उस रात रोहित को काम करते करते समय किस तेज़ी से गुज़रा उसका एहसास ही नहीँ रहा ----
जब आँख उठाई फाइल की चौकोर सीमासे तो हाथ की कलाई भी सुन्न पड गई थी उसे जैसे तैसे सहलाते हुए अपनी नई चमचमाती पाटेक फीलिप घडी के नक्शेदार मूँगेसे बने गोलार्ध को देखा तो हीरे से बनी बडी सूँइ अब ९ पर थी. आह ! आज भी शालू नाराज़ होगी. वह हठात्` सोचने लगा ..
जब आँख उठाई फाइल की चौकोर सीमासे तो हाथ की कलाई भी सुन्न पड गई थी उसे जैसे तैसे सहलाते हुए अपनी नई चमचमाती पाटेक फीलिप घडी के नक्शेदार मूँगेसे बने गोलार्ध को देखा तो हीरे से बनी बडी सूँइ अब ९ पर थी. आह ! आज भी शालू नाराज़ होगी. वह हठात्` सोचने लगा ..
शालू और अपने बारे मेँ .... शालू रास्ता देख रही होगी !
..और रोहित हडबडाकर उठ बैठा..
उसका अपना व्यवसाय था. तकनीकि क्षेत्र में, उसकी कँपनी का नाम अब प्रतिष्ठितहो चुका था. पर कितनी कडी मेहनत की थी उसने ..
पहले अमरीका आया.....यु, एस. सी से तकनीकि डिग्री हासिल की और उस के काम शुरु करते ही मानोँ इन्टर्नेट की दुनिया मेँ एक विस्फ़ोट आया और तेज़ रफ्तार से रोकेट अँतरिक्श मेँ उडे ऐसी प्रगति आई थी जो उसे एक आम तकनीकि विशेषज्ञ से सफल व्यापारी बनाती गई.
उसने जल्दी भाँप लिया था कि अमरीका मेँ कई सारे, उसी के जैसे लोगोँ की आवश्यकता बढेगी और वह बँबई जाने के साथ साथ हैद्राबाद और बँगलूर की हवाई टीकट लेकर सीधा भारत पहुँचा था -
सबसे पहले १० प्रतिभावान छात्रोँ का इन्टर्व्यु लिया था उसने !
उसका अपना व्यवसाय था. तकनीकि क्षेत्र में, उसकी कँपनी का नाम अब प्रतिष्ठितहो चुका था. पर कितनी कडी मेहनत की थी उसने ..
पहले अमरीका आया.....यु, एस. सी से तकनीकि डिग्री हासिल की और उस के काम शुरु करते ही मानोँ इन्टर्नेट की दुनिया मेँ एक विस्फ़ोट आया और तेज़ रफ्तार से रोकेट अँतरिक्श मेँ उडे ऐसी प्रगति आई थी जो उसे एक आम तकनीकि विशेषज्ञ से सफल व्यापारी बनाती गई.
उसने जल्दी भाँप लिया था कि अमरीका मेँ कई सारे, उसी के जैसे लोगोँ की आवश्यकता बढेगी और वह बँबई जाने के साथ साथ हैद्राबाद और बँगलूर की हवाई टीकट लेकर सीधा भारत पहुँचा था -
सबसे पहले १० प्रतिभावान छात्रोँ का इन्टर्व्यु लिया था उसने !
-- किसी को कैण्टीन मेँ ही मिला था रोहित तो किसी को कोफी हाउस मेँ !
तै किया था उन की माँगोँ को, अपना कोन्ट्रेक उसने हवाई जहाज यात्रा के दौरान, अपने ही पीसी पर बहुत सोचने के बाद तैयार किया था -
कुछ शर्तेँ भी रहीँ थीँ अपनी - कि ये लोग कम्स्कम २ साल उसके लिये काम करने पर अनुबँधित होँगेँ और करार पर हस्ताक्षर करेँगे - और उसकी कँपनी "गणमान्य" - अपने तहत्` काम करने वाले को अमरीका की किसी भी कँपनी मेँ काम करने के लिये भेज सकेगी -- एक तरह का यह " व्यक्ति व्यापार " था - उसे मन ही मन ये भी विचार आया था कि "क्या मैँ यह ठीक कर रहा हूँ ? " -
तै किया था उन की माँगोँ को, अपना कोन्ट्रेक उसने हवाई जहाज यात्रा के दौरान, अपने ही पीसी पर बहुत सोचने के बाद तैयार किया था -
कुछ शर्तेँ भी रहीँ थीँ अपनी - कि ये लोग कम्स्कम २ साल उसके लिये काम करने पर अनुबँधित होँगेँ और करार पर हस्ताक्षर करेँगे - और उसकी कँपनी "गणमान्य" - अपने तहत्` काम करने वाले को अमरीका की किसी भी कँपनी मेँ काम करने के लिये भेज सकेगी -- एक तरह का यह " व्यक्ति व्यापार " था - उसे मन ही मन ये भी विचार आया था कि "क्या मैँ यह ठीक कर रहा हूँ ? " -
- फिर उसके रेशनल दीमाग ने कहा था, " अगर ये तुम नहीँ करोगे रोहित तो कोई और करेगा ! " --
इसके बाद अपने वकील से पूछकर रोहित ने भारत से काम पर अनुबँधित कर्मचारीयोँ के अमरीकन वीज़ा के बारे मेँ उसके इन्तजामात तैयार किये थे . मामला एक के बाद एक बातोँ से गुजर कर अपने आप ठीक से बैठ रहा था
इससे पहले ऐसा हुआ नहीँ था .....
आज अमेरीका और पश्चिम के मुल्कोँ को भारत के तकनीकि विशेषज्ञ वहाँ पहुँचेँ उसकी सख्त्` जरुरत थी और उनके बीच की जोडनेवाली कडी रोहित की कँपनी थी !
आज अमेरीका और पश्चिम के मुल्कोँ को भारत के तकनीकि विशेषज्ञ वहाँ पहुँचेँ उसकी सख्त्` जरुरत थी और उनके बीच की जोडनेवाली कडी रोहित की कँपनी थी !
उसने आलससे अपने केशोँ मेँ हाथ फेरा ...और याद आई उसे शालिनी की ...कितनी शालीन थी शालू ! उसने भी अमरीका आकार पर्यावरण विषय लेकर उसी क्षेत्रमेँ काम किया था और उसके शहर मेँ पर्यावरण को दूषित होने से बचाने वाले व्यक्तियोँ मेँ शालू के प्रयोगोँ की, नवीन उपायोँ की, सराहना ही नहीँ की गई थी उसे सम्मान देकर नवाज़ा भी गया था ...
और उस शाम जब शालू सुफेद लिबास मेँ सज कर सभारँभ मेँ स्टेज पर अपना पारितोषक ले रही थी तब रोहित को कई दिनोँ के बाद अपने दिल से उठी शायरी पर सुखद आस्चर्य हुआ था .
और उस शाम जब शालू सुफेद लिबास मेँ सज कर सभारँभ मेँ स्टेज पर अपना पारितोषक ले रही थी तब रोहित को कई दिनोँ के बाद अपने दिल से उठी शायरी पर सुखद आस्चर्य हुआ था .
.ओहो ..तो अब तक शायराना अँदाज़ बाकी बचा है जहन मेँ !
ये व्यापार , तकनीकि दौड मेँ, भागते भागते, शुष्क नहीँ हुआ मैँ !
वह सोचता रहा ...
और गाडी मेँ , जब वे दोनोँ घर लौट रहे थे तब तक उसने , अपने शेर को कई दफे गुनगुना भी लिया था ..
शालू के साडी को सहेज कर बैठते ही उसने कहा था,
" बधाई हो मेम सा'ब ! आपको ये ऐवोर्ड मिला हमेँ बडी खुशी हुई ! "
--" अरे, थेन्क्यू थेन्क्यू जनाब ! "
शालू ने हँसते हुए कहा ..और शीशे पर एक उँगली से ठँड मेँ शीशे पर छाये धुँध पर " रोहित आइ लव यु " लिख दिया था ..
.तो रोहित ने अपनी रौबदार आवाज़ को थोडा नीचे कर के आखिरकार सुना ही दिया शालू को अपना नया शेर ,
" सुनिये, शालू जी, आपकी खिदमत मेँ अर्ज़ किया है ,
" रुई के नर्म फाहोँ जैसे मेरे अह्सास, और तुम, मिट्टी के इत्र की शीशी,
सिमटी है खुश्बु सारे कायनात की बिखरती जा रही खयालातोँ मेँ मेरे ! "
( आगे की कहानी का इँतज़ार करियेगा ...)
वह सोचता रहा ...
और गाडी मेँ , जब वे दोनोँ घर लौट रहे थे तब तक उसने , अपने शेर को कई दफे गुनगुना भी लिया था ..
शालू के साडी को सहेज कर बैठते ही उसने कहा था,
" बधाई हो मेम सा'ब ! आपको ये ऐवोर्ड मिला हमेँ बडी खुशी हुई ! "
--" अरे, थेन्क्यू थेन्क्यू जनाब ! "
शालू ने हँसते हुए कहा ..और शीशे पर एक उँगली से ठँड मेँ शीशे पर छाये धुँध पर " रोहित आइ लव यु " लिख दिया था ..
.तो रोहित ने अपनी रौबदार आवाज़ को थोडा नीचे कर के आखिरकार सुना ही दिया शालू को अपना नया शेर ,
" सुनिये, शालू जी, आपकी खिदमत मेँ अर्ज़ किया है ,
" रुई के नर्म फाहोँ जैसे मेरे अह्सास, और तुम, मिट्टी के इत्र की शीशी,
सिमटी है खुश्बु सारे कायनात की बिखरती जा रही खयालातोँ मेँ मेरे ! "
( आगे की कहानी का इँतज़ार करियेगा ...)
4 comments:
बेहद खूबसूरत..सौम्य.. शुरूआत है...शुरूआत तो यादों में हैं.. ख्वाब तो होंगे ही..
सादर
मान्या
Hello Madam,
सुंदर तरीके से अगर किसी भी काव्य का गठन किया जाए तो वह ऐसा ही दिखेगा…
बहुत अच्छा लगा मैम…
अपने ब्लाग पर प्रतीक्षा है आपकी…।
मैं सोचता हूँ की जबतक आप नहीं देखती है तबतक कुछ अधूरा रहता है…बैसे भी अभी बहुत व्यस्तता चल रही है और आपसे ज्याद इस क्षेत्र को कौन समझ सकता है…
बस आपका आशीर्वाद रहे…!!
प्रिय मन्या,
आपको पसँद आ रही है ये कथा पढकर खुशी हुई -- आगे भी देखियेगा -
स स्नेह
लावण्या
दीव्याभ ,
अवश्य आऊँगी आपका लिखा भी बहुत पसँद करती हूँ --
जब भी समय मिलता है, काम इतने सारे होते हैँ और
सब कुछ जल्दी जल्दी करना होता है -- thanx for stopping By -- keep reading , hope you will like this effort -
स स्नेह
लावण्या
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