Tuesday, February 5, 2008

विश्व के सर्वोच्च शक्तिमान इन्सान : पोप

प्रभू ईसा मसीह,संत पीटर को चाबी देते हुए
पोप का धर्म प्रतीक
पोप बेनेडिक्ट
चित्र में : माता मरियम को ईसा मसीह की अनुभूति, देवदूत की उपस्थिति में
येरूशालेम चर्च आज भी चर्च समुदाय का मुखिया माना जाता है।
अलेक्ज़ान्द्रिया शहर यहूदी शिक्षा ओर संस्कृति का केन्द्र रहा है.
सन : ३० से लेकर १३० तक वहीं ख्रिस्ती धर्म की नींव राखी गयी थी।
सन १९५ पॉप विक्टर प्रथम ने, रोम शहर , कि जिसे इसा मसीह के शिष्य पीटर ने स्थापित किया था , उसे, अन्य चर्चों में , प्रमुख स्थान दिया।
पोप लीयो ने सन ४५१ में , कोंस्तान्तिनोपाल शहर के बदले,
रोम का वर्चस्व , पुनः मजबूत किया।
पोप हीराक्लास ने सन २३२ में और सीरीसीयस ने भी पोप के रूप में प्रतिष्ठा पायी थी।
बायाजेंटीयम साम्राज्य में , रोम पेपल सता की मुख्य जगह रही।
चार्ल्समेंगने प्रथम राज पुरुष रहा जिसे सम्राट के पद पर ,
पोप ने , धार्मिक विधि से पदासीन किया था।

पोप का चुनाव कार्डिनेल , करते हैं जो सदस्यों के मध्य से ही करने की प्रथा है।
सन ११७९ में हर कार्डिनेल को समान दर्जा दिया गया।
सन १३७८ में पोप अर्बन , का चुनाव, बाहर से किया गया जों एक अपवाद था।
सन १२७४ की ७ मई को ये निर्णय लिया गया की पोप के देहांत होने पर १० दिन के भीतर , ८० वर्ष की उम्र के नीचे के सभी कार्डिनेल, पेपल कोंक्क्लेव में , बंद होकर , गुप्त मत विधि से , नये पोप का चुनाव करेंगें ।
इस का तरीका था , अपने स्वर से या माथा हिलाकर किया जाना
सन १६२१ में पोप जोन पोल द्वितीय ने , मतपत्र ओर बक्से द्वारा मतदान आरंभ करवाया जो सीस्तीन चेपल में किया जाता है -
- जीहाँ वही जगह जो वेटिकन सिटी , पोप का आवास है जहां , माइकल एन्जेलो द्वारा , विश्व की , सबसे कलात्मक चित्रकारी , गुम्बद नुमा , चर्च की भींतों पर और छत पे उकेरी गयीं हें। Sistin Chapel की रचना , यहूदी सम्राट सोलोमन के पुराने मंदिर के अनुपात से की गयी है जिसका विवरण पुराने टेस्टामेंट में मौजूद है ।
राफेल नामक कलाकार की बनी टेपेस्ट्री भी
संत पीटर एवं पोल के जीवन के विषय पर आधारित हें।
देखें लिंक :
http://mv.vatican.va/3_EN/pages/CSN/CSN_Main.html
सनातन धर्म से ख्रिस्ती धर्म कयी मामलोँ मेँ भिन्न है
- पोप बेनेडीक्ट बीयर शौक से पीते हैँ !
देखिए http://www।thehimalayantimes.com/fullstory.asp?filename=aFanata0scqzpba8a8a3pa.axamal&folder=aHaoamW&Name=Home&dtSiteDate=20080130
जब् कि हिन्दु धर्म के सँत मदिरापान नही करते -
अन्य सभी धर्म के ऐसे कई मसले हें जो उन्हें एक दुसरे के
रीति रिवाजों से अलग करते हें --
सर्वधर्म समभाव मेरी मान्यता है और रहेगी -
हर धर्म के मूल में निहित अच्छाइयों को ही ग्रहण करने से ,
आत्मोध्धार मिलता है -

8 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

अन्त में आपने सही बात कही है - सभी धर्मों की अच्छाइयों का ग्रहण ही आत्मोद्धार का जरीया है। और इसी लिये सभी धर्मों पर अध्ययन-मनन करते रहना चाहिये।

Harshad Jangla said...

Lavanyaji

Something new and interesting. Thanx.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जी हाँ ...आपने सही कहा Gyan ji !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Harshad bhai,
Thank you so much !
rgds,
L

अमिताभ मीत said...

कभी कभी सच में बड़ी संजीदगी से सोचता हूँ, कि सर्वधर्म समभाव के अतिरिक्त भी क्या कोई तरीका / ढंग है, या हो सकता है जीने का ?

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मेरे खयाल मेँ तो सर्व धर्म सम्भाव ही सही है -
हालाँकि ह्रर धर्म्, ये भी कहता है कि
"यही एक राजमार्ग है "
जिस पे चलकर , ईश्वर मिल जायेँगेँ !
शायद, सारे रास्ते, एक ही रास्ते से मिल जाते हैँ

Anonymous said...

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Take a look at my blog to see what I mean.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

syrena,
yours is good also.
rgds,
L