ये गीत फिल्म: सुहाग रात से है - जो मुझे बहुत प्रिय है --
बोल हैँ " गँगा मैया मेँ जबतक ये पानी रहे ..
मेरे सजना तेरी ज़िँदगानी रहे ..
ज़िँदगानी रहे ..हैया हो गँगा मैया .."
माँझी गीतोँ से स्वर लिये यह गीत भारतीय नारी के मनोभाव का आइना सा लगता है मुझे !
भारतीय पतिव्रता नारी भले ही आधुनिक नहीँ अति आधुनिक हो जाये तब भी कहीँ दिल के भीतर यही भावना दबी दबी रहती है।
जब मुझसे विदेशी ( अमेरीकन ) पूछते हैँ कि,
" आप भारत की स्त्रियाँ अपने भाल पर ये लाल टीका क्यूँ लगातीँ हैँ ? "
तो मेरा जवाब रहता है,
" मैँ जब बिँदीया लगाती हूँ तब मन ही मन ईश्वर से ये प्रार्थना भी करती हूँ कि प्रभु मेरे पति को लँबी ऊम्र देँ ! ये टीका,उसी के लियेमैँ मेरे भाल पर सजाती हूँ!"कुमकुम,बिँदिया, सिँदुर, टीका , तिलक,सौभाग्य चिन्ह, चाँदलो ( गुजराती मेँ )
ये पारे और गँधक के मिश्रण से बनाया जाता है। पारा शिव या पुरुषतत्व का प्रतीक है और गँधक रसायन, स्त्री और पार्वती का प्रतीक है। शिव और शिवा के मेल से ही विवाह सँपन्न होकर, स्त्री और पुरुष का सम्पृक्त दँपत्ति या युगल स्वरूप बनता है। " चँदन सा बदन चँचल चितवन " इस गीत मेँ भी सुनिये ~~ इस गीत में सिन्दूर को
" माथे पर सिँदूरी सूरज " की उपमा दी गयी है।
निर्माता : सर्वोदय पिक्चर्स डायरेक्टर : गोविँद सरैया
सँगीत : कल्याण जी आनँद जी गीत रचना : इन्दीवर
सरस्वतीचंद्र गुजरात की पृष्ठभूमि पर लिखा गया सुप्रसिध्ध उपन्यास है जिसे हिन्दी फिल्म बनाकर समस्त भारतीयोँ के सामने गुजरात के प्रेमी युगल की कथा को परोसा गया था जिसके गीत लिखे थे कवि श्री इन्दीवर जी ने ! वे अक्सर हमारे घर १९ व रास्ते खार पर आया करते थे।
सरस्वतीचँद्र गोवर्धन राम त्रिपाठी जी का अपने समय से बहुत पहले का दृष्टिकोण लिये उपन्यास था जो १८८१ से १९०१ के मध्य मेँ उजागर हुआ।
कुमुद से ब्याह न करने का निश्चय कर, अमीर सरस्वतीचँद्र मिलते हैँ और अपनी होनेवाली मँगेतर से प्यार करने लगते हैँ। परँतु नियति को ये मँजूर न था।
कुमुद ( नूतन ) की शादी एक बिगडे पियक्कड रईसजादे से हो जाती है और नूतन की ज़िँदगी दुखोँ से भर जाती है। वह आत्महत्या की कोशिश करती है परँतु कुछ साध्वियाँ कुमुद को बचाकर अपने आश्रम मेँ ले जातीँ हैँ जहाँ उसकी मुलाकात दुबारा, सरस्वतीचँद्र से हो जाती है।
परिवार के ये कहने पर कि, ' कुमुद अब दूसरी शादी कर लो ' ( चूँकि उसके शराबी पति का देहाँत हो चुका है ) कुमुद परिवार का आग्रह ठुकरा कर , समाज सेवा की ओर मुड जाती है।
ये काफी गँभीर कथानक है चित्रपट का ! जिसे देखने मेँ धीरज रखनी पडती है पर सुँदर गीतोँ से पूरी फिल्म दर्शक को अंत तक बाँधे रखती है।
" छोड दे सारी दुनिया किसी के लिये ..
ये मुनासिब नहीँ आदमी के लिये ..
प्यार से भी ज़ुरुरी कयी काम हैँ
प्यार सबकुछ नहीँ आदमी के लिये .."
यह गीत भी इन्दीवर जी की कलम से निकला हुआ एक बेहतरीन गीत है .
अगले भाग मेँ इन्दीवर जी का लिखा सँस्मरण मेरे पूज्य पापा जी के जाने के लिये बाद छपी पुस्तक " शेष ~ अशेष " से लिया हुआ आप के लिये पेश करुँगी..
तब तक ..के लिये, थोडा सा..इँतज़ार ..
4 comments:
मैने सरस्वती चन्द्र गुजराती में पढ़ी है और बहुत ही अच्छी लगी थी।
सागर भाई,
मैँने भी गुजराती भाषा से ही स्कूल तक की पढाई की है -
अच्छा लगा जानकर की आपको " सरस्वतीचँद्र " उपन्यास पसँद आया है
स्नेह,
- लावण्या
बेहतरीन प्रस्तुति की है मै'म…
बहुत सुंदर!!!
दीव्याभ,
बहुत बहुत शुक्रिया आपका !
सस्नेह,
लावण्या
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