Monday, June 18, 2007

...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर ~ ३



"याद है ..एक बार बँगाल गया था तब सध्य स्नाता सुँदरी को घाट पर देखा था मानोँ कवि रवीँद्र की कविता मूर्त हो उठी हो. समीप के मँदिर मेँ जा कर दीप जलाती उस कन्या का स्वरुप आजतक मेरे मन मेँ अकँपित लौ की तरह विराजमान है !" उसने प्रकाश से कहा था तो दोनोँ हँस पडे थे. अब
राजश्री भी आ गई थी और बातेँ सुन रही थी -उसी ने कहा था, वो बोली, " सुनो ...मेरी मरज़ी है कि तुम शालिनी और हम इस इतवार को उस नये रीवोल्वीँगरेस्तराँ मेँ लँच लेने जायेँ कैसा है आइडीया मेरा ? "
" अरे मियाँ बीबी मेँ हमेँ हड्डी नहीँ बनना भाभी " रोहित ने कहा तो राजश्री और भी ज्यादा ज़िद्द करने लगी थी . इस तरह दूसरी बार शालिनी से मुलाकात उसी घूमते रेस्तराँ मेँ हुई थी. खाना लज़ीज़ था और खाने के बाद शालिनी ने कहा था कि उसे अपनी मम्मी से मिलने , नानी जी के यहाँ जाना है तो रोहित ही उसे वहाँ तक पहुँचा आया था और दोनोँ से शिष्टाचार वश मिला भी पर चाय या कोफी के लिये मना करते हुए जल्द ही निकल कर अपने घर जाने को निकल पडा था --
. राजश्री ने बहुत बार पूछा पर उसका यही कहना था, "वो मुझसे १२ साल छोटी है ! " जिसे सुनकर राजश्री ने कहा, " जब उसे ऐतराज़ नहीँ तब तुम्हेँ क्यूँ इतनी छोटी लग रही है हुम्म रोहित ! " रोहित ने बात को टाल कर फिर आगे बढने न दी और वह उसके बाद भी कई लडकियाँ देखता रहा था और आखिर डाक्टर माता पिता की इकलौती सँतान रीना से उसने शादी कर ली थी. सोचा था, पढे लिखे परिवार से है तो उसके साथ अच्छी निभ जायेगी. पर शुरु से ही रीना का अपने माइके ही सुबह से चले जाना, बात बात पर रोहित के परिवार के छोटे फ्लेट के बारे मेँ मुँह फूलाना और माँग करना कि "जब अपना अलग और बडा फ्लेट खरीदोगे तभी वहाँ आऊँगी " ये सब रोहित को सहमा गया था. भविष्य मेँ और भी माँगेँ बढेँगीँ वो ये जान गया था.

शादी के आगामी ३ वर्ष रोहित की ज़िँदगी के सबसे दुख्दायी, मस्तिष्क को जकडकर,त्रस्त करनेवाले, सबसे ज्यादा परेशानी वाले साबित हुए ! रीना और रोहित के बीच हर छोटी बात के लिये झगडा होना आम बात होने लगी थी.अगर वह किसी दोस्त को खाने पे न्योता देता तो वह माइके चली जाती या बहाना करती कि सर दर्द है - अपने नये फ्लेट के कमरे मेँ चली .जाती
..... रोहित को मेहमान के साथ बाहर खाना पडता. उसके मता पिता से वह झूठ बोलता कि " खाना खा लिया " जबकि कई दिन उसे भूखे पेट सोने की नौबत आई थी और दूसरे दिन फिर सुबह काम के लिये भागना और रीना का मैके चले जाना ! हद्द हो गई ! पर रोहित करता भी तो क्या ? सोचता, " क्या शादी के बाद सब की ऐसी हालत होती है " पर जवाब उसे पता था -
"नहीँ प्रकाश और राजश्री को ही देख लो ! "
कैसे दोनोँ एकदूसरे का खयाल रखते हैँ -- हाँ उनका प्रेम विवाह हुआ था और उन्होँने परिवार वालोँ को कई साल समझाते हुए बिताये थे पर क्या उसकी तरह लडकी देखभाल कर, घर परिवार की टोह लेने के बाद शादीयाँ होतीँ हैँ वे भी तो सुखी होते हैँ ! शायद कसूर उसके भाग्य का था. पर अब वह जैसे तैसे निभाने की कोशिश किये जा रहा था ...

तेरा देर से आना, आकर मुझे रुलाना,
वादे कसमेँ तोडने का लम्बा सिलसिला,
और मुकर जाना बात बात पे वो रोना,
क्यों करतीँ थीँ झूठे बहाने, ऐसे हरदम ?...
..मरता क्या न करता !! कौन मानेगा उसकी बात अगर वह कह भी दे कि उपर से सँभ्राँत कुलीन दीखनेवाली यही रीना कुपित होकर कैसी तीखी भाषा मेँ उसे अपमानित करते बिलकुल हिचकती न थी ! और उसके परिवार के प्रति मोह इतना कि भागी चली जाती थी हर सुबह. शाम लौटती तो उसकी मम्मी जी रसोइया और २ आयाओँ को भी साथ भेज देतीँ -- बेबी को खाना खिला देना और बाई , रसोई का सारा काम निपटाके ही घर वापुस आना समझीँ ? " उनकी हिदायत होती और तीन नौकर २ सेठ और सिठानी !! माने रीना और रोहित की सेवा करते. बिस्तर लगता और ऐरकन्डीशन की तेज़ ठँडी हवा कमरे को और भी ठँडा बना कर रख देती -- और रोहित परेशान अगले दिन काम के बारे मेँ सोचता हुआ सो जाता .सुबह वो तैयार होकर कालबा देवी तक जाता और रीना उसीके साथ अपनी मम्मी जी के यहाँ चली जाती ! खैर ! उसका कारोबार बढने लगा तो उसे अमरीका के दैरे भी जल्दी लगने लगे जिससे रीना को चिढ हो आई थी -- वह हमेशा कहती, " क्या रखा है वहाँ ? क्यूँ भागे जाते हो ? " वो कहता, " तुम्हारा वीज़ा आये तो तुम भी चलना मेरे साथ ! " तो वह तुनककर कहती, " जाये मेरी जूती ! हमेँ वहाँ नौकरानी बनाने ले जाओगे ? हमेँ नहीँ आना ...! वहाँ ..तो बहुत काम करना पडता है मालूम है ... मेरी कई सहेलियाँ ऐसी गल्तियाँ करके अब पछता रहीँ हैँ ! " "अरे वहाँ भी काम करनेवाले मिल जाते हैँ -- " वो धीरे से कहता तो वो मुँह फूला के कमरे से मँथर गति से ऐसे निकल जाती मानोँ सुना अनसुना कर रही हो ! एक बार वो नई फीयाट लेके मैके चली गई -- वो घर आया तो ड्राइवर को भेजा कि मेमसाहिबा से जाकर गाडी ले आओ और रर्जिस्ट्रेशन करवा लाओ " द्राइवर खाली हाथ , भीगी बिल्ली बना लौट आया -- पूछा तो बोला, " मालकिन ने साफ मना किया है कहे रहीँ कि गाडी उनकी है " ...उसने गर्दन झुकाके नज़रेँ नीची कर लीँ -- अब रोहित झल्ल्ला उठा, " हाँ उन्हीँ की है पर रजिस्ट्रेशन तो करवाना जरुरी है ! " रोहित की खीज, मायूसी मेँ बदली तो उसने फोन मिलाया और रीना को समझा बुझा कर काम करवाया -- गाडी तो आ गयी पर दूसरे दिन शाम को जब रोहित घर लौटा तो कीचन मेँ जाते उसकी आँखेँ आस्चर्य से खुली की खुली रह गईँ ! देखता क्या है कि समाचार पत्र खुला हुआ था पूरे फर्श पर और उस पर सारी दालेँ, चावल, आटा, हल्दी, मिरची , धनिया सब उलट दिया गया था !! अजीब तस्वीर बन गई थी -- सारे मिश्रण से ! ये किसने नुकसान किया ? उसकी कल्पना के बाहर की द्रश्यावली देखकर रोहित का चेहरा फक्क पड गया था -- रुँआसा हो गया था वह! उसने सोचा ...उसका मन फिर भी प्रश्न किये जा रहा था -- पर वहाँ तो आज कोयी नहीँ था उसे जवाब देने के लिये -- कहाँ होगी रीना ? उसने सोचा और फोन घुमा दिया उसकी ससुराल, " हेल्लो, नमेस्ते पापा जी -- जी हाँ रीना है ? दीजियेगा उसे फोन -- आभार - थैन्क्स ! " रीना आयी तो उससे रहा नही गया, पूछा, " हमारे फ्लेट के कीचन मेँ ये किसने बिखराया है सब ? " " मैँने ! " उसने शाँति से कहा " तो उसका पारा भी सातवेँ आसमान पर चढ गया ; " ये क्या बचकानी हरकेतेँ करती हो ! यही सीखा है ? " अब रीना भी चीखती हुई बोली, " वो सरा सामान मेरा था -- मेरे मम्मी पापा ने दिया था -- जैसे तुम्हारी कार है वैसे वो मेरा सामान था - इस्लिये कूडा कर के फेँक दिया " -- रोहित ने फोन पटक दिया और अपना माथा पकड कर पहली बार उसे भीतर तक गुस्सा आ गया -- और दूसरे दिन बिना बतलाये अमेरीका की फ्लाइट लेकर भारत से, रीना से, अपने परिवार से, सभी से , वह ह्ज़ारोँ मील दूर चला गया था - - आगे पढियेगा :

4 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा पढ़कर-आगे इन्तजार है.

Divine India said...

पुरी तरह भावनाओं का संमिश्रण्…
इंतजार रहेगा…।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई,
चलिये, आप ने मेरे प्रयास को पढ तो लिया !
टिप्पणी के लिये आभार व स्नेह,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दीव्याभ,
आ ने भी इसे पढा और सराहा -
धन्यवद !
स्नेह,
- लावण्या