ये दीदी का एक मस्तीभरा गीत है जिसे री - मीक्स किया गया और अलग तरीकोँ से गाया गया है -
- पर, मुझे ये ओरीजीनल गीत ही ज्यादा पसँद है
और ये दूसरा उसी तरह का गीत है जो आज युवा वर्ग मेँ बेहद लोकप्रिय है , सालोँ साल गुजर जाते हैँ और हर पीढी के युवा दीलोँ की धडकनोँ को लता मँगेशकर की आवाज़ का जादू , उसी तर्ज पे फिर , फिर भाता है और समय का बहाव मानोँ रुक सा जाता है.
स्थल " लोस - अन्जिलिस का हवाई अड्डा
साल: १९७५ -
चित्र मेँ , मैँ हूँ - ( और हाँ मैँ ने अमरीकन ड्रेस पहन रखी थी जिसे देखकर दीदी कुछ नाराज़ हो गईँ थीं और पापा जी से भी जा कर मेरी शिकायत कर दी थी कि "लावण्या, अमरीकन हो गई है ! " -
साल: १९७५ -
चित्र मेँ , मैँ हूँ - ( और हाँ मैँ ने अमरीकन ड्रेस पहन रखी थी जिसे देखकर दीदी कुछ नाराज़ हो गईँ थीं और पापा जी से भी जा कर मेरी शिकायत कर दी थी कि "लावण्या, अमरीकन हो गई है ! " -
दूसरे दिन हिल्टन होटल मेँ , मैँ, जामुनी बाँधणी साडी पहन कर गई तब दीदी खुश हो गईँ थीँ और कहा था कि,
" तुम अब वही लावण्या लग रही हो ! "
मेरी अम्मा भी, अक्सर, मुझे, डाँट देतीँ थीँ कि ,
" तुम,भारतीय लडकी हो,तो,साडी ही पहना करो ! " ;-)
अलका जी ने दीदी पर ये आलेख लिखा है और उन्हेँ" युवावस्था का मधुर पँछी" / 'sweet bird of youth " कहा है उसके शीर्षक मेँ ; ( Alka Yagnik the singer )
मीना ताई खाडिलकर , लता दीदी और उषा जी प्रसन्न मुद्रा मेँ ~~~
दीदी के लिये श्री दिलीप कुमार जी और नरगिस जी ने ये तारीफ के शब्द कहे थे : ~`
जिस तरह फूल की खुश्बू का कोई रंग नहीं होता वो महज खुश्बू होती है, जिस तरह बहते हुए पानी के झरने या ठंडी हवाओं का कोई घर या देश नहीं होता, जिस तरह कि उभरते हुए सूरज की किरणों का या किसी मासूम बच्चे की मुस्कुराहट का कोई मजहब या भेदभाव नहीं होता, वैसे ही लता मंगेशकर की आवाज कुदरत की तख़लीक का एक करिश्मा है।- दिलीप कुमार (अभिनेता)लता किसी तारीफ की नहीं बल्कि परस्तिश के काबिल हैं। उनकी आवाज सुनने के बाद ऐसा आलम तारी हो जाता है.. यूं समझिए जैसे कोई दरगाह या मंदिर में जाए तो वहां पहुंचकर इबादत में सिर खुदबखुद झुक जाता है और आंखों से बेसाख्ता आंसू बहने लगते हैं।- नरगिस दत्त (अभिनेत्री)
5 comments:
बहुत अच्छा लगा संस्मरण और चित्रों का देखना. आभार बांटने के लिये.
मैंने आज पहली बार थोड़ा रेशम लगता है लता जी की आवाज़ में सुना आभार आपका
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मैं आज के हिंद का युवा हूँ,
मुझे आज के हिंद पर नाज़ है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
सुनो हिन्दी मेरी आवाज़ है.
www.sajeevsarathie.blogspot.com
www.dekhasuna.blogspot.com
www.hindyugm.com
9871123997
सस्नेह -
सजीव सारथी
sajeevsarathie@gmail.com
लता जी से जुड़ी यादों को इन बहुमूल्य चित्रों के साथ बाँटने का आभार !
दीदी तो दीदी ही हैं उनके संदर्भ में कुछ भी कहना कम ही होगा… बहुत अच्छा रहा यह संस्मरण भी…।
समीर भाई,सजीव सारथी जी, मनीष भाई, दीव्याभ,
आप सभी का शुक्रिया अदा करती हूँ जो आपने मेरे प्रयास को पढा और सराहा -
स्नेह सहित,
-- लावण्या
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