प्रश्न मेरा
क्या तुम्हे एहसास है , अनगिनत उन आंसूओं का ?
क्या तुम्हे एहसास है , सड़ते हुए , नर कंकालों का ?
क्या तुम्हे आती नही आवाज़ , रोते , नन्हें , मासूमों की ?
क्या नही जलता ह्रदय , देखके, भूखे - प्यासे पीडितों को ?
अफ्रीका , एशिया के शोषित , बीमार , बेघर, शोषित , कोटी मनुज !
अनाथ बालकों को , उन की सूनी , लाचार आँखें देख , देख कर
क्या नहीं दुखता दिल तुम्हारा ? आँख भर आती नही क्या ?
क्यों मिला उनको ये मुकद्दर खौफनाक , दर्द से भरा ?
कितने भूखे प्यासे , बिलखते रोगिष्ट , आधारहीन जन
छिन्न भिन्न अस्त्तित्व के बदनुमा दाग से ये तन !
लाचार आँखें पीछा करती हुईं , जो न रो सके
ये कैसे दृश्य देख रही हूँ मार कर , मेरा मन !! :-((
एहसास तो है इनकी सभी विवशताओं का मुझे भी पर हाय !
नही कर पाते कुछ ज्यादा , ये हाथ मेरे !
लाघवता मनुज की , ये असाधारण विवशता , ढेर सी ,
भ्रमित करतीं मेरे मन की पीड़ा, मेरे ही ह्रदय को !
ये वसुंधरा कब स्वर्ग सी सुंदर सजेगी , देव मेरे ?
कब धरा पर हर जीव सुख की साँस लेगा, देव मेरे ?
कब न कोई भूखा प्यासा रहेगा, ओ देव मेरे ?
कब मनुज उत्थान के सोपान का नव - सूर्योदय उगेगा ?
4 comments:
इस स्वप्न को सहेज कर रखना होगा ।
Lavanyaji
Wish these dreams come true sometime!
Nice poem.
Rgds.
Aflatoon ji, Harshad bhai -- Thank you so much for your comments & visit here ...
warm rgds,
L
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