हमेँ भी याद है वो कोलेज के दिन
हमेँ भी याद है वो कोलेज का केन्टीन,
वो लडकोँ का कोलेज के दरवाजे पे,
हमारा बेसब्री से इँतजार करना!
वो लहराती हुई ओढनी का, सरसरा के फिसलना!
और हमारा बदन को छुपाना -छिपाना !
किसी की निगाहोँ मेँ शोला भडकना,
किसी की सीटीयोँ से वो रँगत बदलना!
हमेँ भी याद आता है, वो गुजरा जमाना,
वो तेज तेज बारिश मेँ कपडोँ का चिपकना,
जुहू बीच की तनहायोँ मेँ वो मौजोँ का उछलना!
किसी सहेली की कोमल हथेली का पकडना !
वो खिलखिलाती हँसी से, दिल का बहलना -
और, थरथराते लब का वो जादू टोना !
वो साहिल के शिकवे, वो कश्ती के आँसू-
कहाँ किसका मिलना, किसका बिछडना!
वो माँ की दुआ, या पापा का लाड हम पे,
वो उनकी निशानी, ये आँखोँ मेँ पानी !
कहाँ हैँ वो नगमे, वो भोली सी बातेँ ?
जिन्हेँ हम कहा करते थे, "मीठी'ज़ बातेँ"
सपना हो गईँ हैँ वो बातेँ पुरानी,
कहानी मेँ अब है, "एक राजा, एक रानी "
( मीठी'ज़ बातेँ क्यूँकि मैँ मीठीबाई कोलिज, जुहूस्कीम,विले पार्ले मेँ जो कोलिज है वहाँ पढती थी )
---लावण्या जुलाई, २, २००१
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