सबसे पहले : भारत मेँ जाति प्रथा के साथ साथ ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ही नहीँ , रँग भेद की नीति की नीँव डलेगी,आफ्र्रीका के महान भूखँड से, मज़दूरी करने अश्वेत लोगोँ को , जंजीरों मेँ बाँधकर,अरबी समुद्र को पार करने मेँ भूखे प्यासे , लहूलुहान हालत मेँ बँधुआ मज़दूर बना बना कर लाया जायेगा और उत्तर प्रदेश, बँगाल बिहार के गन्ने , गेँहू, धान के खेतोँ मेँ २०० से ज्यादह साल काम करने के बाद आज़ादी दे दी जायेगी और बोलीवुड मेँ उस विषय पर धाँसू फिल्मेँ बनेँगी ." मेरी जडेँ " = ऋट्स्`लेखक ऐलेक्स हेली के उपन्यास के जैसी
दुसरे नँबर पर:
: भारत मेँ अमेरीका बन जाने पर आदीवासी जन जातियोँ को एक निस्चित्त भूखँड मेँ , निवास करना अनिवार्य घोषित होगा, जिस प्रकार अमेरीका के लाल हिन्दुस्तानी ( मतलब रेड इँडियन भई ),के क्षेत्र होते हैं...वैसे....
फिर कुछ समय बाद यही जनजातियाँ अपने अपने बडे भव्य जुआघर मतलब कसीनो खोल देँगेँ जहाँ सारे भारतीय अपनी गाढी कमाई का बडा हिस्सा, हर माह जुए मेँ हार कर, रात को "छम्म्मा छम्मा बाजे री मेरी पैँजणिया" के स्वर पर थिरकती हुई नृत्याँगनाओँ का नाच देखेंगे...
तीसरे नबँर पर : पूरा भारत आपको आकाश से [या गूगल कैमेरा से] सडकोँ के सर्पाकार कुँडलियोँ से वेष्टित दीखलायी पडेगा जहाँ कयी तरह की चमचमातीँ कारेँ रात दिन घूमती रहेँगी... कोयी सोयेगा नहीं... सारे व्यापार दिन रात चलते रहेँगे, लोगबाग खूब काम करेँगे और खूब कमायेँगे और उससे भी ज्यादह खर्च करेँगे चूँकि अमेरीका का मूल मँत्र अब भारत मेँ व्याप्त है, " यु स्पेन्ड मोर सो यु सेव मोर ' ...ये वाणिज्य का नया नियम अब फैल चुका है -
नँबर चार पर : ऐश्वर्या को मिस्र की अनिँध्य सुँदरी क्लीयोपेट्रा का रोल अदा करने के लिये ,निर्माता सँजय भँसाली,
१०० अबज रुपये देँगे जो एक नया कीर्तिमान होगा.
अभिषेक ज्यूलीयस सीजर होँगे और मार्क अँन्थनी का किरदार एक रहस्यमय ४० + वर्षीय कलाकार करेँगे जिनका नाम ( सलमान ) अभी गुप्त रखा जायेगा --और नँबर ५ वाँ : अँतिम : गणपति महाराज के चूहे "मूषक राज " पर हर शहर के साथ साथ एक और ट्वीन सिटी के रुपमेँ " भारतीय मूषक लैन्ड"
[अरे भई डीज़्नी लैन्ड की तरहा ही समझिये ], जैसे अति विशाल क्रीडाँगण ठीक वैसे ही [ मिकी माउस के शहर ] बनवा दीये जायेँगे जहाँ समूचे भारत की प्रजा, दिन रात हँसा खेला करेगी, कोई दुखी न होगा या उदास् भी नही होगा -
-- जहाँ छोटे , बडे सभी को चँद्रमा पर जाने की ट्रेँनीम्गं के प्रारुप, ऊपर, नीचे आडे तिरछे, ४०० फीट हवा मेँ , चारोँ तरफ घूमा फिरा के,
[ओर जब तक की बँदा चारोँ खाने चित्त ना हो जाये]
..चक्करघन्नी की मानिँद घूमाते रहा जायेगा ....
.. सैर की सैर और प्रशिक्षण भी साथ मेँ दीया जायेगा ताकि पीट्ज़ा और बर्गर आसानी से हजम हो जाये क्योँकि अब "अम-भारत" = "अमरीका + भारत " मेँ कोयी रोटी न बनाता है ना खाता है !!
-- पुराना भारत अब इतिहास हो चुका है !! ;-((
-- आखिर, मोर्डन हो के, एक प्राचीन, सँस्कृति की गरिमा से , सुशोभित देश... "अम -भारत " जो हो गया है ! .
...उफ्फ ! गनीमत है कि, ये सिर्फ लफ्ज़ोँ का खेल ही रहा !
-- पुराना भारत अब इतिहास हो चुका है !! ;-((
-- आखिर, मोर्डन हो के, एक प्राचीन, सँस्कृति की गरिमा से , सुशोभित देश... "अम -भारत " जो हो गया है ! .
...उफ्फ ! गनीमत है कि, ये सिर्फ लफ्ज़ोँ का खेल ही रहा !
..या कि एक दुस्वप्न !
..विश्व सिकुडता जा रहा है
..मैँ और आप होँशियार हो जायेँ कि
हमेँ दोनोँ देशोँ की सभ्यता से क्या चुनना है ..?
और क्या छोडना है .
..मैँ और आप होँशियार हो जायेँ कि
हमेँ दोनोँ देशोँ की सभ्यता से क्या चुनना है ..?
और क्या छोडना है .
.ठीक है ना साथियोँ ?
- लावण्या
- लावण्या
16 comments:
बहुत ख़ूब लिखा है।
बहुत बेहतरीन रही यह कल्पना की उड़ान और अम-भारत की परिकल्पना. बधाई.
हमें किसी के जैसा नहीं बनना . हम जैसे भी हैं ठीक हैं . और अगर बेहतर भी होना है तो अपने जीवन मूल्यों और ज़मीन के हिसाब से बेहतर होना है,किसी और की नकल में नहीं .
बहुत बढिया!अच्छी कल्पना की उड़ान और विचार।बधाई।
दुर्भाग्य यह है कि हम उधर ही बढ रहे हैं.
मजेदार कल्पना की उड़ान।
आदरणीय मै'म,
बहुत शानदार पेशकश रही…
कल्पना की उड़ान ने तो बहुत कुछ सिखलाया भी और जताया भी…।
एक बेहतरीन रचना !!!
आपने बहुत विश्लेषण करके लिखा है. मैं आपके निष्कषों से सहमत हूं -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
ममता जी ,शुक्रिया
सस्नेह,
-- लावण्या
समीर भाई, आपको "अम -भारत " की कल्पना पसँद आयी तो मुझे खुशी हुई !
धन्यवाद सह,
-स्नेह - लावण्या
प्रियँकर जी, सही कह रहेँ हैँ आप --टिप्पणी का आभार !
स-स्नेह
- लावण्या
परमजीत जी, ाअप को मेरी कल्पना की उडान अच्छी लगी चलिये लिखना सफल रहा तब तो
--टिप्पणी का आभार !
स-स्नेह
- लावण्या
साँकृतायन जी
आप ने ठीक कहा है, अफसोस की बात यही है कि हम आधुनिकता की दौड मेँ अँधा अनुकरण कर के इसी रास्ते से आगे बढ रहेँ हैँ
--टिप्पणी का आभार !
स-स्नेह - लावण्या
श्रीश जी,
मेरा लिखा पढकर
उसपर प्रतिक्रिया देने का बहुत बहुत शुक्रिया
स-स्नेह
- लावण्या
दीव्याभ,
आप मेरा लिखा सभी पढते हो और बहुत पोज़ीटीव रीयेक्शन देते हो तो उत्साह बढता है -
शुक्रिया !
स-स्नेह
- लावण्या
शास्त्री जी ,
हाँ हल्के अँदाज़ मेँ भी कई बार सँजीदा बातेँ कही जातीँ हैँ
मेरा भी कुछ ऐसा ही प्रयास था
शुक्रिया !
स-स्नेह -
लावण्या
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