क्या पेड़ ने , फल फूल का ?
फल ने किया क्या बीज का ?
बीज ने फ़िर किया पेड़ का ?
हर बार जिंदगी , जीत गयी !
प्रेमी ने पाई परछाईँ ,
अपने मस्ताने यौव्वन की ,
प्रिया की कजरारी आंखों में ,
शिशु मुस्कान चमकती - सी ,
और ,उस बार भी जिंदगी जीत गयी !
हर पल परिवर्तित परिदृश्यों में ,
उगते रवि के फ़िर ढलने में ,
चन्दा के चंचल चलने में ,
भूपाली के उठते स्पंदन में ,
रात - यमन तरंगों में ,
हर बार जिंदगी जीत गयी !
साधक की विशुद्ध साधना में ,
तापस की अटल तपस्या में ,
मौनी की मौन अवस्था में ,
नि: सीम की निशब्द क्रियाओं में
मुखरित , हर बार जिंदगी जीत गयी !
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[ लावण्या ]
7 comments:
यही भाव बना रहे। जिन्दगी हमेशा जीतती रहे। असुरत्व पर देवत्व सदा हावी रहे।
जी हाँ भरसक प्रयास करना आवशयक है
" अस्तो मा सद्` गमय , तम्सो मा ज्योतिर्गमय्` "
लावन्या
जीतने से ही जीवन जीवित है।
जमे रहो.....
बहुत खूब...........
साधक की विशुद्ध साधना में ,
तापस की अटल तपस्या में ,
मौनी की मौन अवस्था में ,
नि: सीम की निशब्द क्रियाओं में
मुखरित , हर बार जिंदगी जीत गयी !
waah waah
दिनेश भाई साहब्,
अनुराग भाई,
अनुराधा जी
( आपका नाम बहुत सुँदर है :)
और
कँचन जी ,
( आप का भी बडा प्यारा नाम है :)
आप सभी का
बहुत बहुत शुक्रिया -
आते रहियेगा यहाँ
स्नेह ,
- लावण्या
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