पावन ज्योति पर्व में मैं ,दीप उत्सव बालती ,
अंगना के द्वारे - द्वारे, दीपक लौ, प्रकाशती !
पवित्र मंगल शुभ प्रसंग सुमन हर्षित वारती
कंचन थाल , कुम कुम ले , मैं , करती उनकी आरती !
पथ में प्रभू के नयन मेरे , ध्यान में मन लीन,
आ जाते यदि वे आज सम्मुख चरण रज उनसे , मांगती !
राहुल , धर कर हाथ तेरा , उन्ही पर तुमको , वारती
क्यों गए वो दूर हमसे ? इस का मैं उत्तर मांगती !
शरण हैं हम आपके हे गौतम , मेरे दुलारे
"बुध्ध" तुम होगे सभी के ,यशोधरा तुमको पुकारे !
8 comments:
बहुत सुंदर चित्र है ....उतने ही सुंदर भाव है.....
स्त्री के पक्ष में अधिकतर प्रतीक्षा ही लिखी है!
बहुत उम्दा-चित्र और रचना दोनो.
उत्तम!
अति उत्तम!
यशोधरा के साथ न्याय किया आपने.
उत्तम!
अति उत्तम!
यशोधरा के साथ न्याय किया आपने.
बहुत सुंदर भाव पूर्ण कविता धन्यवाद
अनुराग भाई,
ज्ञान भाई साहब्, सच कह रहे हैँ आप्,
बाल किशन जी व महेन्द्र भाई साहब आपकी टिप्पणीयोँ के लिये आभार
- लावण्या
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