Friday, June 29, 2007

...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर -- ८



समय फिर आगे बढता गया. आज राजश्री और प्रकाश बेहद खुश थे.
उनका पुत्र प्रताप आज २ साल का हो गया था.
वे लोग बडे उत्साह के साथ नन्हे प्रताप राजा का बर्थ -डे मना रहे थे.
पार्टी मेँ सारे मित्रोँ के बच्चे, मम्मीयोँ के साथ आ पहुँचे थे. बडे सी कार की शेप वाला केक काटा गया और खूब जोर से सब मिलकर 'हेप्पी बर्थ डे टू यू ...हैप्पी बर्थ डे डीअर प्रताप.. .." गा रहे थे.
मुँह मीठा किया तभी मोबाइल की रीँग सुनकर प्रकाश ने
' हेल्लो हेल्लो ..कौन ?'
पूछा तो सामने से रोहित की जानी पहचानी आवाज़ आयी,
" बडा हँगामा हो रहा है ! पार्टी चल रही है क्या तेरे यहाँ ? "
उसने पूछा तो प्रकाश ने कहा,
" हाँ आ जा ना ...प्रताप आज २ वर्ष का हो गया आके केक खाओ ! "
तो रोहित भी आधे घँटे बाद वहाँ आ पहुँचा.
प्रकाश और राजश्री उससे मिलकर खुश हुए.
रोहित परिवार के सदस्योँ से बारी बारी से जा कर मिला.
फिर रात देर तक वे लोग बातेँ करते रहे.
पँखुरी और प्रताप को सुलाकर
राजश्री भी गेलेरी मेँ आ गयी जहाँ दोनो दोस्त कुर्सीयोँ पर बैठे थे.
" राजश्री जी, कहिये, कैसी हैँ आप ? " रोहित ने मुस्कुराकर प्रश्न किया
तो राजश्री ने कहा, " ठीक हूँ ..बस !
थकान हो रही है ..तुम सुनाओ ..कहाँ रहे इतने दिन ? '
" वही, अमरीका और अब यहाँ ..काम काम और फिर औ भी ज्यादा काम
..मेरा समय तो ऐसे ही बीत रहा है भाभी .."
राजश्री ने अचानक कहा, " रीना से मुलाकात हुई थी ..२ महीने पहले ..सच बत्ताना रोहित, क्या तुम दोनोँ दुबारा एक नहीँ हो सकते ? "
" ना ..मैँने बहुत सोचा है, हम एक साथ खुश नहीँ रह सकते .
.अब वो चेप्टर खत्म हो गया ..भाभी जी ..जाने दीजिये उस बात को "
रोहित बोला
..तो राजश्री और प्रकाश रोहित का चेहरा निहारने लगे और
उसे बहुत उदास और सँजीदा पाया -
- "क्या बात है दोस्त ? तुम ठीक तो हो ? " प्रकाश ने पूछा,
" हाँ अब तो अकेले रहने की आदत हो गयी है ! "
रोहित ने गहरी साँस लेते हुए आहिस्ता से कहा
तो राजश्री ने प्रकाश की ओर निहारा ,
दोनोँ की निगाहोँ मेँ सुहानुभूति घुल गयी
अपने मित्र के दुख से वे भी दुखी हो गये.
" तुम मेरी मानो और दुबारा शादी कर लो ! " राजश्री ने कहा,
" रीना से तुम्हारी नहीँ निभी
..हो जाता है ऐसा, समाज बदल चुका है, लोग समझने लगे हैँ और तलाक होना कोयी बहुत बडी बात नहीँ रही अब हमारे भारतीय समाज मेँ
खास कर बँबई जैसे शहरोँ मे "
ये प्रकाश ने समझाते हुए कहा ..तो रोहित ने कहा,
" शायद तुम सच कह रहे हो मित्र !
पर शादी - ब्याह की ओर मेरा मन नहीँ -
- मैँ काम मेँ इतना मस्रुफ रहता हूँ
कि शादी या लडकीयोँ के बारे मेँ सोचने की फुर्सत नहीँ मुझे "..
रोहित ने अपनी बात , अपने अँदाज़ मेँ रख दी -
जब भी थोडी - सी भी फुर्सत मिलेगी
तब शादी और लडकीयोँ के बारे मेँ भी सोचना जरुर !!
.लडकीयाँ इतनी बुरी नहीँ होतीँ रोहित ! "
राजश्री ने उलाहना देने के लहजे से कहा ..
" मैँ कहाँ बुराई कर रहा हूँ !
अब आप ही इतनी अच्छी मिसाल हो भाभी जी !
तब और क्या कहेँ ! " रोहित ने कहा और फिर जोडते हुए कहा,
" अरे हाँ, शालिनी से मिला था -- एक Air -port पे "
" अच्छा ? शालू को अवोर्ड मिला है इस साल -
- बेहतरीन कार्य कुशलता पर ,
उसके शहर की नगर पालिका की ओर से ! -
- ये वसुधँरा दीदी बतला रहीँ थीँ "-
राजश्री ने बडे गर्व के साथ अपनी चहेती शालिनी का जिक्र करते कहा .
" ओह यस ! शी डीझर्वज़ देट ! " ( oh yes she deserves that )
प्रकाश ने भी हाँ मेँ हाँ मिलाते हुए कहा -
"रात के ११.३० बज रहेँ हैँ ...मैँ चलूँ ? "
रोहित ने आहीस्ता से प्रश्न रखा .
.और रात के गहराते सन्नाटे मेँ, रातरानी की खुश्बु
बाग के भीतर से गेलेरी तक आ पहुँची.
तो तीनोँ उठ खडे हुए.
पति पत्नी मित्र को विदा कर भीतर घर मेँ चले गये
और रोहित अपनी नयी मर्सीडीज़ मेँ अकेला
अपने सूने आशियाने की ओर चल निकला.
१ साल बाद :
वसुँधरा दीदी , प्रकाश और राजश्री और माँ जी से मिलने आयीँ थीँ
और अचानक पूछने लगीँ --
" प्रकाश , वो तुम्हारा दोस्त रोहित किस शहर मेँ रहता है ? "
" क्योँ दीदी ? ऐसे क्यूँ पूछ रही हो ?
वोशीँगटन डी.सी. अमीरीकी राजधानी है ना,
उसी शहर से , "गणमान्य" जो उसकी आइटी कँपनी है
उसका सारा कारोबार देखता है रोहित . " प्रकाश ने बतलाया --
" अच्छा ! तब ये बतला दूँ कि शालिनी अब शिकागो शहर से,
वहीँ तुम्हारे वोशीँगटन डी.सी. रहने चली गयी है ! -
- ये मेरे जेठ जी , बतला रहे थे -- "
दीदी ने नये सामाचार सुनाये
अपनी लाडली ननद शालिनी के बारे
मेँ , तो इसे सुनकर, सभी को आस्चर्य हुआ ..
" अमीराका मेँ लोग ना जाने कितने घर बदलते हैँ " -
- माँ ने कहा, तो सब हँसे क्यूँ कि बात तो सच थी !
फिर बात दिमाग से उतर गयी --
पर एक रात ...
. ठीक मध्य रात्रि को , जब दीदी के बडे जेठ जी का ,
अमेरीका से फोन आया ,
तब प्रकाश और राजश्री की नीँद उड गयी -
- " हेल्लो ! मैँ , झवेर बोल रहा हूँ ..
हाँ हाँ ..अमेरीका से ..
वो तुम्हारा दोस्त रोहित कहाँ है ? "
बडे झल्लाये स्वर मेँ वे पूछ रहे थे
जिसे सुनकर प्रकाश की रही सही तन्द्रा भी गायब हो गयी -
- " भाइस्स्सा ..क्या बात है ?
इतनी रात आप मेरे दोस्त की खबर लेने मुझे फोन कर रहे हो ! "
प्रकाश ने पूछा तो झवर भाई सा'ब ने अब झल्ला कर कहा,
" सुना है रोहित , मेरी बेटी शालिनी से कल शादी कर रहा है ! "
" सच !! हमेँ तो इसके बारे मेँ खबर भी नही .
..ना ही कोयी सँदेशा आया है ना ही बुलावा ! "
प्रकाश ने -- कहा तब भी झवर भाई साहब खीजे हुए थे -
-" शालिनी ने हम से बातचीत करना लगभग छोड दिया है "
..सयानी हो गई है .
.उसकी जो मरजी करे ..
पर शादी कर रही है तो पिता को भी अब , इस वक्त बताया
जब कि मैँ शादी मेँ शामिल भी हो न पाऊँगा -
- हाँ उसकी मम्मी जी को भारत से बुला लिया है -
- मुझे और सुधा को ( नई पत्नि ) और उसके भाई बहनोँ को भी
नहीं बुलाया
और तुम जैसे पुराने और खास दोस्तोँ को भी
कुछ बतलाने की आवश्यकता नहीँ लगी उन दोनोँ को ! "
झवर भाईसाहब ने गुस्से से शिकायत की
तो प्रकाश और राजश्री भी असमँजस मेँ पड गये !
पर लोन्ग डीस्टन्स फोन पे क्या बात करते .
.जैसे तैसे समझा बुझा कर झवर भाई साहब से ,
बात खत्म की -
और सुबह वसुँधरा दीदी से ७ बजे फोन कर के सारा किस्सा बतलाया -
- फिर ९ बजे प्रकाश के माता पिता से ,
डा. प्रियँका दीदी के केन्सास के घर का फोन नँबर लिया गया
तब कहीँ जाकर,
प्रकाश और राजश्री,
शालिनी और रोहित से बात कर पाये !
- शादी की मुबारकबाद दी -
अपनी और परिवार की ओर से
शादी की सफलता की शुभकामनाएँ व बडोँ के आशीर्वाद दिये
तब रोहित ने इतना ही कहा था,
" राजश्री भाभी और तुम, हमारे हित के बारे मेँ कितने सही थे
ये गूढ रहस्य,
आज समझ पाये हैँ हम दोनोँ -
- अचानक ये सब तै हुआ है
बतला नहीँ पाये आप लोगोँ से ! " -
- अब और क्या कहना ?
मियाँ बीवी राजी तो क्या करे समाजी ...
वाली उक्ति ..
.चरितार्थ थी इस मामले मेँ -
- ऐसा सोचकर राजश्री और प्रकाश ने भी अपने दोस्त की खुशी को
सामने रखते हुए और बातो पे ध्यान नहीँ दिया --

क्रमश:

4 comments:

महावीर said...

लावण्या
कुछ दिनों बाद तुम्हारी इस साइट को खोला तो इतना गंभीर और साथ ही सत्य घटनाओं के आधार पर यह उपन्यास(?) पढ़ कर ऐसा लग रहा था कि सब सामने हो रहा हो।
Blog archive पर चेप्टरों को देने के कारण कहानी को क्रमशः पढ़ने में आसानी हो गई थी। आशा है यह उपन्यास के रूप में कागज के पन्नों में सुसज्जित कर एक पुस्तक के रूप में भी पाठकों को मिले, जिस से हर बार कंप्यूटर खोले बिना कहीं भी पार्क में, सोते समय या कहीं भी जब समय मिले तो आनंद उठा सकें।
दूसरे, एक और पोस्ट के लिए बधाई देना चाहूंगा। यूसुफ़ साहब (दिलीप कुमार) के विषय में बहुत ही सुंदर लिखा है। बार बार पढ़ने को जी करता है। उनके विषय में इतना कुछ लिखा है कि इस सामग्री को बटोरने में ना जाने कितना परिश्रम किया होगा! कुछ नायाब तस्वीरें देख कर उनकी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। एक बार फिर बधाई और धन्यवाद!
सस्नेह
महावी

Divine India said...

मैडम,
प्रत्येक चैप्टर अपने आप में उम्दा है सामयिक विषय
पर अच्छी पकड़ बनाकर लिखा भी गया है जो वास्तविकता है आज की…।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय महावीर जी,
सादर नमस्कार !
आपका आना ,
मेरे जाल घर पर और मेरे प्रयासोँ को देखना, फिर उन्हेँ सराहना .
.मैँ कृतार्थ हो गयी कि आपको मेरे प्रयास पसँद आये हैँ --
ये कथा
मेरे,एक मित्र को अर्पित भावाँजलि स्वरुप है -
जो हम से बिछुड जाते हैँ वे हमारी स्मृति
मेँ सदा जीवित रहते हैँ
है ना ?
सादर,स स्नेह,
-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सत्य जीवन मेँ निहित वे तथ्य हैँ जिन्हेँ हम मनुष्य हमेशा दिल से जोडे रखते हैँ ..भावना से हम अनुभव करते हैँ वही शाश्वत है , बाकी सब कुछ नश्वर है चूँकि उसी मेँ ईश्वर का वास है-- है ना दीव्याभ ?
आज , मेरे इस प्रयास से आप ने मेरे मित्र के व्यक्तित्त्व की छवि को निहारा है --
उसकी आत्मा के लिये , दुआ भी कीजियेगा -
स स्नेह आभार !
लावण्या