डा. हरिवँश राय बच्चन को आज बरबस याद कर रही हूँ -
- मैँ उन्हेँ कभी 'ताऊजी " तो कभी " चाचाजी " कहा करती थी.हाँ उनकी धर्मपत्नी "तेजी आँटी जी' हीँ थीँ
-बचपन के दिनोँ मेँ जब जब हम सब देहली ,पापा जी के पास जाया करते थे तब या तो गर्मीयोँ की २ महीने से कुछ दिन उपर,तक की लँबी छुट्टियाँ हुआ करतीँ थीँ या फिर
दीपावली की जाडोँ के दिनोँ की २०, दिनोँ की छोटी अवधि की छुट्टियाँ....
दीपावली की जाडोँ के दिनोँ की २०, दिनोँ की छोटी अवधि की छुट्टियाँ....
देहली की उमस व लू हम बँबईवालोँ को परेशान कर के,फिर बँबई के सागर किनारोँ की याद दीलाती थी और हम जैसे तैसे दिन गुजार ही लेते थे.यदाकदा,शाम को किसी के घर भोजन का निमँत्रण मिल जाता उस दिन,देहली शहर के विभिन्न, दूर दराज़ के इलाके देखनेका सौभाग्य भी मिल जाता था.
बिड़ला मँदिर, कुतुब मिनार, लाल किल्ला, चाँदनी चौक,कनोट प्लेस, गाँधी बापू जी की समाधि,तीन मूर्ति भवन जो मारत के प्रथम प्रधान मँत्री श्री जवाहरलाल नेहरु जी का आवास था ये सारे ऐतिहासिक और देहली के प्रमुख आकर्षण सदा के लिये दीलोदीमाग के पन्नोँ मेँ,दबे फूलोँ की तरह कैद हें !
बिड़ला मँदिर, कुतुब मिनार, लाल किल्ला, चाँदनी चौक,कनोट प्लेस, गाँधी बापू जी की समाधि,तीन मूर्ति भवन जो मारत के प्रथम प्रधान मँत्री श्री जवाहरलाल नेहरु जी का आवास था ये सारे ऐतिहासिक और देहली के प्रमुख आकर्षण सदा के लिये दीलोदीमाग के पन्नोँ मेँ,दबे फूलोँ की तरह कैद हें !
तीनमूर्ति भवन के ठीक सामने,"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट"के विशाल, हवादार, सुँदर बागीचे के बीच हमारे "बच्चन चाचाजी व तेजी आँटी जी का "घर था. इस घर मेँ वे तभी से रहने लगे थे जब से "राज्य सभा " के मानोनीत सदस्य 'हिन्दी निर्देशक" के पद पर वे आये थे.
"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट"मेँ रहने से कुछ वर्ष पूर्व,वे राष्ट्रपति भवन के नजदीक ग्राओन्ड फ्लोर के एक मकान मेँ रहते थे ऐसा मुझे याद है.
दददा राष्ट्रकवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी के घर हम एक गर्मीयोँ की छुट्टी मेँ ठहरे थे जिसके करीब ही एक नीचे के मँजिलवाले एक घर मेँ तेजी आँटी से मिलने हम बच्चे झूला झूलने के बाद, रास्ते मेँ तेजी आँटी का घर पडता था वहाँ रुक जाया करते थे.
मुझसे छोटी मेरी बहन जिसे हम "मोँघी" के प्यारभरे घर के नामसे बुलाते हैँ उसे खाने की चीज वस्तुओँ से, बचपन से बडा गहरा लगाव है ! ( मोँघी की इसी आदत को, कई सहेलियाँ "पेटू" कहकर उसे चिढाती थीँ )
दददा राष्ट्रकवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी के घर हम एक गर्मीयोँ की छुट्टी मेँ ठहरे थे जिसके करीब ही एक नीचे के मँजिलवाले एक घर मेँ तेजी आँटी से मिलने हम बच्चे झूला झूलने के बाद, रास्ते मेँ तेजी आँटी का घर पडता था वहाँ रुक जाया करते थे.
मुझसे छोटी मेरी बहन जिसे हम "मोँघी" के प्यारभरे घर के नामसे बुलाते हैँ उसे खाने की चीज वस्तुओँ से, बचपन से बडा गहरा लगाव है ! ( मोँघी की इसी आदत को, कई सहेलियाँ "पेटू" कहकर उसे चिढाती थीँ )
जब भी तेजी आँटी जी हमेँ उनके घर आया देखतीँ तो पुकार के कहतीँ, " अरे महाराजिन, चीकू लाओ ...देखो बच्चे आये हैँ .."
और हम उन्हेँ ताकते रह जाते क्यूँकि तेजी आँटी जी ड्रेसीँग टेबल के सामने रखे एक छोटे से स्टूल पर बैठ कर उसी वक्त अपने बाल सँवारती, बडे से शीशे मेँ, अपने आपको निहारती भी जातीँ थीँ ...आज भी उनकी ये छवि मुझे याद है !
एक दिन , हम फिर उनके द्वार पर खडे थे और तेजी आँटी किसी विचारोँ मेँ,उलझी हुईँ होँगीँ तो रोज की तरह उन्होँने आवाज नहीँ दी ...
अब तो हमारी मोँघी रानी जिसे खेलकूद के बाद , भूख लगी थी उससे रहा नही गया, तो तपाक - से पूछ ही लिया मोघी ने,
अब तो हमारी मोँघी रानी जिसे खेलकूद के बाद , भूख लगी थी उससे रहा नही गया, तो तपाक - से पूछ ही लिया मोघी ने,
" आँटी जी , क्या आज आप महाराजिन को चीकू लाने के लिये आवाज़ नहीँ देँगीँ " ? :-))
- अब तो तेजी आँटी की भी हँसी छूट पडी .
.वे खूब खिलखिलाकर हँसीँ और मेरी अम्मा सुशीला से भी ये सारी बात तेजी आँटी जी ने बतलायी थी
-तो बचपन के ऐसे किस्से, सच मेँ भूलाये नही भूलते हैँ और यादगार बन जाते हैँ
खैर ! उसके बाद की यादेँ,बच्चन परिवार के तीनमूर्ति भवन के सामनेवाले,"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट" से जुडी हैँ. उस घर पर जब कभी "कवि सम्मेलन " का आयोजन किया जाता या " काव्य -सँध्या " के बाद रात्रि भोज का न्योता मिलता तब पापा और अम्मा के सँग हम बच्चे भी किन्ही, गिने चुने, प्रसँगोँ मेँ हाजिर रहे हैँ.
तेजी आँटी जी बडी शानदार पार्टीयाँ आयोजित किया करतीँ थी.उनके खाने के कमरे मेँ बडे टेबल के कोनोँ मेँ जलती हुई मोमबतीयाँ, पहली बार ज़िँदगी मेँ देखीँ थी औररोमाँचक -सी लगीँ थीँ
तेजी आँटी जी बडी शानदार पार्टीयाँ आयोजित किया करतीँ थी.उनके खाने के कमरे मेँ बडे टेबल के कोनोँ मेँ जलती हुई मोमबतीयाँ, पहली बार ज़िँदगी मेँ देखीँ थी औररोमाँचक -सी लगीँ थीँ
तेजी आँटी जी को एक होबी या शौक था - वे अपनी हर यात्रा की याद मेँ जहाँ कहीँ गयीँ होँ, वहाँ से सुँदर आकार या रँगवाले पत्थर,चुनकर ले आया करतीँ थीँ और वे कई, सारे पत्थर इस ,"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट"के बारामदे मेँ सजाकर रखा करतीँ थीँ -- ऐसा भी मुझे याद है -
- वो बचपन के दिन थे और उस वक्त हम इतने समझदार नहीँ थे कि जो महान व्यक्तियोँ से, उस दौरान, हम मिले थे उनका मूल्य जान सकेँ -
बच्चों
बच्चों
के लिये तो पूरा विश्व एक हर रोज कुछ नया खेल एक नया तमाशा ही रहता है !हमेँ थोडे ना सूझ बूझ थी कि जिन्हेँ हम "चाचाजी " कहते थे वे कभी "डा. हरिवँश राय बच्चन " जैसे प्रतिभाशाली और सबसे ज्यादा मशहूर "मधुशाला" के रचनाकार हिन्दी कविता को एक नये आयाम तक ले जानेवाले अविस्मरणीय कवि हैँ !
तो कभी हम जिन्हेँ "चाचाजी " बुलाते थे वे हिन्दी साहित्य को "चित्र लेखा" जैसी कथा कहानी सौँपने वाले शख्स श्री भगवती चरण वर्मा जैसे महान कहानीकार थे -
तो कभी हम जिन्हेँ "चाचाजी " बुलाते थे वे हिन्दी साहित्य को "चित्र लेखा" जैसी कथा कहानी सौँपने वाले शख्स श्री भगवती चरण वर्मा जैसे महान कहानीकार थे -
या श्री अमृतलाल नागर जी चाचाजी हुआ करते थे !
http://antarman-antarman.blogspot.com/ Link : श्री अमृतलाल नागर - संस्मरण - भाग -- ५
आज काल के बेरहम हाथोँ ने ऐसी अनेकानेक प्रतिभाओँ को ,विश्वपटल के मँच पर से उठा लिया है और नये कलाकार, नई पीढी, ने जगह ले ली है जोकि सृष्टि का क्रम है --
आज यहाँ विदा लेती हूँ
- दुबारा उन्हीँ के दीये , पापाजी की षष्ठिपूर्ति पर दीये सम्भाषण के साथ हम फिर एक नई प्रविष्टी के सँग, फिर हाज़िर हो जायेँगे -
- २७ तारीख को मेरे "बच्चन चाचाजी की " तारीख पड रही है -
उन्हेँ मेरे शत्` शत्` नमन !
5 comments:
आप सचमुच बहुत भाग्यशाली हैं, ऐसा सानिध्य कहाँ सब को मिल पाता है ....
बच्चन जी के विषय में जो कुछ भी मिलता है सहेज लेती हूँ। बँटाने के लिये धन्यवाद।
सजीव जी व कंचन जी आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया !
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सच में आपका जीवन धन्य है, जो इतने महान विभूतियों का आपको सान्निध्य मिला🙏
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