Wednesday, February 27, 2008

अछूत कन्या

अछूत कन्या
अछूत कन्या / THE UNTOUCHABLE GIRL हिन्दी /१९३६ /B&W/१४२ मिनिट Production Co:निर्माता Bombay Talkies :
दिग्दर्शक : हिमांशु राय : Franz Osten: कहानीकार

संवाद : निरंजन पाल गीत : जे।।एस । कश्यप

संगीत : सरस्वती देवी

चित्रांकन : जोसेफ विर्स्चिंग स्वर : सवक वाचा

पात्र : अशोक कुमार , देविका रानी , अनवर ,

पी ।ऍफ़।पिथावाला , प्रमिला , कुसुम कुमारी

अछूत कन्या बोम्बे टाकीज़ निर्माण संस्था की एक मशहूर और ख्याति प्राप्त फ़िल्म थी जो सामाजिक प्रश्न पर बनायी गयी थी।

दलित समाज के एक बड़े , हिस्से का आज भी भारत में , जो अस्तित्व है, उनके जीवन यापन के ज्वलंत मुद्दों से जुड़े जो पहलू हैं, उनकी समस्याओं के प्रति जो सरकार का रवैया है ओर सामान्य जनता का उससे , उभरते सवालों को सामने रख कर ये फ़िल्म १९३६ की साल में बनायी गयी थी ।

क्या आज भी 'दलित - वर्ग ' के इन प्रश्नों से , उनकी समस्याओं से, कोई भी भारतीय , अनजान है ? जी नही ...हम सब जानते हैं , के कैसे कैसे प्रश्न हैं, क्या क्या समस्याएँ हैं , दलित वर्ग के साथ !

परंतु एक विशाल वर्ग ऐसा भी है जो सिर्फ़ बाबा साहेब आम्बेडकर के नाम तक ही , अपनी सोच को सीमित रखे हुए है । अगर , किसी को समस्या हो तब , क्यूं न वो , उनसे ख़ुद ही निपट लें ? अकसर ऐसा ही मानसिक ढर्रा देखा गया है। जब भारतीय फिल्मों ने , पहली बार, " बोलना " शुरू किया , उस समय, इस चलचित्र ने भी दलित विमर्श को लेकर , कथानक से जोड़ कर,एक साहसिक कदम उठाया था।

बोम्बे टाकीज़ की , अन्य फिल्मों में भी

कई सारे सामाजिक मुद्दों को लेकर , सफल चलचित्रों का निर्माण किया गया।

रुढीवादी हिंदू सोच को सुधारने का ये एक नया प्रयोग ही था।

सनातन धर्म के ऐसे भी पक्ष हैं जिनमें सुधार की प्रबल आवश्यकता थी। परम्परा के नाम पर , समाज के एक विशाल जनसमुदाय को दमित अवस्था में रखना , स्वतंत्रता की तरफ अग्रसर हो रहे भारत के लिए लाजमी नही था।

१९३६ के भारत वर्ष में, एक तरफ़ , ब्रितानी साम्राज्य, अन्तिम साँसे ले रहा था तो दूसरी ओर , कायदे -- क़ानून के तहत, अंतर्जातीय विवाह का कडा विरोध किया जाता था और यही नही, अछूत या दलित वर्ग को , अन्य सवर्ण जातियों से अलग रहन सहन की व्यवस्था भी उस समय के समाज की वास्तविकता थी , ये एक , आम- सी, साधारण सी , बात हुआ करती थी।

महात्मा गांधी, नेहरू तथा अन्य कोंग्रेसी जन नायकों ने, इस दकियानूसी रवैये के ख़िलाफ़ कडा विरोध दर्ज तो किया था , हर हफ्ते इस दलित दमन प्रथा का विरोध किया जाता और इस बात पर जोर दिया जाता के सिर्फ़ स्वाधीनता ही भारत के लिए जरुरी नही है ! भारतीय समाज को, अंदरुनी सफाई की और काफी बदलाव की भी आवश्यकता है!!

अगर भारत भविष्य का एक सफल, उज्जवल देश बनकर विश्व पटल पर अपनी गरिमा को, अपने अस्तित्व को अगर सिध्ध करना चाहता है तब, सुधार होना नितांत जरुरी , ही है !

जाति प्रथा का विरोध , सवर्ण - अस्पृश्य की खाई का विरोध , अछूतोध्धार , विधवा विवाह, सती प्रथा का कडा विरोध , दहेज़ का अस्वीकार, नाबालिग़ कन्या विवाह का विरोध, ऐसे कई गंभीर मुद्दों पर, कोंग्रेस के प्रतिनिधि विचार विमर्श करते थे.
चित्रपट , इन्ही ज्वलंत प्रश्नों को आसानी से, सहजता से एक विशाल जन समुदाय के सामने , रोचक रीति से रख पाने में, सफल हो सकते थे

ये सत्य उजागर हुआ जब "अछूत कन्या " जैसी फिल्में बनीं ।

आज २००८ के वर्ष में, पुरानी सदी से जब हम नई सदी में आ गए हैं,

इस वक्त भी इस चित्र का कथानक, उतना ही सशक्त जान पड़ता है।

दलित वर्ग का उत्थान , आज भी अनिवार्य है।

हालांकि काफी सुधार हुआ है , होता भी रहेगा , परंतु आज भी ये मुद्दा उतना ही सामयिक जान पड़ता है जितना के वहसन १९३६ के पराधीन भारत का प्रश्न था।

यह् फ़िल्म आज भी एक सच्ची व प्रेरणा दायक कथा लिए, सफल फ़िल्म , साबित होती है जो एक लम्बी कालावधि के परे सी जान पड़ती है।

फिल्मांकन इतना सशक्त है जहाँ शब्दों के बदले, द्रश्य ही एक मनोभाव, तथा भावनाओं को प्रतिबिम्बित करने में सफल हुए हैं ।

कथानक के महत्त्वपूर्ण मोड़, बखूबी चित्रों के माध्यम से खुलकर सामने आए हैं

क्रमश: अगली कड़ी में बोम्बे टाकीज़ की दूसरी फिल्मों के बारे में : ~~



8 comments:

Harshad Jangla said...

Lavanyaji

Well written article with 2 nice pictures of Bapu & Temple.
Sujata film also had a similar theme.
Thanx & Rgds.

सुजाता said...

bahut khoob likhaa !

Unknown said...

jankari se bhara sarthak lekh

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
mamta said...

सही कहा है की आज के समय मे भी ये फ़िल्म उतनी ही सशक्त है।
अशोक कुमार और देविका रानी की एक्टिंग भी कमाल की थी।
और इसका मैं बन की चिडिया बन .....बहुत मशहूर गीत है।

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया,.

admin said...

बहुत अच्छी बात कही है आपने। वाकई अब ऐसी फिल्में बनाने के बारे में सिर्फ सोचा ही जा सकता है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

महामंत्री (तस्लीम ) --
Harshad bhai,
सुजाता जी,
कँचन जी,
ममता जी व समीर भाई
आप सभी का यहाँ आकर
मेरी बात को पढने का आभार !