तुम, कर में लिये,मौन, निमंत्र्ण, विषम, किस साध में हो बाँटती?
है प्रज्वलित दीप, उद्दीपित करों पे,
नैन में असुवन झड़ी!
है मौन, होठों पर प्रकम्पित,
नाचती, ज्वाला खड़ी!
बहा दो अंतिम निशानी, जल के अंधेरे पाट पे,
' स्मृतिदीप ' बन कर बहेगी, यातना, बिछुड़े स्वजन की!
एक दीप गंगा पे बहेगा,
रोयेंगी, आँखें तुम्हारी।
धुप अँधकाररात्रि का तमस।
पुकारता प्यार मेरा तुझे, मरण के उस पार से!
बहा दो, बहा दो दीप को
जल रही कोमल हथेली!
हा प्रिया! यह रात्रिवेला औ '
सूना नीरवसा नदी तट!
नाचती लौ में धूल मिलेंगी,
प्रीत की बातें हमारी!
लावण्या शाह
लावण्या शाह
8 comments:
bahut acchi lagi ,
suddh kavita k liye badhai aap ko.kam hi padhne ko milti hai aaj kal....
ओह। महादेवी जी कविताओं की याद आ गयी।
नीशू भाई व ज्ञान भाई साहब आप का शुक्रिया ..
बहा दो, बहा दो दीप को जल रही कोमल हथेली!
दीदी, बड़े दिन बाद कुछ साहित्यिक पढ़ा । एक एक पंक्ति महसूस हो रही है । thx di. इस कविता को तो गाने का मन हो रहा है ।
पारुल्,
अगर आप इस कविता को गायेँगीँ और आपके
जाल घर पर लगायेँगी
तो मुझे बहुत ज्यादा खुशी होगी !!
सच्च ! करोगी क्या ऐसा ? ...
राह देखुँगी ...
स्नेह सह्:
- लावण्या
लावण्या जी,
पहली बार आपके बारे में जाना, पहली बार आपकी "स्मृतिदीप" कविता पढ़ी,
"स्मृतिदीप ' बन कर बहेगी, यातना, बिछुड़े स्वजन की!" यातना की
इतना भाव स्पर्शी अभिव्यक्ति पढ़कर हृदय आनंदित हो गया.
डॉ. विजय तिवारी "किसलय"
http://www.hindisahityasangam.blogspot.com
" किसलय जी "
आपने सराहा और भावोँ को समझा
तब इसे लिखकर खुशी मिली थी वह आज द्वीगुणीत हो गयी ...
धन्यवाद !
- लावण्या
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