Thursday, April 24, 2008

हर बार जिंदगी , जीत गयी!

किस ने किया , किस का इंतज़ार ?
क्या पेड़ ने , फल फूल का ?
फल ने किया क्या बीज का ?
बीज ने फ़िर किया पेड़ का ?
हर बार जिंदगी , जीत गयी !

प्रेमी ने पाई परछाईँ ,
अपने मस्ताने यौव्वन की ,
प्रिया की कजरारी आंखों में ,
शिशु मुस्कान चमकती - सी ,
और ,उस बार भी जिंदगी जीत गयी !

हर पल परिवर्तित परिदृश्यों में ,
उगते रवि के फ़िर ढलने में ,
चन्दा के चंचल चलने में ,
भूपाली के उठते स्पंदन में ,
रात - यमन तरंगों में ,
हर बार जिंदगी जीत गयी !

साधक की विशुद्ध साधना में ,
तापस की अटल तपस्या में ,
मौनी की मौन अवस्था में ,
नि: सीम की निशब्द क्रियाओं में
मुखरित , हर बार जिंदगी जीत गयी !
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[ लावण्या ]

7 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

यही भाव बना रहे। जिन्दगी हमेशा जीतती रहे। असुरत्व पर देवत्व सदा हावी रहे।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जी हाँ भरसक प्रयास करना आवशयक है
" अस्तो मा सद्` गमय , तम्सो मा ज्योतिर्गमय्` "
लावन्या

दिनेशराय द्विवेदी said...

जीतने से ही जीवन जीवित है।

डॉ .अनुराग said...

जमे रहो.....

anuradha srivastav said...

बहुत खूब...........

कंचन सिंह चौहान said...

साधक की विशुद्ध साधना में ,
तापस की अटल तपस्या में ,
मौनी की मौन अवस्था में ,
नि: सीम की निशब्द क्रियाओं में
मुखरित , हर बार जिंदगी जीत गयी !

waah waah

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दिनेश भाई साहब्,
अनुराग भाई,
अनुराधा जी
( आपका नाम बहुत सुँदर है :)
और
कँचन जी ,
( आप का भी बडा प्यारा नाम है :)
आप सभी का
बहुत बहुत शुक्रिया -
आते रहियेगा यहाँ
स्नेह ,
- लावण्या