. उसने ढेरोँ डी.वी.डी.. खरीद कर रख लीं...
वह जिस मानसिक नैराश्य के दौर से जुज़र रहा था उसके अनुरुप फिल्मेँ उसने चुन चुन कर देखना शुरु किया था -
जिन्हेँ देखते वक्त वह रोता नहीँ था बल्कि एकाकार हो जाता था !
आह ! क्या गुरु दुत्त जी थे...कमाल करते थे..
."प्यासा" ..का गाना .
." ये महलोँ ये तख्तोँ ये ताज़ोँ की दुनिया "
हल्के से शुरु होता और अँत होते रोहित भी तैस मेँ आकर गाने लगता,
" जला दो जला दो .इसे फूँक डालो ये दुनिया
..तुम्हारी है, तुम ही सम्हालो ये दुनिया ! "
और ठँडी आह लेते हुए ..थका हारा सोने की कोशिश करता .
.हेल्थ क्लब मेँ भी जाता
..अनमने ढँग से मशीनोँ का इस्तेमाल करता .
.पर , उसका मन था कि किसी भी स्थिती मेँ उसे चैन न लेने देता --
एक दिन उसने प्रकाश को फोन मिलाया -
- पता चला कि भाई, साहब के यहाँ एक और शिशु का आगमन हो चुका है और उसी मेँ दोनोँ व्यस्त रहे !
उसने तै किया कि अबके भारत और बँबई पहुँचते ही वो उनसे मिलने जायेगा
.आखिर हैद्राबाद, बँगलूर, चेन्नई मेँ कई सारे इन्टर्व्यू लेकर
"गणमान्य" के सी. इ ओ. ( CEO ) रोहित ने घर की राह ली --
अपने काम से कुछ मुक्ति मिलते ही वह प्रकाश व राजश्री के नवजात बालक बेटे प्रताप को मिलने आ पहुँचा -
- नन्हे मासूम बच्चे को गोद मेँ लिये रोहित कुछ पल के लिये अपना सारा अवसाद भूल गया -
- उसे पहली बार मुस्कुतराता देखकर प्रकाश को भी राहत हुई -
- उसने पूछ ही लिया, " कैसे हो दोस्त ? ठीक तो हो ना ? "
" हां -- all things considering ..I'm holing up quite well "
तुम लोग सुनाओ क्या हाल हैँ ? परिवार के सारे लोग ..सब ठीक हैँ ना ?"
" हाँ रोहित ..सब मजे मेँ हैँ -- प्रकाशने कहा -
- राजश्री ने अपनी बात जोड़ते हुए कहा,
" शालिनी अपने पापा के बुलाने पर अमरीका गई है -
- तुम्हे मिली क्या वहाँ पे ? "
" अरे भाभी , मुझे कैसे पता कि वो वहाँ है ?
अमरीका क्या एक छोटा सा उपनगर है ? .
..जैसा हम तुम रहते हैँ वैसा ?
जहाँ हर परिवार एक दूसरे के बारे मेँ सब कुछ जानता है ! " -
- "अरे बाबा ! हम तो बम्बैया हैँ ना -- हमेँ अमरीका की धौँस न दीखाओ "-- राजश्री ने झूठमुठ का गुस्सा जतलाया तो तीनोँ हँसने लगे -
- रोहित सोचने लगा, " इनके सँग मैँ कैसे हँस लेता हूँ -
- कितना सहज है ये -
- "फिर कुछ सोचकर उसने कहा, " अच्छा, उसका पता ठिकाना बतला दो -
- अगली बार जाऊँगा तो उसे भी फोन कर लूँगा - ठीक है ना ? क्या कर रही है वो वहाँ ? "
उसने पूछा तो रजश्री ने बतलाया कि शालिनी के
पापा ने शालिनी को वहीँ बुलवा लिया था और अब उसे कालिजसे स्क्लोरशीप भी मिली है और वह पढाई कर रही है --
पापा ने शालिनी को वहीँ बुलवा लिया था और अब उसे कालिजसे स्क्लोरशीप भी मिली है और वह पढाई कर रही है --
" ये तो अच्छी दिशा मिल गई उसके जीवन को " रोहित ने तुरँत कहा और पूछा," उसकी नानी जी व मम्मी जी कहाँ हैँ ? "
"यहीँ हैँ -- " प्रकाश ने कहा ...चलो ..ठीक है "
इतनी बातेँ हुईँ फिर और बातेँ राजनीति, फिल्म से सँबँधित नये किस्से कहानियोँ की बातेँ भी होतीँ रहीँ -
-कई दिन बाद रोहित स्वस्थता महसूस करता
रात को बिस्तर पे लैटते ही सो गया -
- उसे रात स्वप्न आया जिसमेँ उसने बगिया देखी ..फूल पँछी, फव्वारे, वह घूम रहा है ..निश्प्रयोजन ..और सहसा, एक मोटरकार बाग मेँ घूस आयी और बेतहाशा तेज रफ्तार से फूलोँ को उजाडती हुई रोहित को धक्क्का देती हुई , होर्न बजाती हुई निकल गई ...रोहित कोौर कन्डीशन कमरे मेँ भी शीत ज्वर हो आया .वह काँपने लगा -ये क्या था ? उसका जीवन उस गाडी की तरह था क्या? जो फूलोँ को रौँद कर निकल गया ?
-- उसने लँबी साँस ली -- और जब नीँद खुल ही गयी थी तो फिर उठकर अपना लेपटोप ओन करके काम देखने लगा -
- ३ साल बाद :
इस सारे समय मेँ रोहित की कँपनी " गणमान्य" अमरीका की ५०० सबसे तेजीसे प्रगतीशील , कँपनीयोँ मेँ अपना गौरव भरा स्थान बना चुकी थी -
- रोहित आज स्वीट्झरलेन्ड के "डावोस" शहर के प्रतिभा सम्पन्न सभागार मेँ तीसरी पँक्ति मेँ बैठा हुआ है -
- सबसे आगे अमरीका के सुविख्यात अबजपति तकनीकी क्षेत्र के सर्वोच्च अधिपति, आज के सँचार माध्योमोँ के गुरु श्रीमान "बील गेट्स जी " बैठे हुए हैँ ये भी रोहित ने देखा -
- रोहित को "" गणमान्य" " की प्रगति पर सम्मानित किया जा रहा है -
- रोहित फिर भी अलिप्त ,सारा नज़ारा देखता रहा -
उसने सोचा, "काश ! मेरे साथ इस वक्त कोयी अपना होता !
जो मेरी इस प्रगति पर मुझे अपनापन देता -
- तब मेरी खुशी दुगनी न हो जाती ?
परँतु भाग्य मेँ क्या लिखा है ये कौन पहचानता है ?
परँतु भाग्य मेँ क्या लिखा है ये कौन पहचानता है ?
कोइ
नही ! मैँ भी इन्सान हूँ -
- ये उपलब्धि मेरी नहीँ -
- ईश्वर की देन है "
रोहित नास्तिक भी नहीँ था परँतु बहुत ज्यादा कर्मकाँड करने वाला भी नहीँ था -- वह अति आधुनिक सँप्रेष्णा व सँचार , माहिती विनिमय ,
वाणिज्य
युग का एक ,
अन्य उसी के जैसे दीर्घ द्रष्टि वाले व्यापारी कौम के अन्य सफल अधिनायकोँ की तरह , उन्हीँ के जैसा एक प्रणेता था -
- इक्कीसवी शताब्दी रोहित के जैसे सफल व्यापारीयोँ के हस्ताक्षर ग्रहण कर रही थी !
इतिहास के पन्ने नये आध्याय जोडने मेँ लगे थे..
इन महानुभावोँ के नाम की सूची
समय की रेत पर अपने पदचाप छोडने को कटिबध्ध थी
--रोहित ने अपने माता पिता को फोन मिलाया और ये सूचना दी कि उसने अपना मानपत्र ग्रहण किया है -
- अभी अभी ' तो वहाँ से हर्षातिरेक से सने आशीर्वादोँ की झडी लग गयी -
- दो दिन बाद प्रकाश ने भी रोहित को मुबारकबाद देते हुए फोन किया तो रोहित को बहोत खुशी हुई -
- " अरे ऐसे थोडे न चलेगा रोहित जी ! अब तो आप से पार्टी लेकर ही रहेँगे -- कब आ रहे हो घर ? "
राजश्री ने भी बधाई देते हुए कहा तो रोहित ने कहा, " एक बढिया फ्रेन्च पर्फ्यूम लेकर आ रहा हूँ राजश्री भाभी आपके लिये ...दावत के लिये तैयार रहियेगा "
" हाँ आओ तो सही ..यहाँ सारे मित्र तुम्हारा बेसब्री से इँतज़ार कर रहे हैँ " इतना कहकर -- फोन रखा गया -
- रोहित ने अपना वादा निभाया -
- बँबई आते ही फाइव स्टार ताज महाल होटल के बडे होल मेँ पार्टी का आयोजन किया गया -
- बहुत सारी डीशीस , सँगीत का प्रबँध भी किया गया था -
- सभीने रोहित को गले मिलकर या पीठ थपथपाकर
..या उपहार, पुष्प गुच्छ देकर अपनी अपनी रीत से बधाई दी थी -
- उस शाम को रोहित कभी नहीँ भूलेगा -
- इतने अच्छे दोस्त...!!
इतना प्रेम मिला था उसे -
- कितने सारे लोग आये थे रोहित से मिलने -
- परँतु, रोहित फिर भी अकेला ही था ! ..
.दो दिनोँ के बाद प्रकाश के घर उसे रात्रि भोज के लिये आमँत्रित किया गया तो वह काम था फिर भी छोड कर निकल पडा -
- वहाँ जाते ही उसने देखा तो शालिनी भी मौजूद थी !
"अरे ! कैसी हो ? कब आयीँ अमरीका से ? " -
- " आई तो थी महीना भर पहले से
..पर मम्मी जी को साउथ इन्डीया घूमाने ले गई थी " शालिनी ने जवाब दिया , तो रोहित ने उसे देखा कि अब वह पहले से ज्यादा सलीका सीख गई थी. उसका सौँदर्य गँभीर किस्म का था.
ऐसा नहीँ जो शोख रँग सा चटखता हो !
वह था, किसी बाग के कोने मेँ फूली मधुमालती जैसी - शाँत सौम्य !"
"और इस सण्डे को ( British Air ways ) " ब्रिटीश एअर" से जा रही हूँ "-
- उसने मँद मुस्कान के साथ जोडते हुए बतलाया -
- " अच्छा ! पसँद आ रहा है वहाँ का जीवन तुम्हेँ ? "
रोहित ने पूछा तो शालिनी ने कहा,
" जीवन मेँ जो भी आता है उसे स्वीकार करना जानती हूँ -
- पीछे मुडकर अफसोस करने से कुछ हासिल नहीँ होता ! "
उसने कहा तो रोहित को लगा
मानों वो उसी को ये बात जतलाने की कोशिश कर रही थी -
- " क्या किया इतने वर्ष वहाँ ?
कुछ घूमना भी हुआ या बस पढाई ही चलती रही ? "
उसने बडप्पन जतलाते हुए पूछा
तो राजश्री ने तपाक से कहा,
" अरे ये शालू बडी ही साहसी है !
युरोप के ५ शहर Bag -Pack लेकर अकेली घूम आयी थी पिछले साल ! "
उसने कहा जिसे सुनकर रोहित को ताज्जुब हुआ और हर्ष भी ! "
" i like Independant minded people " उसने कहा...
घर जाते वक्त रोहित के तेज दीमाग मेँ एक जबर्दस्त आइडीया आया -
- और वह ठठाकर हँस पडा -
- बडे दिनोँ के बाद, आज फिर रोहित मेँ एक नई आशा का सँचार हुआ था -- उसका स्वभाव था जो उसे नये , अपरिचित रास्तोँ पर चलने के लिये बाध्य किये रहता था -
- ये उसी तरह का बिलकुल तरोताज़ा विचार था -
- हाँ! वह ऐसा ही करेगा उसने तै किया और उसी की प्लानिँग मेँ कम्प्यूटर खोलकर अपनी खुद की यात्रा के बारे मेँ इँतजाम करने लगा -- उसने दूसरे दिन सुबह शालिनी, प्रकाश राजश्री और बेला को चाइनीज़ खाने पर बुला लिया और बातोँ ही बातोँ मेँ कहा, " शालिनी हम सभी तुम्हेँ छोडने हवाई अड्डे चलेँगेँ " " क्यूँ ? ऐसी क्या जरुरत है ? "
शालिनी ने कहा तो रोहित ने कहा,
" राजश्री की बिटिया पँखुरी को प्लेन कैसे " Landing aur Take off " करते हैँ वो बतलायेँगे -
-बडा मज़ा आयेगा उसे -- क्यो चलोगे ना सब ?"
रोहित ने पूछा तो सभी ने उत्साह से हामी भरी -
- अब, तै रहा और निर्धारीत रात्रि को शालिनी को प्लेन मेँ बिठाकर रोहित ने खुद भी ,
उसी समय, " Air -France " - " एयर फ्रान्स " के विमान से , प्रस्थान किया -
- पर ये बात और किसी को पता भी नहीँ थी -
FRANCE : फ्रान्स
- ड गोल हवाई अड्डे पहुँचते ही रोहित एक खास यात्रा खँड की ओर बढता गया -- वहाँ कोँकोर्ड विमान खडा था -
- जो सबसे तेज , अबतक निर्माण किया गया विमान था -
- कोन्कोर्ड विमान जिस समय उडान की शुरुआत करता तब अगर ५ बजे का समय होता तब युरोप से अमरीका पहुँचते , पृथ्वी इतना घूम गई होती अपनी धुरी पर कि, आगँतुक यात्री, ५ बजे , उसी दिवस के समय से -- चँद मिनटोँ पहले भौगोलिक ,भूखँड पर उतर रहा होता -- उनका ये लोगो था,
" We reach our destination before your departure Time " !!
&
ये रोहित का एक आयोजन था -
स्वप्न देखना नहीँ उन्हेँ जीना भी रोहित को आता था -
- अपने जीवन की ऐसी अभूतपूर्व, अनोखी , रोमाँचक यात्रा करके रोहित अमरीकन राजधानी वोशीटँगटन डी..सी पहुँच गया -
और हँसी छिपाते हुए, ब्रिटीश ऐर " के यात्रियोँ के आगमन के द्वार पर खडा हो गया -
और हँसी छिपाते हुए, ब्रिटीश ऐर " के यात्रियोँ के आगमन के द्वार पर खडा हो गया -
- कुछ यात्री निकल कर आगे बढते गये तब शालिनी, थकी सी , परँतु अपना बेग उठाये आती दीखलायी दी तो रोहित ने आवाज़ लगायी,
" हेल्लो शालिनी ! " --
हैरान शालिनी रोहित को देखती रही उसे लगा मानो उसके पैरोँ तले से ज़मीँ हट गयी थी -
- विस्फरीत नेत्रोँ से उसने रोहित को हँसते हुए ,
सामने आते देखा तो, इतना ही पूछ पायी,
"अरे ! तुम यहाँ कैसे ? तुम तो भारत मेँ थे ! "
" जादू है ये जादू
--राज़ की बात है -
- हम कैसे बतायेँ !!" -
- रोहित अब खुलके हँस रहा था -
- उसे शालिनी का चेहरा देखकर इतनी हँसी आयी कि वो
अपनी हँसी को रोक न पाया !
अपनी हँसी को रोक न पाया !
तो ऐसी ख्वाबोखयालात के परे की ये कहानी है शालिनी और रोहित की -- अगला हिस्सा , जल्दी ही ..
2 comments:
बहुत अच्छी लग रही है यह कहानी बिल्कुल सत्य…
चरित्र को बहुत सुंदर ढंग से व्यापक आधार दे पेश किया है… अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी।
दीव्याभ,
शुक्रिया !
स स्नेह,
-लावण्या
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