Tuesday, November 13, 2007

स्त्री,साडी ..और परदेसी ललना गोपी के भेस मेँ ?

विदेश मेँ रहनेवाली लडकीयाँ, जब भारतीय लोगोँ के परिचय मेँ आतीँ हैँ, मित्रता करतीँ हैँ तो भारतीय स्त्री का रहन सहन,वेश भूषा भी अपना लेतीँ हैँ ..शुरु शुरु मेँ उन्हेँ कठिनाई भी आती है ..साडी सम्हलती नहीँ ..फिर भी प्रयत्न करके, वे साडी पहनना, पसँद करतीँ हैँ ऐसी ही एक सुँदर कन्या से मेरी मुलाकात हुई जिसने बडे सलीके से मेँहदी के रँग की रेशमी साडी, बडे जतन से पहन रखी थी ..मुझे उसपर गर्व हुआ और प्यार भी आया
..और एक अजीब बात भी इसी शादी के दौरान देखने को मिली थी ..
.कन्या की ४,५ सहेलियाँ,जो अमरीकी थीँ, उन्हेँ भी साडियाँ दी गयीँ थीँ
कि वे भी दुल्हन को लेकर विवाह मँडपे में, साडीयाँ पहन कर दाखिल होँ -
-अब, शादी के पहले, लन्च का प्रबँध किया गया था, खुले लोन मेँ,स्वीमीँग पुल के पास
..तो ये दुल्हन की सखीयाँ जिन्हेँ अमरीकन शैली मेँ "ब्राइडसमेड " कहते हैँ,
वे पाँचोँ , ब्लाउज़ और पेटीकोट पहने, साडीको दुशालाया खेस बनाकर, कँधे पे डाल कर, ऐसे ही , अर्ध - वस्त्र अवस्था मेँ खाना खाने आ पहुँचीँ .!!
..बेचारीयोँ को क्या मालूम कि, ये "अशोभनीय " लग रहा है ?
अमरीकी , तो तैराकी के कपडोँ मेँ आराम से, शर्म के बिना घुमते हैँ
तो उन्हेँ ६ वार की साडी तो ... " भूल भूलैया " ही लगेगी ना !
उन बेचारीयोँ का क्या दोष ?
पर, तभी कन्या की माँ ने उन्हेँ प्यार से समझाते हुए कहा कि,
आप सब, भीतर कमरे मेँ चलो, वहीँ पे खाना पहुँचा दिया जायेगा ...

परदेसी ललना गोपी के भेस मेँ ,सर पर कान्हा को रीझाने के लिये दुग्ध भरी माटी की, रँगोँ से सजायी हँडिया लिये मुस्कुराती हुई भारत की सडकोँ पर चल रहीँ हैँ जिसे देखकर ये विचार आ रहा है कि भारतीय सँस्कृति व्यापक हो रही है ! भारत के शहरोँ की अत्याधुनिक महिलाएँ,पेन्ट टी शर्ट,बाँह बिना के, खुले कपडोँ मँ दीखने लगीँ हैँ और कोलिज जाती लडकियोँ के परिधान,अब, पास्चात्त्य पध्धति के , आम तौर पर दीखने लगे हैँ,भारत की सडकोँ पर, ये नजारा, आम होता जा रहा है


छवि , तो भारतीय नारी की है ...
कितने कष्ट से, इतनी दूर , परदेस मेँ,नवरात्र के दाँडिया उत्सव मेँ पहनने के चाव से,
भारत के किसी शहर से खरीद कर ये लेँघा ओढना और चुनरी,लायी जाती है .
.जब,भारतीयता से लगाव हो तब ये सारे कष्ट, मामूली लगते हैँ

और ये अँतिम छवि है ...सुप्रसिध्ध सिने कलाकार श्री सशि कपूर जी की ब्रिटीश पत्नी जनीफर केन्डल की बिटियासँजना कपूर की जो , भारत मेँ ही जन्मी, पलीँ, बडी हुईँ हैँ..

ब्रिटेन की आधी + आधी हिन्दुस्तानी विरासत लिये, साडी बाँधे कितनी सहज व प्यारी दीख रहीँ हैँ ...

ये भी कह दूँ कि, इतने बरस विदेश मेँ रहते हुए भी मैँ यही मानती हूँ कि साडी जैसा सुँदर पहनावा, स्त्री के लिये दूजा कोई नहीँ .

.हर तरह की साडी से नारी आकृति की शोभा को गरिमा व असीम सौँदर्य मिलता है ..साडी सदीयोँ से चला आ रहा ऐसा पहनावा है ..जो स्त्री को अधिकाधिक मोहक बनाता है , हर ऐब को ढँकने मेँ सक्षम,साडी, हर नारी के बाह्य सौँदर्य को निखार कर, आकर्षक रुप प्रदान करती है ..यही नहीँ..आँचल की ओट किये, जलता दीपक ले जाती नारी आकृति ने कई मनमोहक छवियाँ प्रस्तुत कीँ हैँ ..और हर बच्चे की स्मृतियोँ मेँ उसके माँ के आँचल को, कस कर थाम ने की छाप अमिट, बसी हुई होती है. , ये मेरा निजी मत हो ...परँतु,साडी सच मेँ मेरा सर्वप्रिय परिधान है और रहेगा

-- लावण्या



10 comments:

मीनाक्षी said...

सच कहा आपने . साड़ी बहुत सुन्दर परिधान है और पहनते ही रूप में एक अलग निखार जाता है.

mamta said...

वाकई साड़ी एक ऐसा परिधान है जिसे हर कोई पहन सकता है। और मजे की बात ये कि साड़ी हर किसी के ऊपर खूब फबती है या सुन्दर लगती है । फोटो अच्छे आये है।

पुनीत ओमर said...

काफी कुछ जैसा परिवेश होता है वैसा ही हमारा पहनावा हो जाता है. उसमें कुछ भी अच्छा या बुरा निर्धारित किया जाए ये कम ठीक लगता है.. ख़ास कर किसी बाहर के देश के व्यक्ति के द्वारा. पर जो भी हो... नारी की गरिमा का अद्भुत प्रदर्शन है आपकी तस्वीरों में.

Harshad Jangla said...

Lavanyaji
Your statement about Saree is true to every word.Its elegant and decent too.
Nice blog with good pictures.
Thanx.

उन्मुक्त said...

साड़ी पहनने के बात शालीनता आती है जो अन्य परिधान में शायद नहीं।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मीनाक्षी जी सही कहा आपने -
टिप्पणी का शुक्रिया -

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ममता जी आपकी
टिप्पणी का भी बहुत बहुत शुक्रिया
फोटो पसम्द करने के लिये भी -

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

पुनीत जी, आपने सही लिखा है प्रविष्टी व तस्वीरोँ को पसँद करने का शुक्रिया -

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Harshad bhai,
Thank you so much for your generous & kind words

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

उन्मुक्त जी मैँ आपकी बातोँ से सहमत हूँ