Monday, June 11, 2007

दिलीप कुमार सा'ब की कहानी, उन्हीँ की ज़ुबानी:

दादा साहब फालके पुर्स्कार लेते वक्त बीना राय ( ताज़ महल फिल्म की नायिका )
 और पत्नी सायरा जी के साथ दिलीप कुमार साहब

एक बार किसीने पूछा कि, " कल ही तो किसीने यह बात मुझे आपके सामने कही थी !" उन्होँने फौरन उत्तर दिया, " मैँ तो इस तरह की हर बात एक कानसे सुनकर , दूसरे कान से निकाल देता हूँ !"
इँडस्ट्री की बेकार बातोँ से दामन बचाकर किस तरह निकला जाता है, यह हमने उन्हीँसे सीखा है। 
मैँ अक्सर कहता था कि  " मुझे ऐसा लगता है कि मैँ, इस काम के लिये मौज़ू नहीँ हूँ ! " 
तब उन्होँने बडा अच्छा कहा था कि, " हमेँ इस प्रोफेशन मेँ पढे लिखे नौजवानोँ की बडी सख्त ज़रुरत है। 
मैँ तुम्हारी अदाकारी के बारे मेँ तो ज्यादा नहीँ बोल सकता, पर तुम्हारा अहसास, Your acting has not been corrupted by other factors of Life ! तुम्हारा अहसास,जब इतना lucid है तब तुम अपने अहसासोँ को भी articulate कर पाओगे। तुम देख लेना -- तुम देख लेना ! "
वे पूछते, " तुम्हेँ क्या पसँद नहीँ ? " मैँ कहता, " Enviornment ! "
वे कहते, "कैसे ? " मैँ जवाब देता, " डाइरेक्टर शूटीँग के दौरान रेस की किताब देखते रहते हैँ काम या काम की बातेँ करके, काम को खत्म करने की नहीँ सोचते ! " मैँ पूछता, " ये सारी चीज़ोँ को अलग कैसे करेँ ?" एक ओर लाइटवाला शोर मचाता है -- तो दूसरी ओर कोई ज़ोर ज़ोर से हँसता है ! आप तो कागज़ कलम की दुनिया मेँ जाकर दुनिया भर को भुला बैठते हैँ हम क्या करेँ ? " इस बात पर वे जोरसे खिलखिलाकर हँस कर कहते 
" ये तो साधना की बात है ~ "
जब बोम्बे टोकीज़ छोडकर हम लोग अलग अलग जगह काम करने लगे , तब हमारी मुलाकातोँ का फासला बढने लगा लेकिन जब हम मिलते थे, बातेँ फिर वहीँ से शुरु होतीँ थीँ , जहाँ हमने छोडीँ थीँ ! इसीलिये मैँने शुरु मेँ यह शेर कहा है कि "पुराना दोस्त जब कभी मिल जाये, तो उसका मिलना मसीहा के मिलने से भी ज्यादा कीमती है ! "
मसीहा या तो हमेँ रास्ता बताता है, या उस से हमारा परिचय करवाता है।  हम क्या ? खुदसे अपना परिचय या तो हमेँ खुद करना पडता है या तो अच्छा दोस्त करवाता है ~ इन्सान जो भी है, जैसा भी है और जहाँ भी है,वह इस कायनात की एक बेहतरीन गुत्थी है।  ऐसे मेँ एक ऐसे साथी की जरुरत है, जिसकी सारी खूबियाँ नरेन भैया मेँ थीँ जिसे मैँ बयान कर चुका हूँ !"
यह सब होने के बावजूद -- he could take very quick decisions and often strong ones and stand by them , thereby , revealing very little of mind and character. He had very strong character "

हिन्दुस्तान की 'freedom struggle ' मेँ कैसी कैसी तारीखेँ आयीँ 'Movement ' ने, कैसे कैसे मोड लिये अँग्रेज़ी की मुख्तलिक उनकी क्या क्या 'strategies' इन सारी बातोँ की उन्हेँ ' exhaustive' मालूमात थीँ। 

 वे मुझे अक्सर बताया करते कि उस 'Movement ' की जेनेसिस Genesies मेँ , 'provincial autonomy ' किन किन ' collective movements ' मेँ किन किन का परिणाम थीँ, उनमेँ क्या क्या ' International pressures ' थे ......वगैरह ..ये सारी बातेँ उन्हेँ मालूम थीँ उदाहरण के तौर पर, 
" दूसरा विश्व युध्ध ब्रिटन के लिये जीतना बडा मुश्किल है।  अगर वे जीतेँगे तो भी उन्हेँ बहुत कुछ करना पडेगा "
और हुआ भी वही! ये उनके कुछ "opinions" थे। -- वे भी उन्हीँ मेँ से थे। 
He once gave me a Book on " Lenin & Trostky " which was on letters exchanged between Lenin & Trostky .
                       मराठा, टीपू सुल्तान, डेक्कन के राजा भारतीय स्वतँत्रता का आँदोलन वगैरह का उल्लेख था। These are some of the his inner vibrations of our relationship. These were the acedemic vibrations !

4 comments:

Divine India said...

दिलीप साहब,
बहुत संजीदा इंसान थे और कलाकार अगर भावनाओं से ओत-प्रोत न हो तो सच में वह कलाकार नहीं होता…उन्होंने इस इंडस्ट्री को काफी कुछ दिया है जो आज भी हर मोड़ पर कहीं न कहीं दिख ही जाते हैं।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

कैसे हो दीव्याभ आप ?
बडे दिनोँ के बाद बात हो रही है
आशा करती हूँ कि काम ठीक चल रहा है.
दिलीप सा'ब ने उम्दा और बेहतरीन काम किया है
जो अप्पनी मिसाल आप है !
स स्नेह
-- लावण्या

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आपने इसे पढकर सराहा
उसकी खुशी है
धन्यवाद अनूप जी -
स्नेह,
लावण्या