Sunday, December 30, 2007

गत वर्ष २००७ ~~ नया साल ये ....आया !!! २००८ !!

पुरानी पीढी भी गत वर्ष २००७ के प्रति , अपने भाव , समेटे , कभी ख़ुशी, कभी गम का अहसास लिए, २००८ का स्वागत कर रही हैं ।
स्थल : समुद्र किनारा, सान्ता मोनिका , लोस - एंजिलिस शहर --
नया साल ये ....आया !!! ....देखो ....देखो...
नई पीढी, के बालक ,
बहुत आशावान हैं ..
नोआ, मेरा नाती / My Grand son NOAH
ये नीचे जो पुतला दीख रहा है वो, एक कलाकार है जिसने अपने आपको इस तरह चांदी जैसे रंग से रंग लिया है मानों वो एक मूर्ति हो ! लोग बाग़ इन महाशय के साथ चित्र खिंचवाते हैं ओर वे देखनेवालों का मनोरंजन करते जा रहे हैं - @ Hollywood Street, city ऑफ़ Los ~ Angeles, California, U.SA
अमरीका ऐसा देश हैं जहां पर प्राचीन स्थापत्य के भाग्नावेश , हैं ही नहीं ! अजी हां , हो भी कहाँ से ? इसे बसे , बस , २०० + साल की अवधि पूरी हुई हैं ...सो, जों भी नयी इमारतें बनतीं हैं , वे दुनिया के पुराने नमूनों के साथ , अमेरीकी पसंद का मिला जुला, मिश्रित स्वरूप बनकर सामने आता हैं। मशीनी सीढियां हैं , तो साथ ,साथ हाथी की विशालकाय प्रतिमा को प्रमुख स्थान दिया गया है, जिससे खालिस अमरीकी स्थापत्य बन पडा है - जहां नये नये स्मारक , विश्व के पुराने स्थापत्य - कला के नमूनों की तरह बनाए जाते हैं ऐसे देस में, हम जैसे भारतीय लोग, पर्यटक होने के साथ साथ जन समुदाय का एक बड़ा हिस्सा बनते जा रहे हैं --

Wednesday, December 12, 2007

आफ्रीका के प्रमुख स्थल


आफ्रीका भूखंड के बारे में अक्सर लोग बहुत कम जानते हैं - ये मनुष्य का उद्गम स्थान होते हुए भी सबसे ज्याध उपेक्षित भौगोलिक स्थान है --
Map of Africa: the Origin of Human Species but neglected Dark Continent which is below Europe & Middle East
Niger =नाइज्रर Nigeria =नाइजीरीया - - ये दो अलग प्रांत हैं ये पता नहीं था !!

The human skeleton in Africa :-(
Killimanjaro Mountain, Africa the highest peak & a Holy place
1) Niger =नाइज्रर Nigeria =नाइजीरीया -

ये दो अलग प्रांत हैं ये पता नहीं था !!

2 ) Congo, = कोंगो -- & -- Republic of Congo, =रीपब्लीक ऑफ़ कोंगों -

ये दो अलग प्रांत हैं ये पता नहीं था !!
3) Ghana = घाना Guinea =गियाना -
ये दो अलग प्रांत हैं ये पता नहीं था !!
4) Liberia = लाइबीरीया Libya =लीबिया -
- ये दो अलग प्रांत हैं ये पता नहीं था !!
5) Niger =नाइज्रर Nigeria =नाइजीरीया -
- ये दो अलग प्रांत हैं ये पता नहीं था !!
6) Zambia = जाम्बीया Zimbabwe = झीम्बावे -
- ये दो अलग प्रांत हैं ये पता नहीं था !!
Morocco =मोरोक्को , Egypt =ईजिप्त, Seychelles =सीषेल
Zimbabwe = झीम्बावे --किसी दिन अवश्य देखना पसंद करूंगी !
आफ्रीका के प्रमुख स्थल
[ click the underlined link below to read more ] : ~~

Maps and geography of Africa itself.

Algeria = अल्जीरिया
Angola = अंगोला
Benin =बे नी न
Botswana = बोत्स्वाना
Burkina Faso = बुर्कीना फासो
Burundi =बुरुंडी
Cameroon = कामारुन
Cape Verde =केप वरडे
Central African Republic =सेन्ट्रल आफ्रीक्न रीपब्लीक
Chad =चड
Comoros =कामोरोस
Congo, = कोंगो
Republic of Congo, =रीपब्लीक ऑफ़ कोंगों
Cote d'Ivoire =कोट दी आइवारी
Djibouti =दीजीबुटी
Egypt =ईजिप्त
Equatorial Guinea =विशुव्र्तीय गियाना
Eritrea =ईरीत्रीया
Ethiopia =इथीयोपीया
Gabon = गाबोन
The Gambia = गाम्बीया
Ghana = घाना
Guinea =गियाना
Guinea-Bissau =गियाना बिसू
Ivory Coast (Cote d'Ivoire) = आइवारी किनारे का प्रदेश
Kenya =केन्या
Lesotho = लिसोथो
Liberia = लाइबीरीया
Libya =लीबिया
Madagascar =माडागास्कर
Malawi =मालावी
Mali =माली
Mauritania =माओरीटानीया
Mauritius =मोरोशीयास
Morocco =मोरोक्को
Mozambique = मोजाम्बीक
Namibia =नामीबिया
Niger =नाइज्रर
Nigeria =नाइजीरीया
Rwanda =रवांडा
Sao Tome and Principe =साओ तोमे और प्रीन्सीपे
Senegal =सेनीगल
Seychelles =सीशेल
Sierra Leone =सीयेरा लियोन
Somalia =सोमालिया
South Africa =दक्षिण आफ्रीका
Sudan =सुदान
Swaziland =स्वाज़ीलेंद
Tanzania =तान्जानिया
Togo =टोगो
Tunisia = त्युनीशीया
Uganda = युगांडा
Zambia = जाम्बीया
Zimbabwe = झीम्बावे

Tuesday, December 11, 2007

रानी व बाबू नामक दो चिंपांज़ी



बी. बी. सी के सौजन्य से : ~
~ रानी व बाबू नामक दो चिंपांज़ी की शरारत भरी कहानी का मज़ा लें http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2007/12/071206_chimpanzee_out.shtml
चिंपांज़ी को आम तौर पर इंसानों का दोस्त कहा जाता है,लेकिन तभी तक जब तक यह विशाल जीव पिंजड़े के भीतर रहे.
इसके पिंजड़े से बाहर आ जाने पर कितना हंगामा हो सकता है इसका नज़ारा बुधवार की शाम को कोलकाता के अलीपुर चिड़ियाघर में देखने को मिला.
कोलकाता के अलीपुर चिड़ियाघर में आए दर्शकों ने इस बात की कल्पना तक नहीं की होगी कि उनको इतनी बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा.
वहाँ रानी व बाबू नामक दो चिंपांज़ी बुधवार शाम अचानक अपने पिंजड़े से बाहर निकल आए. उन्होंने दो महिला दर्शकों को पंजा मारने का भी प्रयास किया. उन विशालकाय जीवों को देखते ही चिड़ियाघर परिसर में भगदड़ मच गई और लोग वहां से भागने लगे.
'चिंपाज़ी ने लात मारकर गिराया'
चिड़ियाघर के निदेशक सुबीर चौधरी कहते हैं कि चिंपांज़ी दंपति के पिंजड़े में लगा ताला पुराना था. वे उसे तोड़ कर बाहर निकल आए. लेकिन बाहर आने के बाद लोगों की चीख-पुकार सुन कर वे घबरा गए और फिर अपने पिंजड़े में घुस गए.
कानन दास चौधरी कहते हैं कि अब पिंजड़े में एक नया ताला लगाया जाएगा और इस मामले में किसी की गलती नहीं है. प्रबंध समिति की बैठक में भी इस मामले पर विचार किया जाएगा.
चौधरी चाहे जो भी दलील दें, जाड़े की दुपहरी में चिड़ियाघर घूमने के बाद बाघ के पिंजड़े के बाहर आराम कर रहे दास परिवार को यह अनुभव जीवन भर याद रहेगा.
परिवार की बुज़ुर्ग महिला कानन दास अब बी उसे याद कर सिहर उठती हैं. वे कहती हैं, "हमलोग घूमने के बाद कुछ देर के लिए आराम करने बैठे थे. अचानक वह विशाल जानवर मेरे कंधे पकड़कर हिलाने लगा और लात से मार कर मुझे गिरा दिया. यह देख कर मेरी पुत्रवधू पंपादेवी ने चिंपाज़ीको मुक्के से मारा. इस पर चिंपाज़ी ने उसे भी एक लात मार दी, जिससे वे नीचे गिर गईं. "
रानी तो सुरक्षा कर्मचारियों के शोरगुल से जल्दी ही पिंजड़े में लौट गई, लेकिन बाबू को पकड़ने में चिड़ियाघर के कर्मचारियों के पसीने छूट गए.
वह पूरे इलाके में काफ़ी देर तक भागता रहा और इस दौरान चिड़ियाघर में आतंक व अफऱातफरी का माहौल रहा.
अफ़रातफ़री
चिपांज़ी के बाहर आने से चिड़ियाघर में अफ़रातफ़री मच गई
चिड़ियाघर में बुधवार को कोई आठ हज़ार दर्शक पहुंचे थे. बाबू के पिंजड़े में लौटने के बाद उन लोगों ने चैन की सांस ली, लेकिन इस घटना के घंटों बाद भी इसका आतंक उनके चेहरों पर साफ नज़र आ रहा था.
हावड़ा के शिक्षक सुकुमार घोष अपने दो बच्चों व पत्नी के साथ घूमने आए थे. वे कहते हैं, "अचानक शोरगुल मचा और लोग बेतहाशा भागने लगे. पहले तो कुछ समझ में ही नहीं आया. फिर देखा कि एक चिंपाज़ी दो लोगों को खदेड़ रहा है. उस समय दिमाग ही काम नहीं कर रहा था छोटे बच्चों को लेकर कहां जाएं. फिर हम वहीं एक पेड़ की आड़ में छिप गए.
एक अन्य दर्शक रूमा पाल तो जान बचाने के लिए अपने पति के साथ एक रेस्तरां की रसोई में घुस गई. एक पेड़ के नीचे बैठकर नाश्ता कर रहे दो मित्र-खगेन व अभिजीत तो चिंपाज़ी को अपनी ओर लपकते देख टिफिन वहीं छोड़ कर सिर पर पांव रख कर भागने लगे. बाद में उन्होंने एक रेस्तरां के भीतर घुस कर पीछा छुड़ाया.
अब इस घटना के बाद चिड़ियाघर की प्रबंधन समिति ने विभिन्न जानवरों के पिंजड़ों की नए सिरे से जांच करने व खामियों को दूर करने का फैसला किया है ताकि दोबारा ऐसा कोई घटना नहीं हो.

Monday, December 10, 2007

-"अमर गायक श्री मुकेशचँद्र माथुर की याद मेँ "

भारत सरकार द्वारा प्रसारित की गयी, मुकेश जी की यादगार डाक टिकट
एक पुराना चित्र - मुकेश जी और राज सा'ब - मानोँ शरीर और आत्मा !
श्री मुकेश जी जब लोस -ऐन्जिलिस, केलीफोर्नीया शो के लिये आये थे तब मैँ, उनके सँग इस चित्र मेँ हूँ

श्रीमती कृष्णा राज कपूर अपनी छोटी पुत्री रीमा के सँग - रीमा लँदन मेँ ब्याही हैँ और भारत अक्सर आती रहतीँ हैँ
ये मेरा रेडियो इन्टर्व्यु है -"अमर गायक श्री मुकेशचँद्र माथुर की याद मेँ "
It was relayed from Netherlands, Europe
the Female DJ is Vimlaji & Subhash ji is the Male DJ

http://pl216.pairlitesite.com//lavanya/MukeshKiYaadenDeel3-VimlaSoebhaas.mp3

और ये रत्नघर का गीत "ऐसे हैँ सुख सपन हमारे"

http://pl216.pairlitesite.com/lavanya/RATNAGHAR_aise-hain-sukh-sapan-hamaare.

Sunday, December 9, 2007

विहँगम पर्बत द्र्श्यावली

१०,००० फीट की ऊँचाई पर बादलोँ से घिरा पर्बत शिखर / स्थान: हवाई
हिमालय मेखला की विहँगम पर्बत द्र्श्यावली कँचनजँघा
विश्वका सर्वोच्च पर्बत शिखर : सागरमठा या ऐवेरेस्ट / Everest
जापान का मशहूर पर्बत: माउँट फिजी
हिमालय पर्बत शृँखला की एक और दुर्गम चोटी अन्नपूर्णा परबत

yea in my mind those mountains rise,
their perils dyed with evening's Rose,
yet my Ghost, sits at my Eye ,
and hungers for their untoubled snow !

Lyrics written by : Walter De la Mer

मेरे अँतरपट पर इन गिरिशृँगोँ की पडती छाया
साँध्य गुलाबोँ से रँजित है जिनकी भीषण दुर्गमता
फिर भी, मेरे प्राण पलक पर बैठ अकुलाते,
शांत शुभ्र हिम के प्यासे, है कैसी यह पागल ममता !


काव्य पँक्तियाँ : कवि स्व. पँडित नरेन्द्र शर्मा

Wednesday, December 5, 2007

ऐसे हैं सुख सपन हमारे

श्रीदेवी
सुश्री लता मंगेशकर
गायिका: सुश्री लता मंगेशकर फ़िल्म रत्न घर
संगीत : श्री सुधीर फडके शब्द: पंडित नरेन्द्र शर्मा
ये एक पुराना किंतु मधुर गीत है जिसे सुनकर जीवन का सत्य मन पे हावी होता है और हम मानते हैं की हाँ,ऐसे ही होते हैं हमारे जीवन के सपने ...बन बन कर बिखरने वाले मानों बालू के कण हों,जिनसे हम घर बनाते हैं जो हर लहर के साथ फ़िर दरिया के पानी के साथ मिल कर बिखर जाते हैं,
ऐसे हैं सुख सपन हमारे
बन बन कर मिट जाते जैसे
बालू के घर नदी किनारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
लहरें आतीं, बह बह जातीं
रेखाए बस रह रह जातीं
जाते पल को कौन पुकारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
ऐसी इन सपनों की माया
जल पर जैसे चाँद की छाया
चाँद किसी के हाथ न आया
चाहे जितना हाथ पसारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
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Sunday, December 2, 2007

गत सप्ताह मायावती जी का रवैया भी मीडीया में चर्चित रहा






माधुरी दिक्षीत नेने अपनी नई फ़िल्म "आजा नच लै ' के बाद श्रोताओं से बातचीत कर रहीं हैं
आज, जब " आजा नच लै " फ़िल्म से जुडी ये खबर देखीं टीवी सोच रही हूँ, की आज के भारत में कई स्तर पर महिलाएं जी रहीं हैं -
१) माधुरी जैसी सफल हीरोंइन् - जो एन . आर. इ. हैं - दो दुनिया हैं उनकी जहाँ वे जी रहीं हैं -
२) शर्मीला जी - जो आधुनिका हैं, भारत के गाँव में जी रहीं ९५% महिलाओं से उनका अपना जीवन बहुत ही अलग किस्म का है - उनका नज़रिया अलग होना स्वाभाविक है -
३) मायावती जी हैं - महत्त्वपूर्ण ओहदे पर विराजमान हैं - किंतु, आदर्श भारतीय महिल के अनुरुप जीवनशैली जी रहीं हैं - दलित - वर्ग के उत्थान लिए भी काम कर रहीं हैं -
यहां सेंसर बोर्डं की मेम्बर नायिका शर्मीला टैगोर अपनी बात , उनका नज़रिया पेशा कर रहीं हैं
गत सप्ताह मायावती जी का रवैया भी मीडीया में चर्चित रहा --
बचपन के दिनों में जहाँ हम बड़े हुए उस बम्बई के उपनगर "खार " में भी रेलवे लाइन के पूर्व की और बस्ती हुआ करती थी जहाँ " दलित वर्ग " के लोगों के घर हुआ करते थे. पश्चिम में ,हमारे घर से २ रास्ते आगे जाने पर कोली जाती की घनी आबादी थी -
२० वें रास्ते पर और १९ वें रास्ते की दूसरी तरफ भी "दलित कॉम" के लिए घर बनाए थे सरकार ने -- जिनमें मेरी स्कूल की २ बहनें रहतीं थीं - उनमें से एक डाक्टर बनकर , कई साल बाद यहाँ अमरीका में मिल गयी और बहुत सुख / सहूलियत भरा जीवन जी रही है
२० वें रास्ते पर एक मीठी बेन रहतीं थीं - जो साग सब्जी बेचने उनकी बड़ी बहू के संग हमारे घर आया करतीं थीं - मीठी बेन हमेशा मुस्कुरातीं रहतीं थीं - बड़ी लाल बिंदिया उनके माथे पे शोभा देती और उनके ९ संतान थीं -- सबके सब एक घर में रहते थे. उनके बेटे रामजी भाई हम बहनों को गणित सीखाने आया करते थे ..... हम उन्हें बहुत परेशान करते थे -
बड़ा शरीफ लड़का था वो ! जो झेंप कर हमसे मनुहार करता रहता था की, ' हम ज्यादा उधम ना करें और अब पढने बैठ जाएं ! " चूंकि उनके आते ही हम लोग, इधर - उधर भागते रहते थे -

खैर ! आम जनता के लिए तो सबसे आसान यही है की, सिनेमा देखो और अगली खबर का इंतज़ार करो -- ना जाने फिर कौन सी नई लड़ाई शुरू हो जाए -- क्या पता ?

बातें होतीं रहतीं हैं -- परन्तु, जो असली काम करनेवाले हैं, वे ही मुश्किल परिस्थिति में से आगे जाने का रास्ता निकालने में व्यस्त रहते हैं --

मैं उन्हीं जैसों की जय बोलूँगी -

Saturday, December 1, 2007

।। अमेरिका की धऱती से ।। परदेस की भूमि पर दीपावली

हम, जितनों से मिल पाये, मिल लिये, खुब बधाई दी और लीं ..
३ गोरी लडकियों में से एक ने मेरे बाँयें हाथ पर एक सुफेद कागज़ की पट्टी बाँध दी
हमे अपनी टिकिट बतलानी थी --शहर के निवासी भारतीय बच्चों ने मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किये


।। अमेरिका की धऱती से ।।
परदेस की भूमि पर दीपावली
प्रस्तुत है - सृजनगाथा के पाठकों के लिए 'अमेरिका की धरती से' नामक कॉलम - संपादक
दीपावली के जाने के बाद, सृजनगाथा के हरेक पाठक को मेरी शुभ कामनाएँ !
जो मुझसे बडे हैं, उन्हें श्रद्धापूर्वक, नमन !
जब भी भारत की दीपावली के उत्सव की याद आती है, तो जगमगाते दीप, बिजली के रँगबिरंगी लट्टू, बाजारों में भीड भाड, बच्चों की किलकारियाँ, माँ, भाभी, बहनों की कलाई पर छनकती चूडियाँ, युवतीओं के खनकते पायल, हर आँगन, झाड-बुहार कर साफ-सुथरा, नये रँग से लिपी- पुती दीवारें, मिष्टान्न, मेवा, घी की सुगंध, दरवाज़े पे ऊँचे बाँधा गया , अशोक के हरे पत्तों के साथ केसरी, सुनहरे गेंदे का तोरण, नीचे विविध रँगों से सजी रँगोली, मानो अतिथि समुदाय का स्वागत करती हुई...
रेशमी, नये वस्त्रों मेँ सजे, नर नारी वृंद,...
जी हाँ, कुछ ऐसी ही तस्वीर जेहन में आ जाती है, जब-जब भारत के परिवार के सभी को दीपावली का त्योहार मनाते, हुए, मेरे मन के दर्पण में झाँक कर देखती हूँ तब तब, यही दृश्य सजीव हो उठते हैं ...
मेरे सपनों में, सदा के लिये बस गया मेरा भारत, ऐसा ही तो था, ऐसा ही होगा, हाँ ऐसा ही है !
पर, यथार्थ में, स्वयम् को परदेस की भूमि पर पाती हूँ और स्वीकार करती हूँ कि मैं परदेश मे निवास करती हूँ ! मेरे जैसे असँख्य, भारतीय मूल के लोग, जहाँ कहीं भी बस गये हैं, अपने संस्कारों को, त्योहारों को भूले नहीँ ।
तो इस वर्ष भी दीपावली के उत्सव के अवसर पर, मेरे शहर सीनसीनाटी के हिन्दु मंदिर व अँकुर गुजराती समाज के सौजन्य से निर्धारित किये गये इस त्योहार पर करीब ८०० से ज़्यादा लोग इकट्ठा हुए। जलेबी, मोटी सेव जिसे गाँठिया कहते हैं वह, समोसे, मीठी व हरी चटनियों के साथ, गुलाब जामुन परोसे गये । स्वागत कक्ष में ..
.जहाँ पहुँचने के पहले, हमे अपनी टिकिट बतलानी थी, फिर ३ गोरी लडकियों में से एक ने मेरे बाँयें हाथ पर एक सुफेद कागज़ की पट्टी बाँध दी । अमरीका मेँ अक्सर कहीं भी दाखिल होने पर ऐसा किया जाता है, अस्पतालों में भी, जिससे कितने व्यक्ति शामिल हुए हैं उस बात की गिनती सही-सही रहे
हाल में आग लग जाये तो सिर्फ निर्धारित गिनती के व्यक्ति ही वहाँ होना
ये भी निहायत जरुरी रहता है..
ऐसा नहीँ चलता कि ८०० लोग, बैठ सकते हैं तो ८७५ हॉल में भर दो ! हर सीट के लिये, १ ही व्यक्ति रहे, इस बात पर जोर देकर अमल किया जाता है...तो खैर !
ये सारी रीति निभा कर, जलपान करके हम, जितनों से मिल पाये, मिल लिये, खुब बधाई दी और लीं ..
तब तक भोजन की व्यवस्था हो गई थी जो वाकई स्वादिष्ट था। उसके बाद, शहर के निवासी भारतीय बच्चों ने मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किये. भारत नाट्यम् दक्षिण भारतीय संस्कृति को दीपित कर रहा था तो बंगाल से लोक नृत्य भी पेश किया गया फिर बारी आई, गुजरात के गरबे की ..और हिन्दी सिने संसार के गीतोँ पर भी कई नृत्य हुए । के. एल.सहगल से लेकर हृतिक रोशन तक के गीतों पर बच्चे झूम कर नाचे और कार्यक्रम मध्य रात्रि तक समाप्त हुआ।
जब बाहर गाडियों की ओर चले तब, ठंड का अहसास हमें सचेत कर गया कि हम,
अमरीका की धरती पर हैं ।
भारत की छवि को दिल मेँ समाये, हम भारतीय लोग, भारत के त्योहारों की उष्मा, भारत की सस्कृति की धरोहर, ह्र्दय में बसाये हुए, फिर यहाँ की कर्मठ, जीवन शैली के आधीन होकर लौट रहे थे ।
अपने अपने घरों की ओर ...
रात्रि के आगोश मेँ, आराम पाने के लिये, पंछीयों की तरह, अपने, अपने नीड की ओर उडे जा रहे थे!
तेज रफ़्तार से भागती गाडीयों के काफ़िले में, रोशनी की लकीरों के, सहारे ...।
अँधेरी सडकों को पार करते हुए ...चले जा रहे थे ..घर की ओर !
जहाँ घर पर स्वागत करेंगीं माँ महलक्ष्मी की मुस्कुराती प्रतिमा, घी का जलता दीपक, मिठाई के कुछ टुकडे, प्रसाद स्वरुप, अगरबती जो कब की बुझ गई होगी उसकी चंदनी गंध, महकती रहेगी ...देर तक, जब तक आँखें मुँद न जायेंगीं, थकान से और सवेरे का सूरज, अगर दर्शन दे, तो नये साल की मुबारकबादी भी, दोस्तोँ को, रिश्तेदारों को, फोन से कहेंगे ..
हाँ...इस साल दीपावली सचमुच, बडी दर्शनीय गुजरी...
हर भारतीय को शुभेच्छा भेज रही हूँ -
विश्व मेँ शांति कायम हो !
जहाँ-जहाँ अँधेरा हो, भूख हो, लाचारी हो, गरीबी हो,निराशा हो, बीमारी हो,
हे माता महलक्ष्मी, वहीँ-वहीँ आप की कृपा से उजाला कर दो !
आप के लिये क्या सँभव नहीँ है ?
अब आज्ञा ..
."अमरीकी पाती" आप से विदा लेती हैं...
.फिर जल्दी मिलेंगे..
तब तक...
" सत्कर्म करते रहें .
.शुभम्अस्तु,
स स्नेह,
लावण्या

Thursday, November 29, 2007

"डा. हरिवँश राय बच्चन " / Dr.Hariwansh Rai " Bachchan "



देखेँ लिन्क : ~~~

ख़जाना !!!!

ये ४० लख रुपये से बनी, असली रेशम और ज़री की कारीगरी से बनी साडी है जिस पर राजा रवि वर्मा की कलाकृति को हुबहु उकेरा गया है - दक्षिण भारत की सिने तारिका इसे थामे मुस्कुरा रहीँ हैँ
अब ये विश्व के सुप्रसिध्ध नगीनोँ की दमकती हुई झलक है !
यहाँ पर दर्शाया गया एक ,एक रत्न बेशकिमती है -
1) ऊपर की पँक्ति मेँ जो पीले रँग का चौकोर हीरा है उसका नाम "टीफनी डायमँड" है --
जिसे न्यु -योर्क शहर मेँ , फीफ्थ ऐवेन्यु पर स्थित उनकी दुकान मेँ प्रमुख आकर्षण के तौर पर रखा गया है और वो मैँने वहीँ पे रखा हुआ देखा है -
जो लीफ्ट -मेन था उसने मज़ाक मेँ हमसे इस रत्न की ओर इशारा करते हुए कहा कि " अगर मैँ एक बढिया चीज़ आपको दीखलाऊँ तो वादा करिये कि आप उसे यहाँ से ले नहीँ जायेँगेँ ! " -
और ऊँगली इस हीरे के शो केस की तरफ उठाई थी
और हम इस बेशकिमती,रत्न की चकाचौँध देखते ही रह गये ...


और ये हैद्राबाद के निज़ाम की शाही साफे पे बाँधीजानेवाली "कलगी" है - जिसमें दुर्लभ रत्न पन्नोँ का हरा रँग व हीरे इसे एक बेनमून कालाकृति बना रहे हैँ

ओहो ये है $100,000 अमेरीकन डालर का नोट !! * Click on the image for a larger view.

A link on the Federal Reserve Bank of San Francisco Web site shows the front and reverse of the $100,000 note.

You're not likely to get one of these as a tip.

Only 42,000 of these $100,000 bills were ever printed, and none have been created since January of 1935.
"The largest note ever printed by the Bureau of Engraving and Printing was the $100,000 Gold Certificate, Series 1934.
इन नोटोँ को अमरीकी मुद्रण प्रणाली से बनाया गया Dec. 18, 1934 से Jan. 9, 1935 की कालावधि के बीच ..
(They were issued by the Treasurer of the United States to Federal Reserve Banks only against an equal amount of gold bullion held by the Treasury.)
इन नोटोँ का चलन केन्द्रीय रीझर्व बेन्कोँ के बीच आदान -प्रदान के लिये ही किया जाता रहा और आम जनता के लिये इनका उपयोग कभी नहीँ हुआ "

http://www.ustreas.gov/education/fact-sheets/currency/fort-knox.html

द्वीतीय विश्व युध्ध के समय अमरीकी सुवर्ण भँडार : 649.6 million troy ounces (20,205 metric tons). वर्तमान सुवर्ण मात्रा अनुमानत्: 147.3 million ounces[1]

Wednesday, November 28, 2007

(" पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर डा. हरिवँश राय बच्चन के भाषण से साभार उद्`धृत )

स्वर कोकिला सुश्री लता मंगेशकर
पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर , माल्यार्पण करते हुए
कविवर श्री सुमित्रानँदन पँत ,पँडित नरेन्द्र शर्मा ,डा. हरिवँश राय बच्चन

" छायावाद के जितने कवि थे वे हमारे लिये एक प्रकार से आदर्श रहे और इस समय मैँ बडे आदर के साथ श्री सुमित्रानँदन पँत का नाम लेना चाहूँगा,बल्कि हम दोनोँ ही नरेन्द्रजी और मैँ, दोनोँ ही ...हम दोनोँ ही पँतजी की कविता के बडे प्रेमी थे. वे हमारे आदर्श थे.कविके रुप मेँ भी वे हमारे आदर्श थे और उनको आदर्श बनाकर उनसे कुछ सीख कर हम लोग कुछ आगे बढे! ..जब हम लोग आये, तो हमे ऐसा मालूम हुआ, शायद हिन्दी कविता को मनीषा की आवश्यकता थी, कि हम इस कविता मेँ जीवन के सँपर्क को लायेँ और मैँ इस समय स्मरण करता हूँ कि नरेन्द्र और अँचल ये दो, ऐसे कवि हमारे समकालीन हैँ....हम लोगोँने कविता को एक नयी भूमि पर, जीवन के अधिक निकट लाने का प्रयत्न किया. योँ तो नरेन्द्र जी इन चालीस वर्षोँ मेँ हमारी हिन्दी कविता जितने सोपानोँ से होकर निकली है, उन सब पर बराबर पाँव रखते हुए चले हैँ. शायद प्रारम्भिक छायावादी, उसके बाद जीवन के सँपर्क माँसलता लेते हुए ऐसी कविताएँ, प्रगतिशील कविताएँ, दार्शनिक कविताएँ, सब सोपानोँ मेँ इनकी अपनी छाप है. ...मैँ आपसे यह कहना चाहता हूँ कि प्रेमानुभूति के कवि के रुप मेँ नरेँद्रजी मेँ जितनी सूक्षमताएँ हैँ और जितना उद्`बोधन है , मैँ कोई एक्जाज़्रेशन ( अतिशयोक्ति ) नहीँ कर रहा हूँ , वह आपको हिन्दी के किसी कवि मेँ नहीँ मिलेँगीँ उस समय को जब मैँ याद करता हूँ , तो मुझे ऐसा लगता है , भाषाओँ से हमारी कविता ने एक ऐसी भूमि छूई थी और एक ऐसा साहस दिखलाया था, जो साहस छायावादी कवियोँ मेँ नहीँ है ! वह जीवन से निकट अनुभूतियोँ से ऊपर उठकर ऊपर चला जाता था, यानी उसको छिपाने के लिये , छिपाने के लिये तो नहँ, कमसे कम शायद वह परम्परा नहीँ थी ! इस वास्ते उस भूमि को वे छूते ही नहीँ थे , लेकिन जन नरेन्द्र आये, तो उन्होँने जीवन की ऐसी अनुभूतियोँ को वाणी दी, जिनको छूने का साहस, जिनको कहने का साहस, लोगोँमेँ नहीँ था. यह केवल अभिव्यक्ति नहीँ थी, यह केवल प्रेषण नहीँ था, यह उद्`बोधन यानी जिन अनुभूतोयोँ से कवि गुजरा था, उहेँ औरोँ से अनुभूत करा देना था ! नरेन्द्र जी की कविताएँ प्रकृति - सँबँधी भी हैँ ..एक बात मेँ मुझे नरेन्द्रजी से ईर्ष्या थी, वह यह कि जब मैँ केवल गीत ही लिख सका, ये खँडकाव्य भी लिखते रहे और कथाकाव्य मेँ भी इनकी रुचि प्रारम्भ से रही है. मैँ अपनी शुभकामनाएँ इनको देता हूँ , आशीर्वाद देता हूँ और उनसे स्वयम्` , ब्राह्मण ठहरे, आशीर्वाद चाहता हूँ कि भई, मुझे भी ऐसी उम्र दो कि तुम्हारा वैभव और तुम्हारी उन्नति देखता रहूँ !

(" पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर

डा. हरिवँश राय बच्चन के भाषण से साभार उद्`धृत )

Sunday, November 25, 2007

डा. हरिवँश राय बच्चन जी' को आज बरबस याद कर रही हूँ +उनकी धर्मपत्नी "तेजी आँटी जी



डा. हरिवँश राय बच्चन को आज बरबस याद कर रही हूँ -
- मैँ उन्हेँ कभी 'ताऊजी " तो कभी " चाचाजी " कहा करती थी.हाँ उनकी धर्मपत्नी "तेजी आँटी जी' हीँ थीँ

-बचपन के दिनोँ मेँ जब जब हम सब देहली ,पापा जी के पास जाया करते थे तब या तो गर्मीयोँ की २ महीने से कुछ दिन उपर,तक की लँबी छुट्टियाँ हुआ करतीँ थीँ या फिर
दीपावली की जाडोँ के दिनोँ की २०, दिनोँ की छोटी अवधि की छुट्टियाँ....

देहली की उमस व लू हम बँबईवालोँ को परेशान कर के,फिर बँबई के सागर किनारोँ की याद दीलाती थी और हम जैसे तैसे दिन गुजार ही लेते थे.यदाकदा,शाम को किसी के घर भोजन का निमँत्रण मिल जाता उस दिन,देहली शहर के विभिन्न, दूर दराज़ के इलाके देखनेका सौभाग्य भी मिल जाता था.
बिड़ला मँदिर, कुतुब मिनार, लाल किल्ला, चाँदनी चौक,कनोट प्लेस, गाँधी बापू जी की समाधि,तीन मूर्ति भवन जो मारत के प्रथम प्रधान मँत्री श्री जवाहरलाल नेहरु जी का आवास था ये सारे ऐतिहासिक और देहली के प्रमुख आकर्षण सदा के लिये दीलोदीमाग के पन्नोँ मेँ,दबे फूलोँ की तरह कैद हें !

तीनमूर्ति भवन के ठीक सामने,"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट"के विशाल, हवादार, सुँदर बागीचे के बीच हमारे "बच्चन चाचाजी व तेजी आँटी जी का "घर था. इस घर मेँ वे तभी से रहने लगे थे जब से "राज्य सभा " के मानोनीत सदस्य 'हिन्दी निर्देशक" के पद पर वे आये थे.

"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट"मेँ रहने से कुछ वर्ष पूर्व,वे राष्ट्रपति भवन के नजदीक ग्राओन्ड फ्लोर के एक मकान मेँ रहते थे ऐसा मुझे याद है.
दददा राष्ट्रकवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी के घर हम एक गर्मीयोँ की छुट्टी मेँ ठहरे थे जिसके करीब ही एक नीचे के मँजिलवाले एक घर मेँ तेजी आँटी से मिलने हम बच्चे झूला झूलने के बाद, रास्ते मेँ तेजी आँटी का घर पडता था वहाँ रुक जाया करते थे.
मुझसे छोटी मेरी बहन जिसे हम "मोँघी" के प्यारभरे घर के नामसे बुलाते हैँ उसे खाने की चीज वस्तुओँ से, बचपन से बडा गहरा लगाव है ! ( मोँघी की इसी आदत को, कई सहेलियाँ "पेटू" कहकर उसे चिढाती थीँ )

जब भी तेजी आँटी जी हमेँ उनके घर आया देखतीँ तो पुकार के कहतीँ, " अरे महाराजिन, चीकू लाओ ...देखो बच्चे आये हैँ .."
और हम उन्हेँ ताकते रह जाते क्यूँकि तेजी आँटी जी ड्रेसीँग टेबल के सामने रखे एक छोटे से स्टूल पर बैठ कर उसी वक्त अपने बाल सँवारती, बडे से शीशे मेँ, अपने आपको निहारती भी जातीँ थीँ ...आज भी उनकी ये छवि मुझे याद है !

एक दिन , हम फिर उनके द्वार पर खडे थे और तेजी आँटी किसी विचारोँ मेँ,उलझी हुईँ होँगीँ तो रोज की तरह उन्होँने आवाज नहीँ दी ...
अब तो हमारी मोँघी रानी जिसे खेलकूद के बाद , भूख लगी थी उससे रहा नही गया, तो तपाक - से पूछ ही लिया मोघी ने,
" आँटी जी , क्या आज आप महाराजिन को चीकू लाने के लिये आवाज़ नहीँ देँगीँ " ? :-))

- अब तो तेजी आँटी की भी हँसी छूट पडी .
.वे खूब खिलखिलाकर हँसीँ और मेरी अम्मा सुशीला से भी ये सारी बात तेजी आँटी जी ने बतलायी थी

-तो बचपन के ऐसे किस्से, सच मेँ भूलाये नही भूलते हैँ और यादगार बन जाते हैँ

खैर ! उसके बाद की यादेँ,बच्चन परिवार के तीनमूर्ति भवन के सामनेवाले,"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट" से जुडी हैँ. उस घर पर जब कभी "कवि सम्मेलन " का आयोजन किया जाता या " काव्य -सँध्या " के बाद रात्रि भोज का न्योता मिलता तब पापा और अम्मा के सँग हम बच्चे भी किन्ही, गिने चुने, प्रसँगोँ मेँ हाजिर रहे हैँ.
तेजी आँटी जी बडी शानदार पार्टीयाँ आयोजित किया करतीँ थी.उनके खाने के कमरे मेँ बडे टेबल के कोनोँ मेँ जलती हुई मोमबतीयाँ, पहली बार ज़िँदगी मेँ देखीँ थी औररोमाँचक -सी लगीँ थीँ

तेजी आँटी जी को एक होबी या शौक था - वे अपनी हर यात्रा की याद मेँ जहाँ कहीँ गयीँ होँ, वहाँ से सुँदर आकार या रँगवाले पत्थर,चुनकर ले आया करतीँ थीँ और वे कई, सारे पत्थर इस ,"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट"के बारामदे मेँ सजाकर रखा करतीँ थीँ -- ऐसा भी मुझे याद है -
- वो बचपन के दिन थे और उस वक्त हम इतने समझदार नहीँ थे कि जो महान व्यक्तियोँ से, उस दौरान, हम मिले थे उनका मूल्य जान सकेँ -
बच्चों
के लिये तो पूरा विश्व एक हर रोज कुछ नया खेल एक नया तमाशा ही रहता है !हमेँ थोडे ना सूझ बूझ थी कि जिन्हेँ हम "चाचाजी " कहते थे वे कभी "डा. हरिवँश राय बच्चन " जैसे प्रतिभाशाली और सबसे ज्यादा मशहूर "मधुशाला" के रचनाकार हिन्दी कविता को एक नये आयाम तक ले जानेवाले अविस्मरणीय कवि हैँ !
तो कभी हम जिन्हेँ "चाचाजी " बुलाते थे वे हिन्दी साहित्य को "चित्र लेखा" जैसी कथा कहानी सौँपने वाले शख्स श्री भगवती चरण वर्मा जैसे महान कहानीकार थे -
या श्री अमृतलाल नागर जी चाचाजी हुआ करते थे !
http://antarman-antarman.blogspot.com/ Link : श्री अमृतलाल नागर - संस्मरण - भाग -- ५
आज काल के बेरहम हाथोँ ने ऐसी अनेकानेक प्रतिभाओँ को ,विश्वपटल के मँच पर से उठा लिया है और नये कलाकार, नई पीढी, ने जगह ले ली है जोकि सृष्टि का क्रम है --
आज यहाँ विदा लेती हूँ
- दुबारा उन्हीँ के दीये , पापाजी की षष्ठिपूर्ति पर दीये सम्भाषण के साथ हम फिर एक नई प्रविष्टी के सँग, फिर हाज़िर हो जायेँगे -
- २७ तारीख को मेरे "बच्चन चाचाजी की " तारीख पड रही है -
उन्हेँ मेरे शत्` शत्` नमन !

Wednesday, November 21, 2007

भविष्य की मुँबई नगरी को जोडता हुआ ये ब्रिज - इन्जीनीयरीँग के विषय पर आधारित आलेख

बान्द्रा वरली ब्रिज जो अभी बन रहा है
बान्द्रा वरली ब्रिज पर एक विहँगम दृष्टि
हिन्दुस्तान अखबार से मिली एक खबर ने, मन मेँ , BRIDGE = "ब्रीज" याने "पुल" के प्रति दुबारा विस्मय व श्रध्धा को भर दिया -- ये खबर दे रहीँ थीँ - madhurimaa nandee -- देखेँ लिन्क http://www.hindustantimes.com/news/specials/bombay/index.shtml
देवेन्द्र शर्मा इस कार्य के प्रमुख इन्जीनीयर हैं --

कई दिनोँ से मन मेँ आधुनिक स्थापत्यकला के ये बेमिसाल नमूने ,और उन पर मेरे विचार , आप के लिये प्रस्तुत करने का मन था जिसे आज रोक नहीँ पाई -
विश्व मेँ रोज इस्तेमाल हो रहे यातायात विभाग के, दो भूखँडोँ, या जल राशि को जोडने वाले , अचरज पैदा करने वाले, ये इन्जीनीयरीँग क्षेत्र के बेजोड उदाहरण तो हैं ही साथ, साथ, मनुष्य की हर प्राकृतिक अवरोध से जुझने की अदम्य लालसा और आँतरिक मनोबल के ज्वलँत उदाहरण भी हैँ ~~
और ये " COVERED BRIDGES = कवर्ड ब्रिज या ढँक़े हुए पूल " कहलाते हैँ और उत्तर अमरीका मेँ प्राय: पाये जाते हैं और बहुत खूबसुरत होते हैँ -इन्हीँ पर एक प्रसिध्ध पुस्तक " ब्रीजीस ओफ मेडीसन काऊँटी " नामक लिखी गयी है जो एक सफल होलीवुड़ फिल्म भी बनी जिस मेँ क्लीँट इस्टवूड और मेरीलीन स्ट्रीप की बेहतरीन अदाकारी है -
(1 ) http://en.wikipedia.org/wiki/Covered_bridge
( 2 )
http://www.800padutch.com/covbrdg.shtml

अब देखिये सूची - विश्व के सब्से प्रमुख प्रसिध्धि पाये ब्रिजोँ की

( १ ) आकाशी केक्यो ब्रिज : Akashi Kaikyo Bridge
http://www.hsba.go.jp/bridge/e-akasi.htm
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/akashi_kaikyo.html

( २ ) ब्रुक्लीन ब्रिज : Brooklyn Bridge
http://www.nycroads.com/crossings/brooklyn/
http://www.discovery.com/stories/technology/buildings/panoramas/brdg_java1.html
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/brooklyn.html

(३ ) चीज़ पेक बे ब्रिज टनल : Chesapeake Bay Bridge-Tunnel
http://www.cbbt.com/
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/chesapeake_bay_brdg.html

( ४ ) फ्र्थ ओफ फोर्थ ब्रिज : Frth of Forth Bridge
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/firth_of_forth.html

( ५ ) जोर्ज पी. कोल्मेन ब्रिज : Gorge P. Coleman Bridge
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/george_p_coleman.html

( ६ ) गोल्डन गेट ब्रिज : Golden Gate Bridge
http://www.goldengate.org/
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/golden_gate.html

( ७ ) लोहे का ब्रिज: Iron Bridge
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/iron.html

( ८ ) सन शाइन स्काय वे फ्लोरिडा : Sunshine Skyway (Florida)
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/sunshine_skyway.html

( ९ ) टाकोमा सँकरा ब्रिज : Tacoma Narrows Bridge
http://www.me.utexas.edu/~uer/papers/paper_jk.html
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/tacoma_narrows.html
http://instruction.ferris.edu/loub/media/BRIDGE/Bridge.htm

( १० ) टावर ब्रिज : Tower Bridge
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/tower.html
http://www.discovery.com/stories/technology/buildings/panoramas/brdg_ipix2.html

( ११ ) Sydney Bridge ( See Video link )

http://media.howstuffworks.com/reuters/video/75th-anniversary-for-sydn-1063.htm?

और ये वीडीयो और येड्रो ब्रिज की कार्य प्रणाली के बारे मेँ

- http://www.howstuffworks.com/bridge.htm


http://www.800padutch.com/covbrdg.shtml

इतना सब देख लेने के बाद एक छोटी सी बात याद दिलाना चाहूँगी - और वो बस्स इतना ही कि इन्सान स्वयँम की बुध्धि और सामर्थ्य के बल बूते पर ये ब्रिज बना लेते हैँ पर कई दफे, हम एक दूस्रे के ह्र्दय तक प्रेम भरा ब्रिज नहीँ बना पाते -
ऐसा क्योँ ?
क्या मनुष्य के मन को जोड़ने वाला पुल हम, नहीँ बना पायेँगेँ ?
कि, जिसकी बदौलत दुनिया भर मेँ अमन चैन कायम हो और युध्ध और विनाश लीला का अँत हो?? -

Sunday, November 18, 2007

Ll`adro = यार्ड्रो / ये क्या है ? जानना चाहेँगेँ आप ?

First LL`adro GANESH

Bansuri Ganesh ji
Radha KrishnaBal Krishna
LL`adro LAXMI Devi
ल्लार्दो = यार्द्रो ये क्या है ? जानना चाहेँगेँ आप ?
जी हाँ , अँग्रेज़ी अक्षर कई बार, इस तरह लिखे जाते हैँ कि जिससे उन्हेँ बोलते वक्त,
कुछ जगहोँ पे, दूसरी ध्वनि से बोला जाता है .Or they r "silent "
.सबसे प्रसिध्ध शब्द है KNIFE = नाइफ या छुरा या छुरी ,जिसके स्पेलीँग मेँ, सबसे आगे, "क्" आता है -
NO - "नो " एनओ भी लिखा जाता है और " केएनओ " = नो का मतलब होता है,पता करना या पता होना .....इत्यादी ..

अब ज्यादा विस्तार से, उपर दीये गये लिन्क पर पढ लेँ .

तो हम इस लार्डो जैसे शब्द के बारे मेँ " KNOW " केएनओ " करेँ ? :-)
In short, "LL`adro pieces are
"Collectors' Item + they are decorative, porceleain Figurines


स्पेन देश के,अल्मासेरा कस्बे मेँ जो खेती प्रधान है उसके वेलेँसीया प्राँत मेँ,पूर्वी मेडीटरेरीयन समुद्र के किनारे, २ भाइयोँ ने जिनके नाम थ जुआन जोस व वीन्सान्ज़ेउन्होँने,चित्रकला तथा शिल्पकला सीखकर, अपने उज्ज्वल भविष्य को हासिल करने के हेतु से,
मूरीश किस्म की भट्टी, उनके माता, पिता के घर के अहाते मेँ ही बनवा कर,
१९५० मेँ इस कारखाने की नीँव रखी थी ---

( ज्यादा विस्तार से, लिन्क पर पढ लेँ )


Lladro, the renowned porcelain company that entered the Indian market with its Ganesha idol at Rs 64,000 has resale value of nearly Rs 300,000 today.