Thursday, May 1, 2008

" अच्छा ! तो अमरीका मेँ भारतीय शादियाँ, इस तरह से होती है क्या ? "

जन्म
शादी का रिश्ता
वृध्ध दँपत्ति

" अच्छा ! तो अमरीका मेँ भारतीय शादियाँ, इस तरह से होती है क्या ? " ये कहा था, मेरी एक सहेली ने जब,हमारी बातचीत हो रही थी और मैँने उसे भारतीय रस्मोँ के बदले बदले से अँदाज़ के बारे मेँ उसे बतलाया --
ये ३ कौन से प्रसंग है जो हर इंसान के साथ जुड़े हुए होते हैं?

उत्तर आसान है : ~ पहला है, जन्म , दूसरा है शादी का रिश्ता और ३ रा है मृत्यु !
सारे सामाजिक संस्कार , रीति रिवाज , वेदों के समय से , आधुनिक युग तक , हर सभ्यता के उत्थान के साथ , हर भूखंड पर , मानव जीवन के विकास के साथ , बदलाव के साथ , ही सही परंतु , हर कॉम में, हर प्रदेश में , हर मानव के जीवन में , प्राय: पाये जाते हैं।
भारतीय मूल के लोग सदीयों से , व्यापार के लिए, अपने संजोग से या किसी उत्सुकता के रहते , अपने जन्म स्थान से दूर की यात्रा करते रहे हैँ। जहां कहीं हम भारतीय मूल के लोग गए, बसे, और नये सिरे से जीने लगे, हमारी संस्कृति से पाई विरासत भी सहेज कर लेते गए और नयी धरती पर हमने , इन्हें अपनाए रखा ।
हां, कई बार कुछ नया भी अपना लिया
ऐसा भी अकसर हुआ है
हमारे पूर्वज जमीन से जुड़े थे , खेती प्रधान देश ही रहा है भारत और जब् अंग्रेज़ गए ,
उसके बाद , समाज में काफी परिवर्तन आए।
आज अमरीका में भारतीय मूल के लोग बहुत विशाल संख्या में बसे हुए हैं। धर्म अनेक, जातियाँ अनेक , पर वही रीति रिवाज, वही व्रत त्यौहार इस पराई भूमि पर , आज भी , हमारे अपने से ही लगते हैं।
ये अलग बात है , यहां दीवाली की छुट्टी नहीं होती ....न होली की !
इतवार को या वीकएंड पर अकसर हिंदू मन्दिर , जैन देरासर या सीखों के गुरूद्वारे पे , भारतीय लोग अपने व्रत त्यौहार सम्पन्न करते दिखाई देते हैं। नयी नस्ल के बच्चे , जो भारत से दूर की भूमि पर पैदा हुए , उन्हें नही पता उनके माता , बाबुजी , अपने त्योहारों के बारे में पता लगे उसके लिए , कितने प्रयास करते हैं!
ये भारत में रहने वाले और जन्म लेनेवाले बालक के लिए , आम बात होती है। आज आप से , अमरीका में , ये तीनों प्रसंगों के साथ जो, बदलाव आए हैं उनके बारे में , दो शब्द कहना चाहती हूँ ।
१- जन्म : अमरीकी समाज में " बेबी शावर " मनाने की प्रथा है जिस भारतीयों ने भी अब अपना लिया है। कोइ लडकी जब् माँ बननेवाली होती है उसके सगे संबन्धी, सहेलियां और परिवार की दूसरी स्त्रीयां मिलकर, किसी दुपहरी में , एक जगह इकट्ठा होते हैं , चाय, कोफी , शरबत कोल्ड ड्रिंक्स के साथ साथ, हंसी मजाक, गीत और आनेवाले बच्चे के लिए उपयुक्त उपहार प्रेग्नँट कन्या को भेंट किए जाते हैं, कार्ड भी देते हैं ....कई बार , सहेलियां , इस मौके को " सर्प्राइज़ " ही रखतीं हैं और ये , उस कन्या के लए , और ज्यादा खुशी की घड़ी बन जाती है जब् उसे पता लगता है की सब उसे कितना चाहते हैं और उसके और आनेवाले शिशु के लिए , सभी ने मिलजुलकर इतना सारा , इंतजाम किया -- बच्चा पैदा हो जाए उसके बाद भी उपहार / gift , वो बोनस !! :-)
२ - शादी : आजकल , देसी भाई लोग भी बहुत शानदार मगर सौम्य शादी के फन्कशन का प्रबंध करने लगे हैं ...लड़का और लडकी एक दूसरे को पहले से पहचानते होते हैं अकसर -- लड़का , मंगनी के पहले अंगूठी बनवाकर , लडकी से बाकायदा प्रोपोकरता है , हां हो उसी के बाद अपने परिवार से तथा कन्या के परिवार से आगे बातचीत होती है , शादी तै की जाती है , सबसे पहले , मेहमानों को "सेव ध डे " के ख़त भेजे जाते हैं ताकि , किसी भी मेहमान को , आगे से , अपना , दिन और समय किस तरह , पहले से प्लान किया जाए उसके लिए समय मिले ...फ़िर कार्ड भेजे जाते हैं जिसमें आप की मंजूरी या ना - मंजूरी और परिवार से कितने लोग आ पायेंगें , ये पहले से लिखकर भेजना होता है और ये सारा काम कई महीने पहले हो जाता है ..शादी से पहले भी सहेलियां कन्या / वधु के लिए ,"ब्राइडल शावर " रखतीं हैं , जहां सिर्फ़ कन्या व उसकी सहेलियां ही होतीं हैं और खूब मजाक होता है, ब्युटी पार्लर से लेकर्, डाँस, डीस्को , रेस्टाँरँटज़ मेँ खाना पीना ये सभी उस का हिस्सा होते हैँ ..कन्या पक्ष की तैयारी अलग होती है वैसे ही वर पक्ष से दुल्हे के साथी, दोस्त भी गोल्फ या टेनिस या पार्टी करते हैं दुल्हे के साथ भी हंसी मजाक होता है उसकी आज़ादी के बाकी लम्हें ,बचे हैं उनमें यार दोस्त उसे मौज मन्नाने की , उन्हें जी लेने की सलाह देते हैं।
शादी के समय बुफे भेज हो या हर टेबल पे आनेवाले मेहमान का नाम , रखा होता है --
भोजन कक्ष या डाइनीँग होल के बाहर , कन्या की सहेली आपको , आपकी मेज का नंबर बड़े प्यार से पकडा देती है - कन्या के फेरे , सप्तपदी , ये रस्में , पूरी होतीं हैं और खाने के समय , परिवार से पिता , कन्या की खास सहेलियाँ वर के खास मित्र इत्यादी लोग अपनी अपनी यादेँ वर -वधू से जुडी मेह्मानोँ के साथ बाँटते हैँ -- उसके बाद ३, ४ घंटों तक खूब जोर शोर से नाच गाना होता है , नया जोडा अपना पहला नृत्य करते हैँ फिर कन्या अपने पिता के साथ और माँ अपने बेटे के साथ डाँस करती है और फिर सारे मित्र समुदाय को भी आमँत्रित किया जाता है। ये नाच गाना युवा वर्ग भाँगडा के साथ खूब देरी तक जब तक बडे बूढे थक कर बैठ जाते हैँ तब तक जारी रखते हैं।
विदाभी होती है ...वही मार्मिक प्रसंग होता है क्या भारत और क्या अमरीका !! ॥
३ -मृत्यु : आजकल, मन्दिर या देरासर में ही अकसर भजन , पूजा रखते हैं साथ साथ , कई बार , दिवंगत को जो चीजेँ पसंद होती हैं वही भोजन भी, भजन के बाद , सभी आनेवालोँ के प्रति, आभार प्रक़ट करने की औपचारिक छोटी स्पीच के बाद , परोसा जाता है -
लोग दिन भर काम करके दूर दूर से आते हैँ और अमरीकी समाज मेँ भी अक्सर ऐसे ही होता है कि फ्युनरल के बाद्, भोजन भी देते हैँ वही प्रथा अब कई भारतीयोँ ने भी अपनानी शुरु कर दी है - ये बदलाव है - अच्छा है या बुरा ये नहीँ कह रही - सिर्फ, आज हम बदलते नजरीये की बात कर रहे हैँ आशा है आप सभी को ये नया लगा होगा - अगर कोई सवाल होँ तब अवश्य पूछेँ --

8 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत विस्तार से अच्छी तरह जानकारी दी है. बधाई.

दिनेशराय द्विवेदी said...

समीरलाल जी ने इसे विस्तार कहा। शायद कनाडा पहुँच जाने का असर है यह। अगर तीनों विषयों की जानकारी तीन पोस्टों में होती तब भी बहुत कुछ छूट जाता। मेरा एक निवेदन और एक जन्म का, एक विवाह का और एक अन्तिम विदाई का वास्तविक अवसर वर्णित हो जाए तो हमें बहुत सी बातों का और पता लगेगा और भावनाओं का भी।

Nitin Bagla said...

दिनेश जी से सहमत। बहुत छोटे में निपटा दिया अपने।
एक गुजारिश है, आप अपने चिट्ठे की टेक्स्ट मध्य में रखती हैं..अगर बाईं और से शुरू हो तो पढना और आसान रहेगा।

Gyan Dutt Pandey said...

पोस्ट अच्छी लगी और सोचने को बाध्य करती है। सतत परिवर्तन व्यक्ति, समाज, विश्व सब स्तर पर होने चाहियें। और हो भी रहे हैं तेजी से।

Batangad said...

एकदम नई बातें जानने को मिलीं। ऐसी रोचक जानकारियां और बांटें तो, हमें बदलती दुनिया अच्छे से समझने का अवसर मिलेगा।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

चलिये समीर जी , ये भी ठीक !! आपको विस्तार लगा और दिनेश भाई साहब को और जानकारी चाहिये !!
नितिन जी ठीक है आगे से लेफ़्ट ऐलाइनड ही रखूँगी --
पढने का शुक्रिया
हर्षवर्धन जी आप का भी आभार -

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ज्ञान भाई साहब आप सही कह रहे हैँ आज के समय मेँ तो गतिशीलता तीव्र हो रही है ऐसा लगता है !

Aman said...

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