http://www.srijangatha.com/2007-08/octuber07/usa%20ki%20dharti%20se%20-%20lshahji.htm
जहाँ पे सवेरा हो, बसेरा वहीँ है
भारतीय मूल के प्रवासी विश्व मेँ जहाँ कहीँ पहुँचते हैँ और अपने परिवार के साथ बस जाते हैँ वहाँ पर वे लोग अपनी साँस्कृतिक धरोहर साथ ले कर चलते हैँ. मोरीशयस, जावा सुमात्रा, इन्डोनेशीया,मलेशिया,सिँगापोर,होँगकोँग, जैसे पूर्वीय द्वीप सँस्कृति मेँ जा कर भारतीय, ग्राम जीवन से निकल कर, कई परिवारोँ ने,अपनी नई गृहस्थीयाँ बसाईँ थीँ.जिनकी आज शायद २ री या ३ री पीढीयाँ भी वहीँ बसी हुईँ हैँ.वे भारत घूमने तो जाते रहे होँगँ पर लौट के फिर वे भारत नहीँ गये. हाँ ये शत प्रतिशत तो खैर नहीँ कह सकते,कुछेक लौट कर आये भी होँ परँतु अधिकाँश "अप्रवासी" ही बने रहे.
ये "अप्रवासी" भी बडी अजीब किस्म की शख्सियत होती है !
सोचिये,रुप रँग,सोच,मानसिकता, साँस्कृतिक झुकाव, सभी, सर्वथा भारतीय होते हुए भी, इन्सान, परदेश के परिवेश से ताल मेल मिलाने की आजीवन कोशिश करते करते,
वहीं परदेश मेँ प्राण त्याग देता है ...
उसकी माटी पराये देस मेँ पराई माटी मेँ घुल मिल जाती है
और अगली पीढी, जीती है यादोँ के सहारे ...
सगे सँबँधी भी तस्वीरोँ और यादोँ के सहारे,
अपने स्वजनोँ को याद करते रहते हैँ !
ये मेरे मन की बातेँ , मैँ , आप को बतला कर, पूर्व भूमिका स्वरुप आपसे बाँट रही हूँ क्यूँकि अब आप से कुछ, चित्रमय झलकियाँ बाँटने का मन है
१) ये चित्र दीर्घा है "गणेशोत्सव " कीँ जो न्यु -योर्क के पास के न्यु जर्सी शहर मेँ सम्पन्न हुआ था :~
उसकी माटी पराये देस मेँ पराई माटी मेँ घुल मिल जाती है
और अगली पीढी, जीती है यादोँ के सहारे ...
सगे सँबँधी भी तस्वीरोँ और यादोँ के सहारे,
अपने स्वजनोँ को याद करते रहते हैँ !
ये मेरे मन की बातेँ , मैँ , आप को बतला कर, पूर्व भूमिका स्वरुप आपसे बाँट रही हूँ क्यूँकि अब आप से कुछ, चित्रमय झलकियाँ बाँटने का मन है
१) ये चित्र दीर्घा है "गणेशोत्सव " कीँ जो न्यु -योर्क के पास के न्यु जर्सी शहर मेँ सम्पन्न हुआ था :~
~ जिस तरह भारत के हर शहर मेँ गणेश प्रतिमा की प्रेम पूर्वक स्थपना होती है, ठीक उसी तरह, पूरी श्रध्धा और आनँद के साथ, अमेरीका मेँ भी ऐसा उत्सव प्रवासी भारतीय जो अमरीका मेँ घर बसा कर रहते हैँ वे भी ऐसे अनुष्ठान सम्पन्न करते हैँ
1) http://indianera.com/slideshow/GaneshUtsav/index.asp
२) ये चित्र दीर्घा है प्रथम अँतराष्ट्रीय भारतीय प्रवासी दिवस समारोह की जो न्यु -योर्क शहर मेँ सम्पन्न हुआ था :~~
2) http://indianera.com/slideshow/Pier60/index.asp
3 ) और ये चित्र देखिये, "अभूतपूर्व भारत की झलकियाँ उत्सव कीँ "
3 ) http://www.indianera.com/slideshow/brayantpark/index.asp
4 ) और यह ३ री द्रश्य - दीर्घा है " साठ वर्ष - और ६० प्रतिभाएँ "
4 ) http://www.indianera.com/slideshow/KamalNath/index.asp
5) यह चित्रमय कहानी है भारतीय बुजुर्ग समाज की -ब्रीज वोटर इलाके से इन्हेँ पिकनिक या एक दिन की सैर के लिये इकट्ठा करके घूमने ले जाया गया था.युवा पीढी काम काज मेँ व्यस्त रहतीँ हैँ और इन्हेँ भी मनोरँजक पर्यटन की आवश्यक्ता है जिसे पूरा करना जरुरी है.
5 ) http://www.indianera.com/slideshow/senior_council2007/index.asp
6) http://www.harrissalat.com/archives/restaurants/
Jersey City:
1) http://indianera.com/slideshow/GaneshUtsav/index.asp
२) ये चित्र दीर्घा है प्रथम अँतराष्ट्रीय भारतीय प्रवासी दिवस समारोह की जो न्यु -योर्क शहर मेँ सम्पन्न हुआ था :~~
2) http://indianera.com/slideshow/Pier60/index.asp
3 ) और ये चित्र देखिये, "अभूतपूर्व भारत की झलकियाँ उत्सव कीँ "
3 ) http://www.indianera.com/slideshow/brayantpark/index.asp
4 ) और यह ३ री द्रश्य - दीर्घा है " साठ वर्ष - और ६० प्रतिभाएँ "
4 ) http://www.indianera.com/slideshow/KamalNath/index.asp
5) यह चित्रमय कहानी है भारतीय बुजुर्ग समाज की -ब्रीज वोटर इलाके से इन्हेँ पिकनिक या एक दिन की सैर के लिये इकट्ठा करके घूमने ले जाया गया था.युवा पीढी काम काज मेँ व्यस्त रहतीँ हैँ और इन्हेँ भी मनोरँजक पर्यटन की आवश्यक्ता है जिसे पूरा करना जरुरी है.
5 ) http://www.indianera.com/slideshow/senior_council2007/index.asp
6) http://www.harrissalat.com/archives/restaurants/
Jersey City:
"The Number One Indian Ice Cream In The World"
और जिस तरह भारत के परिवार मेँ माता पिता बच्चोँ को आइस्क्रीम खिलाने ले जाते हैँ बिलकुल उसी तरह, अब भारत की मशहूर कँपनी 'क्वालिटी " की दुकान अब अमेरीका मेँ भी खुल गई है !
और जिस तरह भारत के परिवार मेँ माता पिता बच्चोँ को आइस्क्रीम खिलाने ले जाते हैँ बिलकुल उसी तरह, अब भारत की मशहूर कँपनी 'क्वालिटी " की दुकान अब अमेरीका मेँ भी खुल गई है !
तो मजे हो गये ना बच्चोँ के और बडोँ के भी !
अब अमरीका मेँ भी बहुतेरे आ इस्क्रीम मिलते हैँ पर, 'क्वालिटी " का ब्रान्ड मिलने से खुशी बढ गई और अहमदाबाद के वाडीलाल वाला ब्रान्ड भी भारतीय सौदा बेचनेवाली दुकानोँ मेँ अब मिल ही जात है,
आसानी से ..
अब अमरीका मेँ भी बहुतेरे आ इस्क्रीम मिलते हैँ पर, 'क्वालिटी " का ब्रान्ड मिलने से खुशी बढ गई और अहमदाबाद के वाडीलाल वाला ब्रान्ड भी भारतीय सौदा बेचनेवाली दुकानोँ मेँ अब मिल ही जात है,
आसानी से ..
.ये भारतीय वस्तु के प्रति भारतीय लोगोँ का मोह है और अमरीकी प्रजा भी शौक से इसे चखती है और पसँद करती है.
इस प्रकार भारतीय सामग्री का व्यापार बढता जा रहा है. पसँद अपनी अपनी और व्यैक्तिक आज़ादी का सर्वव्यापी विकास प्रजातँत्र की गाडी का एक पहिया है जिस की तेज दौड से
आज विश्व निकट आकर सिकुडता जा रहा है .
इस प्रकार भारतीय सामग्री का व्यापार बढता जा रहा है. पसँद अपनी अपनी और व्यैक्तिक आज़ादी का सर्वव्यापी विकास प्रजातँत्र की गाडी का एक पहिया है जिस की तेज दौड से
आज विश्व निकट आकर सिकुडता जा रहा है .
..आज इतना ही, फिर मिलेँगेँ ..
कुछ और बातोँ के साथ ..
अमरीका की पाती ...
आपसे विदा लेती है..
कुछ और बातोँ के साथ ..
अमरीका की पाती ...
आपसे विदा लेती है..
.राम ..राम भाइयोँ और बहनोँ ...
स्नेह सहित : लावण्या
स्नेह सहित : लावण्या
6 comments:
अमरीका की यह पाती भी सही रही. अच्छा लगा पढ़ना. आभार.
लावण्या जी, आप पोस्ट में अक्षरों को सैंट्रलाइज, बोल्ड तथा इटैलिक करके लिखती हैं जिससे पढ़ने में परेशानी होती है। डिफॉल्ट रुप से जो सैटिंग होती हैं वहीं बेहतर है।
एक अन्य बात जब अनुस्वार (ँ) किसी मात्रा के ऊपर आता है तो केवल बिन्दी लगती है, अर्धचंद्र नहीं।
उदाहरण के लिए:- मेँ नहीं में लिखा जाएगा।
Lavanyaji, I do visit your blog often but dont leave comment. Loved reading 'woh college ke din' and also other posts. Lataji ke pics dekhkar laga ki jaise main mandir mein devi ki tasverein dekh rahi hun. Aap aise hi likhte rahe aur hum vachakon ka man lubhate rahe. Thanks a ton for the knowledge you keep sharing with us always! My sincere wishes to you and your blog.
Regards,
Madhu
समीर भाई,
आपका प्रोत्साहन
सदा नया लिखने को प्रेरित करता है
आभार !
स - स्नेह,
-- लावण्या
श्रीष भाई,
आपको बताऊँ , मुझे लगा कि मैँ बडी साज - सज्जा कर रही हूँ !
क्या जैसा ओरीजीनल सेटीँग होता है वही रखा करूँ ?
और आपने पहले भी मुझे,
चँद्र बिँदु और सादी बिन्दी के बारे मेँ बतलाया था जिसके लिये, आभार !
मेरी दुविधा यही है कि,मैँ "हिन्देनी" से लिखकर, आज भी, कोपी पीस्ट
करती हूँ - और कोई, लिखने के लिये मुझे माफिक ही नहीँ आ रहा - आप, और कोई सुझायेँ..... कोशिश करुँगी.
स - स्नेह,
-- लावण्या
Dear Madhurima ji,
aapki tippani dekh sachmuch harsh hua. " won college ke din " meri college jeevan ki jhalak dikhlatee kavita hai.Use pasand karne ka shukriya !
Humaree respected DIDI ke liye Shradhdha ke Phool,aap ke dil se bhee shamil hain ye jaanti hoon.
& thank you & will look forward to your continued affection & support & i promise to keep writing to the best of my abilities.
I thank you , humbly.
warm rgds,
-- Lavanya
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