श्री सुमित्रा नँदन पँत ने लिखा है --
" वह ( नरेन्द्र ) क्रान्तिकारियोँ की वर्दी पहन कर एक दो वर्ष के लिए शायद देवली कैँप मे भी नजरबँद रहा, हहाँ के कठोर अनुशासन की पाषाण -शिला से उसके कवि के भीतर "कामिनी " नामक खँड - काव्य का मर्म मधुर प्रणय स्त्रोत फूटा तथा उसने "मिट्टी और फूल " शीर्षक अपने काव्यसँग्रह की रचना की."बैरक " से कविता मे जेल मे रहते हुए भी कवि का प्रकृति के प्रति व्यक्त आकर्षण द्रष्टव्य है.
कवि का " साँझ " का यह चित्र
ग्राम - प्राँत को कितनी शांति प्रदान करता है --
" बछडे सा बिछुडा था दिन भर जो ग्राम -प्राँत,
श्याम धेनु सँध्या के आते ही हुआ शाँत "
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' माता भूमि पुत्रोहँ पृथिव्याँ ' राष्ट्रीय चेतना की सबसे बडी कसौटी है. धरती माता सबसे महान होती है. स्वर्ग से भी ! इसीलिये कहा गया है - " जननी जन्मभूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी " -- कवि " कामिनी " कविता मे इसी धरती माता के लिए आशीर्वाद माँगता है.
" धरित्री पुत्री तुम्हारी हे अमित आलोक,
जन्मदा मेरी वही है, स्वर्ण गर्भा कोख !"
कवि की "सुवीरा " काव्य सँग्रह मे ऐसे अनेक प्रसँग आये हैँ जहाँ भारत के उद्दाम वर्णन मे देशप्रेम मुखर हुआ है एक उदाहरण प्रस्तुत है -
" धर्म भूमि यह, कर्मभूमि यह, ज्योतिर्मय की मर्मभूमि यह,चार पदार्ठोँ से परिपूरित , धरती कँचन थाल है "
नील लहरोँ के पार लगी है चीन देश मे आग, जाग रे हिन्दुस्तानी जाग
उन दिनोँ बहुत लोकप्रिय हुई थी.
वही कवि अपने १९६० मे प्रकाशित "द्रौपदी:" खँडकाव्य की भूमिका मे स्वाकार करता है कि "राष्ट्रीय चेतना के निर्माण मे पुराण कथाओँ का बडा हाथ होता है. भारतीय जन मानस पर इनका गहरा प्रभाव है. सुधार, प्रगति या आधुनिकता के नाम पर अचेतन जनमानस और पुराण कथाओँ से आज का काव्य अछूता , असँपृक्त रहे , यह उचित नहीँ : "
" विश्व को वामन पगोँ से नापने की कामना है "
कवि के लिये गाँधी जी राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक रहे हैँ अत: उनके काव्य मे गाँधी दर्शन अथवा गाँधी प्रशस्ति प्रचुर मात्रा मे मिलती है. " रक्त -छँदन " की सभी रचनाएँ गाँधी जी के बलिदान से सँबँध हैँ किन्तु अन्य बलिगानियोँ की कवि ने उपेक्षा नहीँ की है. ग्राम जहाँगीरपुर से प्रयाग , काशी होता हुआ कवि बम्बई के सागर तट पर आ बसता है, पर, कृषि प्रधान गाँव की धरती से उसका नाता अटूट बना रहता है. गाँव की धरती का ये शब्द चित्र देखिये -
"-" पक रही फसल, लद रहे चना से बूट पडी है हरी मटर "
क्रमश:
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