बदरीया बीच जिम चन्दा ,तुझ में , झांके जो मूखडा ,
काजल की ओट समाया है ज्यूँ मेरी अँखियोँ में सजनवा !
सिंगार ऊतारूं , जब् जब् , सिंगार सजाऊं निस - दिन ,
तू मेरे मन का भेदी ,तुझ से न छिपी कोई बात !
जोबन को देखे दर्पण ,नयनन माँ जलती आग !
गए मोरे पिया गहन , वन , तू दिखलाना घर की बाट !
नीली सारी मोरी मैली भई, नील गगनवा चमके तारे ,
तुझ से कहती हूँ , सुन ले , तू ,पियु कब लौटेंगे मोरे दुवारे
- लावण्या
8 comments:
behad sundar
वाह जी वाह!! हमेशा की तरह उम्दा!
मेहक जी , समीर भाई ,
आप दोनोँ का भी बहुत बहुत आभार !
-- लावण्या
बहुत ही सुंदर भाव लिए हुए लिखी गयी रचना.. बधाई स्वीकार करे...
खूबसूरत
जितना सुंदर चित्र उतनी ही मासूम कविता....खूबसूरत.....
sundar kavita di,aur Raja Ravi Verma Painting bahut acchhi lagi
आप सभी का बहुत बहुत आभार , कविता पसन्द की -- शुक्रिया !
पारुल्, हाँ, राजा रवि वर्मा के सारे चित्र बहोत खूबसुरत हैँ, है ना ?
स्नेह्,
-- लावण्या
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