Wednesday, May 30, 2007

जब काली रात बहुत गहराती है,...... याद तुम्हारी आती है !




जब काली रात बहुत गहराती है, तब सच कहूँ, याद तुम्हारी आती है !

जब काले मेघोँ के ताँडव से,सृष्टि डर डर जाती है,

तब नन्हीँ बूँदोँ मेँ, सारे,अँतर की प्यास छलकाती है.

जब थक कर, विहँगोँ की टोली, साँध्य गगन मे खो जाती है,

तब नीड मेँ दुबके पँछी -सी, याद, मुझे अक्स्रर अकुलाती है!

जब भीनी रजनीगँधा की लता, खुदब~ खुद बिछ जाती है,

तब रात भर, माटी के दामन से, मिलकर, याद, मुझे तडपाती है !

जब हौलेसे सागर पर , माँझी की कश्ती गाती है,

तब पतवार के सँग कोई, याद दिल चीर जाती है!
जब पर्बत के मँदिर पर,घँटियाँ नाद गुँजातीँ हैँ

तब मनके दर्पण पर पावन माँ की छवि दीख जाती है!
जब कोहरे से लदी घाटीयाँ,कुछ पल ओझल हो जातीँ हैं

तब तुम्हेँ खोजते मेरे नयनोँ के किरन पाखी मेँ समातीँ हैं

वह याद रहा,यह याद रहा, कुछ भी तो ना भूला मन!

मेघ मल्हार गाते झरनोँ से जीत गया बैरी सावन!

हर याद सँजोँ कर रख लीँ हैँ मन मेँ,

याद रह गईँ, दूर चला मन! ये कैसा प्यारा बँधन!
--- लावण्या

















Monday, May 28, 2007

( श्री अरविंद ) श्री माता जी का दिया नाम है फिर फूल का भारतीय नाम और अँत मेँ उसका अँग्रेज़ी नाम : ~~


कौन है वह सम्मोहन राग
खींच लाया तुमको सुकुमार
तुम्हें भेजा जिसने इस देश
कौन वह है निष्ठुर करतार
हंसो पहनो कांटों के हार
मधुर भोलेपन का संसार!
२६५०००पेड पोधो मेँ से करीब १,५०,००० फूल देने वाले हैँ परँतु वे भी अन्य कई लाख प्रजातियोँ मेँ विभाजित होते हैँ जिनमेँ से ३००० सुँदर फूलोँ के लिये उगाये जाते हैँ .
श्री अरविँद ने उनकी प्रसिध्ध कृति "सावित्री " मेँ फूलोँ के बारे मेँ कहा है कि,इस जगत की निहीत सुँदरता मेँ ईश्वर की प्रसन्नता झलकती है. आनंद भरी मुस्कान, हर दिशा में... मुस्कान गुप्त है. हवा के झोँकोँ मेँ वह बहती है, वृक्ष के कण कण मेँ वह व्याप्त है,जिसका सौँदर्य अनेकानेक रँगोँ मेँ फूलोँ के जरीये उदघाटीत होता है.फूलोँ का क्षणिक जीवन भी शाश्वत सुख देने का सामर्थ्य रखता है.एक फूल अपने भीतर पँच महाभूत को समेटे हुए है. के कारण हर धर्म मेँ फूलोँ को पूजा मेँ विशिष्ट स्थान मिला हुआ है.हर कौम के इन्सानो मेँ फूलोँ को , प्रेम व स्मृति का सँदेशवाहक माना गया है.रँग रुप आकार और छूअन के साथ फूल मेँ कुछ रहस्यमय भी जान पडता है.यह एक साथ पवित्र है और अद्वितीय भी है ! मँत्र की तरह ! सँक्षिप्त और पूर्ण !!
टेनीसन ने अपनी कविता मेँ कहा है कि," ओ नन्हे से फूल !अगर मैँ समझ लूँ, कि तुम क्या हो, जडमूल से, तुम तक,तब मैँ मनुष्य क्या है और ईश्वर कौन हैँ इस का भेद समझ जाऊँगा ! श्री माता जी ने प्रार्थना मेँ कहा है कि, " हे ईश्वर, प्रेम का पवित्र फूल , मेरे ह्रदय मेँ खिल उठे कि जिसकी सुँगध मेरे नज़दीक आनेवाले हर इन्सान को सुगँध से भीगों कर, अभिमँत्रित कर दे!
."फूल हमेशा मुखरित रहता है अपनी मधुरता हरेक पर लुटाता है और शिशु की भाँति निर्दोष व निस्छल है ! फूल कुदरत की मौन प्रार्थना है."
श्री अरविँद आश्रम की माता जी ने फूलोँ के ये नाम दीये हैँ :~~~~~
सबसे आगे , श्री माता जी का दिया नाम है फिर फूल का भारतीय नाम और अँत मेँ उसका अँग्रेज़ी नाम : ~~

भक्ति - तुलसी [ ocimum sanctum ]
तपस्या - धतुरा [ Datura suaveolens ]
प्रचँड शक्ति - जपाकुसुम [ Hibiscus ]
सच्चिदानँद - दुर्लभ चँपा [ Ginger Lily ]
अदीति - श्वेत कँवल [ Nelumbo nucifera ]
अवतार - रक्त कँवल [ Red Sacred Lotus - Nelumbo nucifera ]
आशा - पारिजात [ Nyctanthes arbortristis ]
स्वानुभूति - पलाश [Flamboyant ! Delonix regia]
पूर्ण मानस - चम्पक [ Michelia champaca 'Alba'
अलौकिक सूर्य - कदम्ब [ Anthocephalus indicus ]
हरी की प्यारी - मेँहदी [ Lawsonia inermis]
श्रध्धा सुमन - मधुमती [ Quisqualis indica ]
आध्यत्मागँध - केवडा [ Pandanus tectorius ]
प्रभु समर्पण - कनेर [Oleander ! Nerium odorum ]
सत्यस्पर्शा - रूक्मिणी/ पलाश [ Torch tree ! Ixora arborea ]
मनोमँथन - अमलतास [ Golden shower tree ! Cassia fistula ]
प्रगति - सदाबहार [ Vinca roseus ]
मयूरपँखी - कृष्णचूड [ Poinciana pulcherrima ]
स्वर्णफूल - कँचन [ Bauhinia tomentosa ]
प्रखर चेतना - छूई मूई [ Sensitive plant ! Mimosa pudica ]
धैर्य - बकुल [ Mimusops elengi ]
अमूर्त ईश्वर - अनारकली -
http://www.freefeast.com/userpages/sashach.shtml





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Monday, May 7, 2007

Family Time !


Me @ Phx AZ
Deepak, sindur & Me Sopan, Monica, Deepal & LavanyaLavanya with Ladies 2 Sangeet