Panditji arrived. He said, "Indu, tu yeh ladki ko kya pareshan kar rahi ho (Why are you troubling this girl?)" She said, "Pappu, bacche so gaye the kal raat ko; inko suna nahin (The children were sleeping last night; they didn't hear her sing)." "To jab record hogi, to pet bhar ke sun lena (They can listen when her records come out)." He took her hand and said, "Chalo, main chai pilata hoon (Come, I'll give you tea)." She refused to sing in Pandit Nehru's house. But when Mehboob Khan got ill, Yusufbhai asked her to call him. When she called him, he said, "Tum 'Dheere se aaja re' telephone mein suna do, aur mujhe accha lage ga (you sing 'Dheere se॥' on the telephone and I'll feel better)." She sang straightaway — from Peddar Road to California.Everybody knows that I was extremely close to her — I am still close to her. I just spoke to her 15 minutes ago. This is a very personal matter. But we came from different backgrounds — '60s was very different. Perhaps, both were very attached to their respective families. It was one of those things that just didn't happen. But that has neither enhanced the relationship, nor has it reduced. She is the treasure house of my admiration and affection and I continue to be in touch with her.Mukesh once told me when we were having dinner in New York, "Raj Singhji to Aurangazeb hai."That means he hated music and understood nothing. My relationship was not built on music. People think I'm a connoisseur, but I find even half-an-hour very difficult to pass at a concert. But she watched the World Cup. An Australian was once doing research on her. While he was leaving, he asked if there was anything he could do for her.She asked for a signed picture of Don Bradman and got it. In 1983, we won the World Cup and N K P Salve asked her to raise money through a concert for the cricketers. She said, "Salvesaab, apne to mera wicket le liya (you have taken my wicket)." The net profit of that Nehru Stadium concert was about 45 lakh and each player got a lakh rupees. She built this great hospital in Pune. She saw her father die when she 12-13 years old without any medical aid in Sasoon Hospital.She promised herself that if she ever became anything, she would build this hospital in memory of her father so that other children wouldn't see their parents die without medical aid. One gentleman Sayeed Bhawan, I think from Oman, gave her Rs 6 crore in donation. He listens to her music, day and night. In tuti-phuti Hindi, he said that it was the least he could do for his sister. Now he's giving Rs 8 crore for her cancer research centre. She said that Madan Mohan was the music director who never attempted to replace her — all others did and came back to her. And Yash Chopra never took anybody but her. So she recorded those songs of Madan Mohan's and I believe that in less than a week, 11 lakh cassettes have sold and Yash Chopra has given her a new Mercedes Benz. On her 75th birthday, she was in a suite at the Oberoi. Before I went to Calcutta — I had to be there on September 28 — I had gone to wish her and just her family was there. She has been doing this for the past 20-25 years, she used to go to the Taj before. She is an avid shopper. If she ever got into trouble, it would be for the maximum number of perfumes. There's one thing that very few people know. Nobody realises, including her family members, what she has done for her family. This is her one distinct and incomparable commitment in life. She's like a Christmas tree, you shake it and goodies fall. These children have been thoroughly spoiled by her. She once heard a child cry in London. She knocked on this Egyptian couple's house, took the child in her arms and didn't go to sleep for the next five-six hours. That is Lata Mangeshkar. She's unbelievably kind. What hasn't changed in 75 years is her thirst for excellence. That's why she says sometimes that she doesn't want to sing anymore because she says, "I can't hit the notes that are high". I think it's a very rude thing to say (that she should stop singing). Can you ask anyone to stop eating? Music is her sacred vocation. She still packs in houses and sings extremely well. She's singing because she enjoys it. The song that I can listen to again and again is that song from Mughal-e-Azam, Bekas pe karam keejeye. It is in chaste Urdu and it is a prayer to God, "I'm so helpless, why don't you bless me?" When she sang it in South Africa once, there were a lot of Muslims from Cape Town. They went berserk. At Royal Albert Hall, the Pakistan High Commission had bought 300 tickets. But as the relationship was so poor, they didn't want to publicise it. They were spellbound.

Monday, June 16, 2008

हम पंछी एक डाल के


हम पंछी एक डाल के :
आहा देखिये कित्ते मजे से सारे पंछी, एक ही डाल पे बैठे हैं !!!
हिन्दी ब्लॉग जगत के लिखनेवाले भी इसी तरह , एक डाल पे बैठे हुए हैं ..अपनी अपनी बोली , गीत, ग़ज़ल, कहानी, व्यंग्य , कविता, साक्षात्कार इत्यादी लिख रहे हैं, अपनी बात रख रहे हैं ...
ये फ़िल्म बचपन में देखी थी ...
उसका ये गीत हम बच्चे खूब मौज में , साथ मिलकर गाया करते थे .......
काफी तलाश की वेब पे ...पर सिर्फ़ ये गीत ही मिला ...
संगीत : मोहम्मद रफी , आशा भोसले
संगीत निर्देशक : N Dutta गीतकार : P L Santoshi
कलाकार : Murad, David, Romi, Jagdeep, Satish Vyas, Mohan Choti, Roop Kumar
गीत के बोल हैं ; ~~
जिस घर के लोगों को सुबह झगड़ते देखा है
शाम हुई कि घर वही उजड़ते देखा है
अरे बनती नहीं है बात झगड़े से कभी यारोंअरे बनती बात को बिगड़ते देखा है अरे हम पंछी ( एक डाल के ) - २ -
संग संग डोलें जी संग-संग डोलेंबोली अपनी-अपनी बोलें जी बोलें जी बोलें जी
कोरस : संग-संग डोलें ... दिन के झगड़े दिन को भूलें रात को सपनों में हम झूलेंधरती बिछौना नीली चदरिया मीठी नींदें सो लें जी सो लें जी सो लें
कोरस : संग-संग डोलें ...

Sunday, June 15, 2008

महान रशियन पेंटर स्वेतोस्लाव रोरिक ( Thank you Mr.. घोस्ट बस्टर जी )

रोरीच जी की कलाकृति
श्रीमान घोस्ट बस्टर जी ने ये कहा था ...मैं जानती थी पापा जी रोरीच जी का हाथ थामे खड़े हैं ..परंतु उनके बारे में लिखा नहीं था जिसकी कमी , पूरी कर दी आपने ..बहुत धन्यवाद जो आप मेरा लिखा ध्यान से पढ़ते ही नहीं, मेरी कमियों को सुधार भी देते हैं ...

इस तरह की टिप्पणी मिलना , हौसला बढाता है और ज्यादा मेहनत करने की प्रेरणा देता है -

ये श्रीमान घोस्ट बस्टर जी ने कहा था ~~~
" पंडित नरेन्द्र शर्मा जी जिनका हाथ थामे खड़े हैं वे महान रशियन पेंटर स्वेतोस्लाव रोरिक (Svetoslav Roerich) हैं।

हिमांशु राय की मृत्यु के बाद सन् १९४५ में देविका रानी ने इनसे विवाह किया था। रोरिक की एक पेंटिंग सन् १९९८ में वडोदरा के संग्रहालय में देखने की याद है। नीले रंग का क्या ही शानदार प्रयोग था. अब तक आंखों के सामने है.

भारत सरकार रोरिक पर एक डाक टिकिट जारी कर चुकी है.

यहाँ देख सकते हैं। "

ये भी लिंक देखें -- रोरीच जी की कलाकृति यहां हैं -

http://www.roerich.kar.nic.in/art.htm

Saturday, June 14, 2008

मेरी आंटी जी श्रीमती कीर्ति चौधरी की यादोँ को नमन

कवयित्री कीर्ति चौधरी का निधन
जानती हूँ की समाचार पत्रों से सब पता चल ही जाता है फ़िर भी , आज मेरी कीर्ति आंटी जी की याद आ रही है जब् से ये दुखद समाचार पढे :(
याद है जब् बंबई , हमारे घर पर अंकल जाने-माने रेडियो प्रसारक ओंकारनाथ श्रीवास्तव जी के साथ वे आया करतीं थीं और, हम लोग भी उनके घर जाते, चाचीजी के हाथ की बनी उत्तर भारतीय रसोई खाते थे ...
..उस समय "अतिमा " उनकी बिटिया , जिसका नाम , हिन्दी कविता की शान सुमित्रानंदन पन्त जी ने दिया था , वो , उनकी बिटिया, नन्ही सी थी --
कम लेखन में ही बहुत समग्र विमर्श देकर गई हैं कीर्ति चौधरी
हिंदी नई कविता की जानी-मानी और मुखर कवयित्री कीर्ति चौधरी (१९३४ -२००८ ) का लंदन में निधन हो गया है.
उन्होंने भारतीय समयानुसार शुक्रवार की सुबह तीन बजकर 45 मिनट पर अंतिम साँस ली.
पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहीं कीर्ति चौधरी लंदन में रह रही थीं और वहीं उनका उपचार हो रहा था.
कीर्ति जी की कविताएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें
कीर्ति चौधरी तीसरे सप्तक की एक मात्र कवयित्री थीं.
‘तीसरा सप्तक’ (1960) के संपादक अज्ञेय ने 60 के दशक में प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और मदन वात्स्यायन जैसे साहित्यकारों के साथ कीर्ति चौधरी को भी तीसरा सप्तक का हिस्सा बनाया.
साहित्यकार केदारनाथ सिंह
महादेवी वर्मा के बाद हिंदी कविता में जो एक रिक्तता आई थी, उसे कीर्ति अपने मौलिक लेखन से पाटती हैं. उनकी कविता एक नए सांचे में थी जिसकी बनावट अलग थी. उसमें एक ताज़गी थी. और अपनी रचनाओं के तल में उनके पास एक ख़ास तरह का स्त्री सुलभ संवेदना का ढांचा था जो उनके समय में किसी और के पास नहीं था
तीसरा सप्तक के कवियों में से एक, जाने माने साहित्यकार केदारनाथ सिंह उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहते हैं, "तीसरा सप्तक के लिए यह दो ही वर्षों में तीसरा आघात है. इसी वर्ष प्रयाग नारायण त्रिपाठी का भी देहांत हो चुका है. इससे कुछ समय पहले मदन वात्स्यायन हमें छोड़कर चले गए."
केदारनाथ सिंह कीर्ति चौधरी के कृतित्व की चर्चा करते हुए कहते हैं, "महादेवी वर्मा के बाद हिंदी कविता में जो एक रिक्तता आई थी, उसे कीर्ति अपने मौलिक लेखन से पाटती हैं. उनकी कविता एक नए सांचे में थी जिसकी बनावट अलग थी. उसमें एक ताज़गी थी. और अपनी रचनाओं के तल में उनके पास एक ख़ास तरह का स्त्री सुलभ संवेदना का ढांचा था जो उनके समय में किसी और के पास नहीं था."
'केवल एक बात थी'
कीर्ति नई कविता की कवियत्री थीं. ऐसी, जिन्होंने महादेवी वर्मा के जाने के बाद आई रिक्तता में अपनी खनक घोलनी शुरू की थी.
कीर्ति चौधरी जाने-माने रेडियो प्रसारक ओंकारनाथ श्रीवास्तव की पत्नी थीं
नई कविता की शुरुआत आम तौर पर ‘दूसरा सप्तक’ ( १९५१ ) से होती है और ऐसा माना जाता है कि १९५९ में ‘तीसरा सप्तक’ के प्रकाशन के साथ वह अपने उत्कर्ष को पहुँच कर समाप्त हो जाती है.
नई कविता के इसी उत्कर्षकाल की साक्षी और सारथी थीं कीर्ति चौधरी और उनकी रचनाएं.
उनकी कविताओं में एक मोहक प्रगीतात्मकता देखने को मिलती है. उनकी कविता में मनुष्य और उसके समग्र अनुभवों को पकड़ने का यत्न हुआ है.
वास्तव में कीर्ति चौघरी की कविता नई कविता के अन्य रचनाकारों की तरह ही संपूर्ण जीवन की कविता है. उनकी कविता में प्रतीकों और बिंबों का काफ़ी प्रयोग मिलता है.
जीवन परिचय
कुछ चर्चित रचनाएं
दायित्वभार- तीसरा सप्तक
लता- 1,2 और 3- तीसरा सप्तक
एकलव्य- तीसरा सप्तक
बदली का दिन- तीसरा सप्तक
सीमा रेखा- तीसरा सप्तक
कम्पनी बाग़
आगत का स्वागत
बरसते हैं मेघ झर-झर
मुझे फिर से लुभाया
वक़्त
केवल एक बात थी
एक जनवरी, १९३४ को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के नईमपुर गाँव में एक कायस्थ परिवार में उनका जन्म हुआ था.
कीर्ति चौधरी का मूल नाम कीर्ति बाला सिन्हा था. उन्नाव में जन्म के कुछ बरस बाद उन्होंने पढ़ाई के लिए कानपुर का रुख़ किया. 1954 में एमए करने के बाद 'उपन्यास के कथानक तत्व' जैसे विषय पर उन्होंने शोध भी किया.
साहित्य उन्हें विरासत में भी मिला और फिर जीवन साथी के साथ भी साहित्य, संप्रेषण जुड़े रहे.
हालांकि पिता एक ज़मीदार थे पर कीर्ति चौधरी की माँ, सुमित्रा कुमारी सिन्हा ख़ुद एक बड़ी कवयित्री, लेखिका और जानी-मानी गीतकार थीं.
पर कीर्ति चौधरी का लेखन माँ के प्रभाव से मुक्त था और अपनी मौलिकता लिए हुए था.
उनकी रचनाधर्मिता के पीछे अनुभवों की विविधता भी एक कारण रहा होगा. इसका संकेत कीर्ति अपने बारे में लिखते हुए देती हैं.- "गाँव, कस्बे और शहर के विचित्र मिले-जुले प्रभाव मेरे ऊपर पड़ते रहे हैं."
साहित्यकार केदारनाथ सिंह
तीसरा सप्तक के लिए यह दो ही वर्षों में तीसरा आघात है. इसी वर्ष प्रयाग नारायण त्रिपाठी का भी देहांत हो चुका है. इससे कुछ समय पहले मदन वास्स्यायन हमें छोड़कर चले गए !

कीर्ति चौधरी का विवाह हुआ हिंदी के सर्वश्रेष्ठ रेडियो प्रसारकों में से एक, ओंकारनाथ श्रीवास्तव से.
बीबीसी हिंदी सेवा के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे ओंकारनाथ श्रीवास्तव केवल रेडियो को अपने योगदान ही नहीं, बल्कि अपनी कविताओं और कहानियों के लिए भी जाने जाते हैं.
जानेमाने साहित्यकार अजित कुमार कीर्ति जी के भाई हैं।

Ajit Kumar remembers Harivansh Rai Bachchan

Renowned Hindi writer Ajit Kumar remembers the great poet Harvansh Rai Bachchan. As one of his dearest disciples, Ajit Kumar gives us some rare glimpses of the poet's life. He says Bachchan was a strict teacher, Jawahrlal Nehru's Hindi adviser and of course a great poet. And very few of us know that Harivansh Rai and Teji Bachchan were disciplined and organised parents and their household was a typical Allahabadi Sangam of tradition and modernity, that later reflected in many of the films and songs of their son Amitabh Bachchan. History Talking.com presents the life story of Harivansh Rai Bachchan.
To listen click here
(Hindi)
कीर्ति चौधरी की साहित्यिक यात्रा यों तो बहुत लंबा-चौड़ा समय और सृजन समेटे हुए नहीं है पर जितना भी है, उसे किसी तरह से कमतर नहीं आंका जा सकता.
कीर्ति चौधरी के परिवार में अब उनकी बेटी अतिमा श्रीवास्तव हैं जो ख़ुद अंग्रेज़ी की लेखिका हैं। अतिमा के दो उपन्यास, 'ट्रांसमिशन' और 'लुकिंग फ़ॉर माया' प्रकाशित हो चुके हैं.


बी। बी। सी हिन्दी से साभार



-- लावण्या





Friday, June 13, 2008

हिन्दी चित्रपट की लम्बी सृजन यात्रा

श्रीमती देविका रानी , पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी के साथ ---

सिनेमा की शुरुआत भारत में सन १८९६ , जुलाई की ७ तारीख को हुई :
१८९८ , हीरालाल सेन जी ने Classic Theatre की कलकता में, स्थापना की --
हरिश्चंद्र सखाराम भटवाडीकर १८९७ में , F.B. Thanewala , J.F. Madan ने कलकता में , १९०४ में , Manek Sethna ने Touring Cinema Co.
पुन्डलिक , बनाके , और ये , N.G. Chitre और R.G. Torney की
पहली फ़िल्म थी और राजा हरिश्चंद्र १९१३ में बनी,
पहली सम्पूर्ण हिन्दी फ़िल्म थी इस तरह हिन्दी फ़िल्म संसार की यात्रा आरंभ हुई ।
१९३१ में बनी , आलम आरा पहली स्वर या आवाज़ से युक्त फ़िल्म थी।
और,
बोम्बे टाकीज़ लिमिटेड की स्थापना सन १९३४, बंबई में हुई !
उस वक्त जब् भारत आजाद भी नही हुआ था।
हिमांशु राय तथा , देविका रानी ने , फ ऐ दिन्शाव , सिर फिरोज़े सेठना
Franz Osten और निरंजन पाल के साथ मिलकर इस की नींव रखी थी।

१९४७ में भारत की आज़ादी के बाद , ऐसे गीत , चित्रपट तथा साहित्य की आवश्यकता हुई जिससे , भारत के युवा वर्ग को और आम जनता को, देश - प्रेम और स्वाभिमान तथा देश के प्रति गौरव की भावना जन्मे और विकसित हो ....
" इंसान क्या इंसान क्या जो ठोकर नसीब की न सह सके,
इंसान क्या , इंसान क्या , इंसान क्या "
इसी भावना को उभारता हुआ गीत है जो फ़िल्म " हमारी बात " के लिए लिखा गया था।
अब फ़िल्म हमारी बात की ओर चलें :~~
उस वक्त , बोम्बे टाकीज़ , सुप्रसिध्ध अदाकारा श्रीमती देविका रानी की कम्पनी थी।
हिमांशु राय जी का , तब तक , देहांत हो चुका था --
साल था :१९४३ इस फ़िल्म की मुख्य भुमिका स्वयं देविका रानी निभा रहीं थीं साथ थे जयराज जी , सुरैया अरुण कुमार !
पारुल घोष , अनिल बिस्वास , नरेन्द्र शर्मा ने गीतों पे काम किया था :

अनिल दा ने इस गीत को अपनी बहन पारुल के संग गाया है - पन्ना लाल घोष बांसुरी वादक थे , पारुल उन्हीं की पत्नी थीं ! पन्ना बाबू ने १९ वें रस्ते पर बहुत सारी जमीन खरीदी थी , जिसका एक टुकडा , पापा जी ने लिया और एक ऐक्टर जयराज जी ने खरीदा और तभी से हम लोग पडौसी हो गए ! जयराज जी का घर जल्दी बना , हम थोड़े साल बाद आए , खार के उपनगर में रहने के लिए , आज जयराज जी नहीं हैं, उनके घर के स्थान पे, ६ मंजिला इमारत बन गयी है जहां बांसुरी वादक हरी प्रसाद चौरसिया जी रहते हैं --
जीवन बहता जा रहा है ---
और ये शब्द आज भी सोलहों आने सच लगते हैं --
" इंसान क्या इंसान क्या जो ठोकरेँ नसीब की न सह सके, इंसान क्या , इंसान क्या , इंसान क्या "
इंसान क्या जो गर्दिशों के बीच खुश ना रह सके ,
इंसान क्या इंसान क्या जो ठोकरेँ नसीब की न सह सके,
इंसान क्या , इंसान क्या , इंसान क्या ...
मैं किश्ती क्यूँ न छोड़ दूँ , बलाओँ के मुकाबिले, तूफानों के मुकाबिले \-२
वो किश्ती क्या जो आँधियों के साए में ना रह सके \-२ इंसान क्या .....
दोनों \: इंसान क्या जो ठोकरे नसीब की न सह सके , इंसान क्या
पारुल \: बच बच के चलने वाले की है ज़िंदगी क्या ज़िंदगी
दोनों \: है ज़िंदगी , क्या ज़िंदगी ) \-२
पारुल \: दरिया \-ऐ \-ज़िंदगी में जो न मौज बन के बह सके \-२
दोनों \: न मौज बन के बह सके \-४
दरिया \-ऐ \-जिंदगी में जो न मौज बन के बह सके \- २
इंसान क्या इंसान क्या जो ठोकरेँ नसीब की न सह सके .... इंसान क्या ...

नीचे के दुर्लभ चित्र नंबर १ और २ में, बोम्बे टाकीज़ की ओफीस में , चल रही ,
मीटिंग का द्रश्य देख सकते हैं -- ध्यान से देखने पर , कलाकार राज कपूर साहब व दिलीप कुमार भी दिख जायेंगें और , पीठ किए हुए चश्मा पहने खड़े हैं , वे हैं , फ़िल्म के लिए , गीत व कविता रचनेवाले नरेन्द्र शर्मा ! -- मेरे पापा -- इस नीचे दिए गए , चित्र में, नरगिस जी तथा राज कपूर जी
तथा पीछे की पंक्ति में, अनिल दा व पापा भी हैं -- ( अ मीटिंग इन प्रोग्रेस ) साल : १९४४ " ज्वार भाटा " - फ़िल्म, बोम्बे टाकीज़ की पेशकश थी ।

इस पुरानी फ़िल्म के साथ जुड़े हैं कुछ , नाम जैसे , पारुल घोष - अनिल बिस्वास और नये हीरो , दिलीप कुमार ! जिनकी ये सबसे पहली फ़िल्म थी। यहीं से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ था।

अनिल दा ' ने तब तक, बसंत , रोटी , हमारी बात , किस्मत , पहली नज़र ,मिलन इनके लिए भी संगीत दिया था। ज्वार भाटा भी इसी की एक कड़ी रही ।

राग कल्याण का इस फ़िल्म के गीतों में बखूबी प्रयोग किया गया है जो अनिल दा के बाद आए अन्य संगीतकारों ने अनिल दा की तरह कभी नहीं किया था।

अनिल दा कलकता से , बंबई आए और साथ आयीं उनकी बहन पारुल घोष !

पारुल जी की आवाज़ बहुत नाज़ुक थी और बंगाल की माटी की सौंधी सुगंध लिए थी - ज्वार भाटा के २ गीत इस तरह हैं -

'प्रभू चरणों में दीप जलाओ ' और, " मोरे आँगन में छिटकी चांदनी ~~

फ़िल्म में थीं मृदुला , शमीम , आगा जान , दिलीप कुमार , अरुण कुमार , विक्रम कपूर -गायिका : पारुल घोष संगीत : अनिल बिस्वास : गीत रचना : नरेन्द्र शर्मा : निर्देशका थे : अमिय चक्रवर्ती।

बोल हैं : ~~~

"मोरे आँगन में छिटकी चान्दनी , घर आ जा सजन ,

छेडी कोयल ने प्रीत की रागिनी , मीठी , अगनी मोरे अंग जला _ऐ ,

प्रीत की ज्वाला सही न जा _ऐ,

कुम्हला _ऐ पीया बिन कामिनी _गई सजन संग नींद निगोडी,

तडपत नित नैनंन की जोड़ी , मैं बनी तेरी बैरागिनी"
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
प्रभू चरणों में , दीप जलाओ -

पारुल घोष शायद अमीर बाई ? तथा कोरस का गाया हुआ

तथा अनिलदा का भजन है ! बंगला कीर्तन स्टाइल में , रचा हुआ ये भजन ,

प्रथम २ पंक्तियों में , अमीर बाई ने गाया है ...

कोरस :प्रभू चरणों में दीप जलाओ , मन मन्दिर उजियाला हो ,

करेँ कृपा जो कृष्ण चन्द्र तो क्यूँ न दूर , अँधियाला हो ?

ह्रदय कमल का सिँहासन बने कृष्ण का वृँदावन,

जीवन अपना उसे सौंप दो जो जग का रखवाला है ,

मन मन्दिर का रखवाला है .....

नैना प्रेम - चातक और सखि, चन्दा नन्द किशोर हो

इन से देख जगत को , बसे जहा नंदलाला हो

गिरिधर के चरणों में आ , राधेश्याम नाम गुन गा

कोरस : राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम

पारुल : गिरिधर के चरणों में आ ,

मालिक मेरा , बन्सीवाला , मेरा मन ब्रजवाला हो ~

अब फ़िल्म हमारी बात की ओर चलें जहां से बात शुरू हुई थी :~~

दूसरा गीत है ,

" सूखी बगिया हरी हुई _अब , सूखी बगिया हरी हुई _

घन श्याम बदरिया छाई _रि, श्याम बदरिया छाई _

डाल डाल नव पल्लव झूले , बीती बातो को मन भूले ,

जीवन की रीती नदिया माने _ तरंग लहराये , श्याम बदरिया छाई _

बहता जल नैना रुत , नये फूल फल

नये गुलों के गालों पर नन्ही शबनम मुसकाई _ रि ,

घन श्याम बदरिया छाई _रि,

************************************************************

- लावण्या