हसीं ख्वाबोँ मेँ लिपटी तारोँ की बारात,
वह झीनी सी बारिश,हल्का सा धुँधलका
वाह वाह ! सुभान अल्ल्लाह ...क्या बात है ! आज़ तो आप के भीतर मियाँ गालिब की रुह दाखिल हुई हो ऐसा लग रहा है"
...शालू ने मुस्कुराते हुए कहा ..पर उसका सलोना चेहरा खिल उठा था .रोहित रास्ते को देखता रहा और कनखियोँ से शालू को भी देखे जा रहा था. जो मँद मंद मुस्कुराती बडी भली लग रही थी. अचानक शालू सँज़ीदा हो गई बोली,
"R " ..( जब भी वे अकेले होते वह उसे सिर्फ यही कहती थी ) "
" प्रि - दीदी ( डो.प्रियँका मेहता ) का फोन आया था - बुला रहीं हैँ हमेँ ! कहतीँ थीँ देर ना करो ! बताओ कब चलेँ ? "
चलेंगे...चलेँगे ...आहिस्ता से अब रोहित की आवाज़ आयी ...बहोत सा काम बाकी है शालू ..." ' ओके ओके ..तुम बात कर लेना नही तो दीदी मुझ पे गुस्सा होगीँ . ठीक है ना ? " और उसने रोहित का हाथ अपने हाथोँ मेँ लेते हुए सहलाया ......
.अब रात के सन्नाटे मेँ उन दोनोँ की चुप्पी गाडी की तेज रफ्तार के साथ साथ गहरी होती चली गयी. घर आया तो नीचे गराज मेँ रोहित ने कार को पार्क कियातब तक शालू उनके अपार्टमेन्ट का दरवाज़ा खोलकर दाखिल हो चुकी थी. रात मेँ थके हुए लौटे थे दोनोँ तो झट रात के खुले, आरामदेह कपडे पहनकर सोने चले गये पर उस रात ..रोहित को देर तक नीन्द न आई ...
वह कभी खिडके पे झूलते पर्दोँ के पार गहराये बादलोँ को देखता तो कभी शालू को जो थककर सो रही थी. वह उठा और खिडकी के सामने खडा हो गया -- याद आया उसे जब उसने पहली बार शालू को देखा था जैसे वह कल की सी बात थी. कालिज से एक शाम वह अपने दोस्त प्रकाश के घर चला गया था. प्रकाश और वह, बचपन के सहपाठी थे. पर प्रकाश की शादी हो गई थी. राजश्री से ! उन्हेँ एक नन्ही सी प्यारी गुडीया सी बच्ची भी हो गई थी औरउनसे मिलने शाम को टहलता हुआ पहुँच जाता था. आज शाम जब रोहित उनके घर पहुँचा तो बहाँ प्रकाश की माँ बाहर झूले पर अपनी बेटी के साथ दीखलाई दीँ. रोहितने नमस्ते किया दीदी वसुँधरा से भी बातचीत होने लगी तब दीदी ने ही कहा, " अरे रोहित, तुम्हारा दोस्त मेरे ससुराल गया है ." और आप यहाँ बैठी हैँ ''रोहित ने हँसते हुए कहा..." अभी आई ना बाज़ार ले गई थी माँ को ..अब चलते हैँ चलोगे मेरे साथ ? उन्होँने उठते हुए माँ से कहा, " चलूँ माँ ? कल आऊँगी फिर " और रोहित प्रकाश की दीदी के साथ उनके ससुराल की ओर चल पडा - वहाँ प्रकाश उसे मिलने आया देखकर बडा खुश हुआ ! दोनोँ दोस्त, हँसीमज़ाक मेँ डूब गये. तभी एक १९ या २० वर्षीय लडकी शर्माती हुई कमरे मेँ दाखिल हुई. तो प्रकाश की पत्नी राजश्री ने तपाक्` से उन दोनोँ का परिचय करवा डाला, " रोहित मिलो ये है शालिनी ! शालिनी मीट रोहित दवे ! "
" हेल्लो " एक मीठे स्वर को रोहित ने सुना तो उसे भी सलीका याद आया --"हेल्लो हेल्लो " उसने भी कहा पर आगे कुछ सूझा नहीँ कि और क्या कहे ? पर उसने देखा था एक सलोने चहेरे को जो उसे ध्यान से देख रहा था बडी बडी सँवेदनाशील आँखोँ नेँ एक सँज़ीदगी थी -- और एक चौकन्ने होने का स्वभाव भी बना हुआ था -आम लडकियोँ की तरह शालिनी अपनी युवावस्था मेँ भी कुछ कुछ गँभीर थी. हाँ जब भी वह अनायास मुस्कुराती तब मानोँ उसका पूरा चेहरा खिल उठता था!
बिना चाहे भी अपनी आदतानुसार इतना सब कुछ रोहित ने देख लिया था -दूसरे क्षण उसने अपना ध्यान हटा लिया था - सही है कि वह आजकल लडकियाँ देख रहा था -- उसने तकरीबन्` २० २५ लडकिय़ोँ से बातचीत की थी -- अपनी शादी के सिलसिले मेँ -- वह जाता नाश्ते पर तो कभी खाने का निमँत्रण मिलता -- बातेँ होतीँ - किसी लडकी के रँगरुप उसे जचते , किसी के घरवालोँ से मिलकर खुशी होती तो किसी की प्रतिभा से वह प्रभावित होता -- परँतु आजतक ऐसी लडकी उसे नहीँ दिखी थी जो उसे पहली नज़रोँ मेँ भा जाये ! शायद शालिनी से वह कुछ हदतक प्रभावित ज़रुर हुआ था परँतु दूसरे ही पल उसने सोचा, " अरे यार ! ये तो मुझसे उम्र मे बहुत छोटी लगती है ! " और फिर वह पूरा समय प्रकाश और नन्ही पँखुरी से खेलता रहा --
आगे पढियेगा अगली पोस्ट मेँ : ~~~
2 comments:
जिंदगी में रूमानियत बिखर रही हैं ख्वाबों की.. यादों की.. प्यारे एह्सास.. कोमल यादें.. अभी ध्ड़्कन भी मद्धम है...
too soft n beautiful Mam..
Regards
Manya
वेहतरीन यादों का संयोजन…भावना के सजीले संवरे लय को अभिव्यकत करती हुई…
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